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सुल्तानपुर लोधी में आया मूलमंत्र ‘इक ओंकार’, रखी गई थी गुरु ग्रंथ साहिब की आधारशिला

पंजाब के वे गांव जहां गुरु नानक देव जी के पवित्र पांव पड़े, उनकी जानकारी संजोने और महत्व बताने का हमारा प्रयास है। गुरु जी के 549वें प्रकाश पर्व पर आज दैनिक जागरण की विशेष प्रस्तुति...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 23 Nov 2018 11:53 AM (IST)Updated: Fri, 23 Nov 2018 08:52 PM (IST)
सुल्तानपुर लोधी में आया मूलमंत्र ‘इक ओंकार’, रखी गई थी गुरु ग्रंथ साहिब की आधारशिला
सुल्तानपुर लोधी में आया मूलमंत्र ‘इक ओंकार’, रखी गई थी गुरु ग्रंथ साहिब की आधारशिला

चंडीगढ़/जालंधर, जागरण स्पेशल। सिख पंथ के संस्थापक, महान आध्यात्मिक चिंतक, समाज सुधारक एवं प्रथम पातशाह साहिब श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व पर देश ही नहीं बल्कि विश्व भर में समागमों की शुरुआत आज उल्लास एवं अपार श्रद्धा से हो रही है। श्री गुरु नानक देव जी ने दुनिया में मानवता का संदेश दिया है। वे जहां भी गए, वे स्थल उनकी वाणी व कर्मों से पावन हो गए।

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गुरु जी का जन्म राय भोईं की तलवंडी (अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब) में पिता मेहता कालू एवं माता तृप्ता के घर सन् 1469 ई. में हुआ। उनका अवतरण वास्तव में बैसाख, शुक्ल पक्ष में तृतीया को हुआ परन्तु सिख जगत में परंपरा के अनुसार उनका अवतार पर्व कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। पिता के आदेश अनुसार सुल्तानपुर लोधी में नौकरी के लिए आए। जीवन के करीब 15 साल गुरु जी ने यहां बिताए।

यहीं से गुरु जी की बरात बटाला के लिए रवाना हुई और शादी के बाद भी वे सुल्तानपुर लोधी में ही रहे। माना जाता है कि यहीं गुरु जी को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने मूलमंत्र ‘इक ओंकार’ का उच्चारण किया। यानी गुरु ग्रंथ साहिब की आधारशिला रखी। इसी ऐतिहासिक शहर से ही गुरु नानक देव जी ने विश्व कल्याण के लिए 1499 ईस्वी में पांच उदासियों (यात्राओं) की शुरुआत की।

पाकिस्तान के करतारपुर साहिब में उन्होंने लंगर प्रथा की शुरुआत की और यहीं ज्योति जोत समाए। चढ़दा (भारत का) व लहंदा (पाकिस्तान) पंजाब में ऐसे बहुत से स्थल हैं जहां उनके चरण पड़े। भारतीय पंजाब के करीब 46 गांव ऐसे है जिनके विकास की घोषणा सरकार ने की है। पंजाब के वे गांव जहां गुरु नानक देव जी के पवित्र पांव पड़े, उनकी जानकारी संजोने और महत्व बताने का हमारा प्रयास है। गुरु जी के 549वें प्रकाश पर्व पर आज दैनिक जागरण की विशेष प्रस्तुति...

गुरुद्वारा ननकाना साहिब
यहां है गुरु जी का प्रकाश स्थान श्री गुरु नानक देव जी का प्रकाश (जन्म) जिस स्थान पर हुआ, उसे आज ननकाना साहिब कहते हैं। इसका पुराना नाम राय भोए की तलवंडी था। 1469 ईस्वी में गुरु साहिब का जन्म माता तृप्ता व पिता मेहता कालू के घर हुआ। यह लाहौर से 80 किमी दक्षिण-पश्चिम और फैसलाबाद से 75 किलोमीटर दूर है। गुरु नानक देव के जन्म के समय इस जगह को ‘रायपुर’ के नाम से भी जाना जाता था। उस समय राय बुलार भट्टी इस इलाके का शासक था और बाबा नानक के पिता उसके कर्मचारी थे।

गुरु नानक देव की आध्यात्मिक रुचियों को सबसे पहले उनकी बहन नानकी और राय बुलार भट्टी ने ही पहचाना। राय बुलार ने तलवंडी शहर के आसपास की 20 हजार एकड़ जमीन गुरु नानकदेव को उपहार में दी थी, जिसे ‘ननकाना साहिब’ कहा जाने लगा। महाराजा रणजीत सिंह ने यहां गुरुद्वारे का निर्माण करवाया था। गुरुद्वारा प्रकाशस्थान के अलावा ननकाना साहिब में गुरुद्वारा श्री पट्टी साहिब, गुरुद्वारा क्यारा साहिब, गुरुद्वारा तंबू साहिब, आदि भी हैं।

सुल्तानपुर लोधी
गुरुद्वारा श्री बेर साहिब
गुरु जी का भक्ति स्थल : पावन नगरी सुल्तानपुर लोधी में स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री बेर साहिब श्री गुरु नानक देव जी का भक्ति स्थल होने के कारण श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र रहा है। यह सिख धर्म में वही स्थान रखता है, जो बौद्ध धर्म में गया या मुस्लिम धर्म में मक्का को प्राप्त हैं। गुरु नानक साहिब रोजाना सुबह बेई नदी में स्नान कर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाते थे। इस स्थान पर आज श्री भौरा साहिब बना है, जिसमें गुरु जी 14 साल 9 महीने 13 दिन तक रोजाना आकर भक्ति करते रहे। गुरुद्वारा बेर साहिब के दर्शनों के लिए आने वाला हर प्राणी भौरा साहिब के भी दर्शन करके जाता है। मान्यता है कि गुरु जी ने अपने भक्त खरबूजे शाह के निवेदन पर बेर के इस पौैधे को यहां लगाया था। 550 साल बाद भी यह हरीभरी है और अब काफी बड़े क्षेत्र में फैल गई है।

श्री हट्ट साहिब
‘तेरा-तेरा’ का दिया संदेश: सुल्तानपुर लोधी में ठहराव के दौरान गुरु जी ने नवाब दौलत खान लोधी के मोदी खाने में नौकरी की। किले के दक्षिण में इस मोदीखाने में गुरु जी लोगों को राशन बेचते समय जरूरतमंदों को खुले मन से राशन बांटते थे। इसी स्थान पर उन्होंने ‘तेरा-तेरा’ का उच्चारण किया था। उनके समय के 14 पवित्र बट्टे, जिनसे गुरुजी अनाज तोलते थे, आज भी यहां सुशोभित हैं।

श्री अंतरयाम्ता साहिब
यह वह स्थान है जहां ईदगाह में श्री गुरु नानक देव जी ने नवाब दौलत खान व उसके मौलवी को नमाज की असलियत बताई थी कि नवाब व मौलवी का ध्यान ईदगाह में नमाज अदा करने में नहीं काबुल में घोड़े खरीदने में है। अगर नमाज अदा करनी है तो मन को भी शरीर के साथ प्रभु के आगे सच्चे मन से अर्पित किया जाए। इस मौके पर गुरु जी ने यह संदेश दिया कि बेशक नवाब का शरीर ईदगाह में है लेकिन उसका मन तो कही दूर घूम रहा है।

श्री कोठड़ी साहिब
मोदीखाना में गुरु जी द्वारा जरूरतमंदों को अतिरिक्त राशन देने की शिकायत किसी ने दौलत खान से की। हिसाब में कुछ गड़बड़ी के इन आरोपों के कारण गुरु साहिब को राई मसूदी अकाउटेंट जनरल के घर हिसाब के लिए बुलाया गया, जहां लोगों के लगाए इल्जाम बेबुनियाद साबित हुए और हिसाब कम की जगह ज्यादा निकला था। वह अतिरिक्त धन गुरु जी को दिए जाने की पेशकश हुई तो उन्होंने लेखाकारों से उस धन को जरूरतमंदों में बांटने का आग्रह किया। जिस स्थान पर यह जांच की गई वहां अब गुरुद्वारा कोठड़ी साहिब है।

गुरुद्वारा संत घाट
मूलमंत्र का यहां किया उच्चारण : श्री बेर साहिब से तीन किलोमीटर की दूरी पर है गुरुद्वारा संत घाट। गुरु जी यहां प्रतिदिन स्नान करने आते थे और एक दिन डुबकी लगा कर 72 घंटे के लिए आलोप हो गए। कहा जाता है कि इसी दौरान उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने ‘एक ओंकार सतनाम करतापुरख’ के मूल मंत्र का उच्चारण किया।

गुरुद्वारा संत घाट
मूलमंत्र का यहां किया उच्चारण : श्री बेर साहिब से तीन किलोमीटर की दूरी पर है गुरुद्वारा संत घाट। गुरु जी यहां प्रतिदिन स्नान करने आते थे और एक दिन डुबकी लगा कर 72 घंटे के लिए आलोप हो गए। कहा जाता है कि इसी दौरान उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और उन्होंने ‘एक ओंकार सतनाम करतापुरख’ के मूल मंत्र का उच्चारण किया।

गुरुद्वारा श्री सेहरा साहिब
यह वह पविंत्र स्थान है, जहां पर श्री गुरु अर्जुन साहिब जी अपने सपुत्र गुरु हरगोबिंद साहिब जी की बरात लेकर जाते समय रात को रुके थे। सुबह होने पर इस स्थान से सेहरा बांध कर डल्ले शादी के लिए पहुंचे थे। इसी कारण इस स्थान का नाम सेहरा साहिब है। इस गुरुद्वारे को गुरु नानक देव जी ने धर्मशाला का नाम दिया था। इससे साबित होता है कि बाबा नानक जी ने सबसे पहले यहां पर धर्मशाला स्थापित की और उसमें पंछम पातशाह श्री गुरु अजुर्न देव जी और छट्ठी पातशाही व उनके पुत्र गुरु हरगोबिंद साहिब जी ठहरे थे।

मोगा में गुरु जी 40 1567 दिन रहे थे यहां
तख्तुपुरा : गुरुद्वारा नानकसर साहिब गांव वासियों और गुरुद्वारा साहिब कमेटी के मैनेजर रजिंदर सिंह से मिली जानकारी के अनुसार गुरुद्वारा तख्तुपुरा साहिब में श्री गुरु नानक देव जी वर्ष 1567 में 40 दिन तक रहे थे। इस दौरान भतृहरि नाम का एक राजा अपना राजपाट छोड़कर जोगी बन गया था और गुरु जी के साथ रहने लगा था, जिसके चलते आज भी इस गुरुद्वारा साहिब में श्री गुरु नानक देव जी के साथ साथ राजा भतृहरि की जगह बनी हुई है, जिसपर लोग नतमस्तक होते हैं।

पत्तो हीरा सिंह
गुरद्वारा गुरुसर साहिब: मोगा के गांव पत्तो हीरा सिंह में स्थित इस गुरुद्वारा साहिब में श्री गुरु नानक देव जी समेत छेवीं पातशाही हरगोबिंद साहिब, सातवें गुरु श्री हरराय और दशम पिता गुरु गोबिंद सिंह जी आए थे। दसवें पातशाह श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस गुरुद्वारा साहिब में करीर के वृक्ष से अपना घोड़ा बांधा था, जोकि इस गुरुद्वारा साहिब में बने सरोवर के किनारे पर आज भी है। वर्ष 1920 में जब इस गुरुद्वारा साहिब को बनाना शुरू किया गया था, तो इस जगह से जमीन में से एक घड़ा निकला था। घड़े में से हाथ लिखित पत्र मिला था, जिस पर चारों पातशाहियों के चरण डालने की बात दर्ज थी। इस गुरुद्वारा साहिब के हेड ग्रंथी भाई अमनदीप सिंह का कहना है कि महान कोश पन्ना नंबर 554 पर भी इस पूरी जानकारी का जिक्र है।

बटाला
कंध साहिब
यहां बारात ठहरी थी : बटाला में 24 सितम्बर 1487 को श्री गुरु नानक देव जी का माता सुलक्खनी के साथ विवाह से पहले यहां बारातियों को ठहराया गया था। यहां पर एक कच्ची दीवार थी, जहां सें गुजर रही एक बुजुर्ग महिला ने बाबा जी को कहा कि कभी भी यहां दीवार गिर सकती है। तब गुरु साहिब ने युगों-युगों तक दीवार न गिरने की भविष्यवाणी की थी। आज भी साध संगत इस दीवार के आगे नतमस्तक होने के लिए देश विदेश से पहुंचती हैं।

वडाला ग्रंथियां
श्री फलाई साहिब
यहां गरू जी ने की थी दातुन : बटाला से करीब 8 किमी दूर स्थित वडाला ग्रंथीयां के पास फलाई साहिब गुरुद्वारा वह स्थान है जहां श्री गुरू नानक देव जी ने दातुन की थी। उसके बाद दातुन को जमीन में गढ़ दिया गया। वर्तमान में वहां पर वृक्ष मौजूद हैं। जिसके समक्ष श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं।

श्री अच्चलेश्वर साहिब
जाति प्रथा के खिलाफ दिया उपदेश: बटाला से 6 किमी दूर श्री अच्चलेश्वर धाम का इतिहास काफी पुराना हैं। हिंदु-सिख एकता का प्रतीक है यह स्थान क्योंकि श्री अच्चलेश्वर मंदिर तथा गुरुद्वारा अचल साहिब के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं। यहां श्री गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा के खिलाफ उपदेश दिया था। उस दौरान महंतों का पूरा बोल बाला था। यहां पर एक बेरी का वृक्ष लगा है जिसके बेर हमेशा हरे-भरे रहते है।

डेरा बाबा नानक
यहां की 18 साल तपस्या: बटाला के कस्बा डेरा बाबा नानक में स्थित श्री दरबार साहिब गुरुद्वारा में गुरु नानक देव जी ने 17 साल 9 माह कड़ी तपस्या व किरत की। इस दौरान उन्होंने लोगों को उपदेश दिया कि कीरत करो नाम जपो, वंड छको। लोग यहां पर नतमस्तक होने के लिए दूर दूर से पहुंचते हैं। यहीं स्थित है एक अन्य ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री चोहला साहिब। यहां श्री गुरु नानक देव जी का चोहला रखा गया हैं। जिसके दर्शन करने के लिए देश विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं।

डेरा साहिब
यहां हुए थे आनंद कारज : बटाला स्थित श्री डेरा साहिब गुरुद्वारा में श्री गुरू नानक देव जी के साथ माता सुलक्खनी देवी का आनंद कारज हुआ था। आज भी यहां सितम्बर माह में गुरु साहिब व माता सुलक्खनी देवी के निमित पूरे रीति रिवाज के साथ कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

तरनतारन
खडूर साहिब
गुरद्वारा तपिआना साहिब: यहां लिखी गई गुरु जी की जन्म साखी: खडूर साहिब को आठ गुरु साहिबान जी की चरण स्पर्श प्राप्त है। श्री गुरु नानक देव जी इस नगर में शबद कीर्तन किया करते थे। गुरु जी के साथ भाई बाला जी, भाई मरदाना जी भी होते थे। इस स्थान पर दूसरी पातशाही श्री गुरु अंगद देव जी ने भाई बाला जी से श्री गुरु नानक देव जी की जन्म साखी लिखवाई थी। जिस स्थान पर यह लिखी गई वहीं गुरु अंगद जी तप भी किया करते थे। गुरद्वारा तपिआना साहिब वहीं सुशोभित है।

खालड़ा
गुरुद्वारा पातशाही पहली: सन 1501 ईसवी में श्री गुरु नानक देव जी पट्टी के किसानों को किरत करने, नाम जपने और बांट कर खाने का उपदेश देकर जब राय भोए की तलवंडी के लिए रवाना हुए, तो कुछ देर खालड़ा में उन्होंने विश्राम किया। भारत-पाक सीमा के साथ सटे कस्बा खालड़ा में गुरु जी ने सबको मिलजुल के रहने का संदेश देते हुए भेदभाव मिटाने लिए धर्मशाला कायम की। इसी जगह पर आज गुरद्वारा पातशाही पहली सुशोभित है। गुरु जी के प्रकाश पर्व मौके इस गांव में 550 पौधे लगाए जाने है।

लुहार
गुरुद्वारा डेहरा साहिब
गुरु जी का पुशतैनी गांव : श्री गुरु नानक देव जी के पिता मेहता कालू जी के जन्म स्थान गांव लुहार का नाम 600 वर्ष पहले पट्ठेविंडपुर था। बाबा मेहता कालू पढ़-लिख कर राय बुलार के पटवार खाने में काम करने लगे थे। राय के कहने पर वह राय भोए की तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाणा साहिब) चले गए, जहां माता तृप्ता जी की कोख से श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ। पिता जी के कहने पर कारोबार के लिए गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी जाते समय अपने इस पुशतैनी गांव में कुछ समय के लिए ठहरे थे। अब गुरुद्वारा डेहरा साहिब यहां की शोभा है।

दारापुर (वैरोंवाल)
गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी
धार्मिक बाणी से जोड़ा लोगों को: सुल्तानपुर लोधी से पहली उदासी पर निकले श्री गुरु नानक देव जी ने फतेहाबाद तक का सफर तीन रातों और तीन दिनों में पूरा किया। इस दौरान वह अपने रबाबी भाई बाला जी के साथ एक दिन और एक रात दरिया ब्यास के किनारे पड़ते गांव दारापुर (वैरोंवाल) में विश्राम किया। श्री गुरु नानक देव जी ने यहा पर संगतों को धार्मिक बाणी से जुड़ने का उपदेश दिया। 1947 के बाद यहां बने गुरुद्वरा साहिब का 25 वर्ष सौंदर्यकरण किया गया। आज गुरु पर्व के मौके पर यहां विशाल नगर कीर्तन निकलेगा जो सुल्तानपुर लोधी पहुंचेगा।

गोइंदवाल साहिब
गुरद्वारा गोइंदवाल साहिब
गुरु जी ने किया था विश्राम : बहन बेबे नानकी जी से आज्ञा लेकर श्री गुरु नानक देव जी जब ब्यास नदी से अमृतसर जाने के लिए चले तो उनके पास सात रुपये थे। उन्होंने उन पैसों से भाई मरदाना को रबाब ले दी। चलते हुए वे एक उजाड़ क्षेत्र में बैठ गए और शबद गायन कर सो गए लेकिन भाई मरदाना भूख से व्याकुल हुए तो गुरु जी ने उनसे कहा कि फिक्र न कर। तभी कुछ जमींदार परशादे तथा दूध, छलियां आदि ले कर वहां पहुंचे। उन्हें खा कर भाई मरदाना की भूख शांत हुई। गुरु जी के आशीर्वाद से उस उजाड़ स्थान की जगह आज श्री गोइंदवाल साहिब नगर बसा है।

अमींशाह
गुरुद्वारा बेरी साहिब
उपजाऊ धरती पर लगाई बेरी : खालड़ा में धर्मशाला का निर्माण करवाने के बाद श्री गुरु नानक देव जी गांव अमींशाह पहुंचे। यहां पर उन्होंने जाति भेदभाव मिटाने के लिए संगतों को रोज दरबार में कीर्तन सुनने के लिए प्रेरित किया। गुरु नानक देव जी ने गांव अमींशाह की उपजाऊ धरती का जिक्र करते कहा कि यह धरती देश दुनिया के अनाज भंडार भरेगी। इस धरती पर गुरु जी ने एक बेरी भी लगाई। इस स्थान की सेवा में छठी पीढ़ी के बाबा कुलवंत दास बताते है कि गुरु जी की याद में करीब 50 वर्ष पहले यहां पर गुरद्वारा साहिब बनाया गया।

लुधियाना
गुरुद्वारा गऊघाट: सन 1515 ई में गुरु नानक देव जी लुधियाना आए। उस वक्त लुधियाना पर जलाल खां लोधी का शासन था। उसके राज में गौ हत्या चरम पर थी और सतलुज नदी लगातार किनारे काटते-काटते लुधियाना की तरफ बढ़ रही थी। गुरुनानक देव जी सतलुज के किनारे पर पहुंचे और वहां विश्राम करने लगे तो जलाल खां लोधी उनकी शरण में चला गया। जलाल खां ने गुरुजी से आग्रह किया कि उनके शहर को सतलुज धीरे-धीरे खत्म करने लगी है। इसलिए सतलुज से उनके शहर को बचाएं। गुरुजी ने जलाल खां लोधी को कहा कि अपने राज्य में गौ हत्या बंद करके गायों की सेवा शुरू करो तब जाकर सतलुज के प्रकोप से शहर को बचाया जा सकेगा।

जलाल खां ने गुरुजी को वचन दिया कि वह अपने राज्य में गौ हत्या रोकेगा और गायों को संरक्षा देंगे। गुरुनानक देव जी ने उसी वक्त सतलुज को सात कोस दूर बहने का आग्रह किया। उसके बाद सतलुज लुधियाना से सात कोस दूर चली गई। इसी वक्त गुरुजी ने कहा था कि इस स्थान से बुड्डा दरिया के रूप में सतलुज यहां से बहेगी। गुरु जी के आशीर्वाद से जलाल खां ने उस जगह का नाम गऊघाट रख दिया और कालांतर में वहां पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया गया और विशाल गुरुद्वारा स्थापित किया गया। आज भी गुरुद्वारा परिसर में सरोवर है और उसके पीछे बुड्ढा दरिया है।

