हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन की याचिका की खारिज, कर्मचारियों की सेवाएं स्थायी करने का आदेश
पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन की याचिका खारिज करते हुए 60 कर्मचारियों की सेवाएं नियमित करने के कैट के आदेश को बरकरार रखा। अदालत ने कहा कि कर्मचारी को अनिश्चितकाल तक प्रोबेशन पर नहीं रखा जा सकता। प्रशासन की दलील थी कि मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। यह फैसला कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है।

हाईकोर्ट के फैसले से 60 कर्मचारियों को मिलेगा फायदा।
राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ प्रशासन और अन्य की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण के आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें 60 कर्मचारियों की सेवाएं नियमित करने के निर्देश दिए गए थे। अदालत ने कहा कि एक कर्मचारी को अनिश्चितकाल तक प्रोबेशन (परिवीक्षा अवधि) पर नहीं रखा जा सकता।
यह फैसला जस्टिस हरसिमरन सिंह सेठी और जस्टिस विकास सूरी की खंडपीठ ने सुनाया। याचिका में प्रशासन ने सीएटी के 17 मार्च 2025 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 12 जुलाई 2017 को पारित प्रशासनिक आदेश को निरस्त करते हुए कर्मचारियों की सेवाएं पक्की करने और उन्हें सभी लाभ देने का निर्देश दिया गया था।
प्रशासन की ओर से ने दलील दी कि ट्रिब्यूनल ने सुप्रीम कोर्ट के स्टेट ऑफ पंजाब बनाम धरम सिंह (1969) मामले को गलत तरीके से लागू किया है। उनका कहना था कि कर्मचारियों की प्रारंभिक नियुक्ति की वैधता का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए उन्हें स्थायी करने का आदेश समयपूर्व है।
दूसरी ओर, कर्मचारियों की ओर से तर्क दिया कि कर्मचारी 2018 में अपनी अधिकतम प्रोबेशन अवधि पूरी कर चुके हैं और सात साल से सेवा दे रहे हैं। इतने लंबे समय के बाद प्रशासन उन्हें स्थायी न करने का कोई औचित्य नहीं रखता।
हाईकोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी की नियुक्ति और प्रोबेशन अवधि दो अलग-अलग विषय हैं। यदि प्रारंभिक नियुक्ति में कोई अनियमितता है, तो विभाग जांच कर कार्रवाई कर सकता है, लेकिन इससे कर्मचारी के कार्य प्रदर्शन या सेवा पुष्टि पर असर नहीं पड़ना चाहिए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि नियुक्ति में कोई गलती पाई जाती है, तो विभाग उचित प्रक्रिया अपनाकर सेवाएं समाप्त कर सकता है, लेकिन उसे प्रोबेशन की अवधि अनिश्चितकाल तक नहीं बढ़ाने दी जा सकती।
अदालत ने कहा कि धरम सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अधिकतम प्रोबेशन अवधि पूरी होने के बाद नियोक्ता को एक उचित समय सीमा में निर्णय लेना होता है या तो कर्मचारी को पुष्टि दें या सेवा से मुक्त करें। परंतु उसे वर्षों तक अस्थिर स्थिति में नहीं रखा जा सकता।
हाईकोर्ट ने माना कि चंडीगढ़ प्रशासन ने सात साल बाद भी कर्मचारियों की सेवा के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया, जो उचित नहीं है। इसलिए सीएटी का आदेश कानूनन सही है और उसमें दखल देने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अदालत ने कहा कि “ट्रिब्यूनल का आदेश न तो तथ्यों पर और न ही कानून के आधार पर गलत है,” और इस आधार पर प्रशासन की याचिका खारिज कर दी। साथ ही, सभी लंबित आवेदनों को भी निपटाया गया।
यह फैसला उन 60 कर्मचारियों के लिए राहत लेकर आया है जो लंबे समय से अपनी सेवाओं की पुष्टि का इंतजार कर रहे थे। अब प्रशासन को उनकी सेवाएं पक्की कर उन्हें सभी अनुक्रमिक लाभ देने होंगे।

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