हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी, चंडीगढ़ पर हक जमाने में पंजाब-हरियाणा आगे, कुछ करने की बारी आए तो दोनों पीछे
हाई कोर्ट ने कहा कि जब अधिकार की बात आती है तो पंजाब-हरियाणा चंडीगढ़ पर हक जताते हैं पर जब कर्तव्य की बात हो तो दोनों राज्य पीछे हट जाते हैं।
चंडीगढ़ [दयानंद शर्मा]। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ के प्रति दोहरा रूख अपनाने पर हरियाणा व पंजाब सरकारों के प्रति नाराजगी जाहिर की है। हाई कोर्ट ने कहा कि जब अधिकार की बात आती है तो दोनों राज्य चंडीगढ़ पर हक जताते हैं और जब कर्तव्य की बात हो या चंडीगढ़ के लिए कुछ करना पड़े तो दोनों राज्य पीछे हट जाते हैं।
कोर्ट ने साफ कह दिया कि चंडीगढ़ की अपनी कोई समस्या नहीं है। चंडीगढ़ में जो भी समस्या आई है वह इन दोनों राज्यों की वजह से है। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रवि शंकर झा व जस्टिस राजीव शर्मा पर आधारित बेंच ने चंडीगढ़ की सुखना लेक के संरक्षण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की है।
चीफ जस्टिस रवि शंकर झा ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि वह चंडीगढ़ में नए आए हैं, लेकिन दोनों राज्यों के चंडीगढ़ के प्रति मतलबी रुख को महसूस कर रहे हैं। चंडीगढ़ चाहे दोनों राज्यों की राजधानी है लेकिन जब शहर के संरक्षण और अस्तित्व की बात आती है तो दोनों राज्य पीछे हट जाते हैं।
सुखना को लेकर हरियाणा, पंजाब नहीं गंभीर
कोर्ट मित्र सीनियर एडवोकेट एमएल सरीन ने कोर्ट में कहा कि टाटा केमलॉट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ही साफ कर दिया कि सुखना लेक के पीछे का इलाका Wild life century का है और यह Eco-Sensitive Zone है। ऐसे में यहां किसी भी किस्म के निर्माण कार्य की इजाजत नहीं दी जा सकती है। बावजूद इसके पंजाब की ओर पड़ने वाले Sukhna Catchment Area में अभी भी निर्माण कार्य जारी हैं।
खंडपीठ ने इस पर सरीन से पूछा कि Sukhna Catchment Area क्या पंजाब और हरियाणा दोनों में आता है तो उन्होंने कहा कि इसका ज्यादातर हिस्सा पंजाब में और बाकी का हरियाणा में है। पंजाब के एरिया में हाई कोर्ट की रोक के बावजूद बड़े पैमाने में वर्ष 2010 के बाद से निर्माण कार्य जारी है, जबकि हाई कोर्ट ने आदेश दिए थे कि आगे से इस एरिया में निर्माण कार्य नहीं किए जा सकते।
Sukhna Wild Life Century के दस किलोमीटर के दायरे में निर्माण अवैध
सरीन ने टाटा केमलॉट केस का हवाला देते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने गोवा के केस का हवाला देते हुए कहा है कि टाटा केमलॉट Eco-Sensitive Zone और Sukhna Wild Life Century के दस किलोमीटर के दायरे में था। ऐसे में यहां निमार्ण की इजाजत National Board of Wildlife की Standing committee से ली जानी जरुरी थी, जो कि इस प्रोजेक्ट के लिए नहीं ली गई।
सरीन ने हाई कोर्ट को बताया कि न सिर्फ Tata Camelot Project बल्कि इस एरिया के अन्य निर्माणों के लिए इसी तरह ही Standing committee से इजाजत ली जानी जरुरी थी, जो कि नहीं ली गई। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार की उस मांग को भी ख़ारिज कर दिया था जिसमें सरकार ने 100 मीटर के दायरे तक सीमित किये जाने की मांग की थी।
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें