इस बार पराली जलाई तो और बिगड़ेंगे कोरोना के हालात, विशेषज्ञों ने दी बड़ी चेतावनी
पंजाब में विशेषज्ञों ने काेरोना को लेकर बड़ी चेतावनी दी है और इसकी अनेदखी करना बहुत भारी पड़ेगा। विशेषज्ञों ने कहा है कि इस बार यदि किसानों ने पराली जलाई तो काेरोना के हालत और ज्यादा खतरनाक होगी।
चंडीगढ़ , जेएनएन । काेरोना को लेकर विशेषज्ञों ने बड़र चेतावनी दी है और किसानों को इस बार पराली जलाने से परहेज करने को कहा है। विशेक्षज्ञों का कहना है कि यदि खेतों में इस बार जलाई तो कोरोना का संकट और बढ़ेगा और हालात बिगड़ेंगे। ऐसे में किसान खेतों में पराली न जलाएं और इस बारे में उनको जागरूक किया जाए।
पर्यावरण विशेषज्ञ संजीव नागपाल ने कहा कि दी है कि खेतों में पराली जलने से कोरोना के हालात और बिगड़ सकते हैं। संपूर्ण एग्री वेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड (एसएवीपीएल) के प्रबंध निदेशक संजीव नागपाल ने कहा कि पंजाब में पिछले साल पराली जलाने के करीब 50,000 मामले सामने आये थे। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में पार्टीकुलेट मैटर (पीएम) के जरिए वायु प्रदूषण बढऩे में पराली के जलने की बड़ी भूमिका रहती है।
कहा, सिलिका की कमी से मानव शरीर को कई बीमारियों से बड़ा खतरा
नागपाल ने कहा कि अगर पराली प्रबंधन की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जाती है, तो ये प्रदूषक श्वसन संबंधी समस्याओं को जन्म दे सकते हैं। जिससे कोरोना और खतरनाक हो सकता है। क्योंकि कोरोना वायरस सांस की नली को प्रभावित करता है।
सरकार उचित दाम पर पराली खरीदकर जैविक खाद और बायोगैस तैयार करने पर दे ध्यान
उन्होंने कहा कि पराली जलने से वायुमंडल में बड़ी मात्रा में जहरीले प्रदूषक घुल जाते हैं। जिनमें मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि फसल के अवशेष जलने से मिट्टïी में सिलिकॉन (एसआई) जैसे सूक्ष्म तत्वों की कमी हो जाती है। सिलिकॉन पर्यावरणीय तनाव की स्थिति में पौधों को स्वस्थ रखता है। मिट्टी में घुलनशील सिलिका की कमी होने से इस तत्व की मनुष्य में भी इसकी कमी होने लगी है। जिससे कई बीमारियों का बड़ा खतरा पैदा हो गया है। मानव शरीर में सिलिका की अपर्याप्त मात्रा इसका एक बड़ा कारण है।
नागपाल ने कहा कि राज्य सरकारों और इंडस्ट्री को उचित मूल्य पर किसानों से पराली खरीद कर उसका भंडारण करना चाहिए। पराली को उपयुक्त तकनीक का प्रयोग करके जैविक खाद में बदलने और बायोगैस तैयार करने के प्रयत्न किए जाने चाहिए।
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