गुरुद्वारा ठक्करवाल
राजस्थान के ठाकुर दास ने प्रयागराज में अपने गुरु से दीक्षा ली और महंत बन गया। गुरु गद्दी को लेकर हुए विवाद के बाद ठाकुर दास पंजाब आ गया और यहां अपना डेरा बना कर उसे ठक्करवाल का नाम दे दिया। वह खुद को विद्वान समझने लगा और उसने यहां अपनी गद्दी स्थापित कर ली। गऊघाट से निकलने के बाद गुरुनानक देव जी ठक्करवाल पहुंचे। यहां ठाकुरदास को ज्ञान दे कर उसका अहंकार चूर किया। सही राह पा कर ठाकुर दास ने गुरुजी से खाना खाने का आग्रह किया। गुरुजी ने अपने चेलों के साथ यहां रोटी खाई और सुलतानपुर के लिए रवाना हो गए।

गुरुद्वारा नानकपुर जगेड़ा
गांव को दिया खुद का नाम : इस जगह पर श्री गुरुनानक देव और श्री गुरु हरगोबिंद साहिब आए थे। गुरुनानक देव जी ने इस गांव को अपना नाम दिया और गांव का नाम झिंगड़ जगेड़ा से बदलकर नानकपुर जगेड़ा कर दिया। इतिहास के अनुसार गुरु जी नानकटियाणा साहिब जाते समय झिंगड़ जगेड़ा गांव से होकर निकले। यहां पीपल के पेड़ के नीचे बने कच्चे थड़े पर बैठ गए। उस पेड़ के पास एक छपड़ी भी थी। वहां बैठकर गुरुनानक देव जी ने गांव के लोगों को अपने प्रवचन दिए। इसी दौरान उन्होंने झिंगड़ जगेड़ा गांव का नाम बदलकर नानकपुर जगेड़ा कर दिया था। इस गुरुद्वारा साहिब में भी सरोवर है और मान्यता है कि इस सरोवर में स्नान करने से व्यक्ति निरोग हो जाता है। गुरुद्वारा साहिब के अंदर उस स्थान पर थड़ा बनाया गया है जहां पर गुरुनानक देव जी बैठे थे। लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए इस थड़े पर खिलौने वाले हवाई जहाज चढ़ाते हैं। वहीं छठे पातशाही ग्वालियर के किले से 52 पहाड़ी राजाओं को रिहा करके ला रहे थे तो वह भी वापसी में इस जगह पर आए थे।

अमृतसर
वैरोके
गुरुद्वारा बाबे की बेर साहिब यहां फकीर बख्तावर को मिले: गांव वैरोके में स्थित गुरुद्वारा बेर साहिब लोपोके से करीब 4 किलोमीटर दूर है। गुरुनानक देव जी इस गांव में फकीर शाह बख्तावर को मिलने के लिए आए थे। यहां एक गिरा हुए बेरी का पेड़ था। कहते है कि इसी पर बैठ कर फकीर के साथ गुरु जी ने वार्ता की। इस फकीर की मजार भी इस गांव के बाहर स्थित है। गुरुद्वारा बेरी के स्थान पर ही बना है। अब यहां बेरी के दो वृक्ष हैं। जिनकी शाखाएं उसी गिरे हुए बेरी के वृक्ष से निकली हैं जिस पर गुरु साहिब ने बैठ कर फकीर बखतावर से बातचीत की थी।

वेरका
गुरुद्वारा नानकसर साहिब
सरोवर में स्नान से रोग किया मुक्त: अमृतसर से करीब 7 किलोमीटर दूर इस गुरुद्वारे का निर्माण 18 वीं शताब्दी में हुआ। प्रथम गुरु जी 1487 ई. में ननकाना साहिब से बटाला जाते समय वेरका में इस स्थान पर रुके थे। गुरु जी ने एक बीमार बच्चे को पास ही स्थित छप्पड़ी में स्नान करवाने को कहा। स्नान करने के बाद बच्चा धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा। इस छप्पड़ी को ही नानकसर कहा जाता है। गुरु जी ने इस स्थान को वर दिया-सुके हरे कीये थिन माहि। सरोवर के पास गुरुद्वारा नानकसर स्थापित है।

सठियाला
नानक सर पातशाही पहली
यहां स्वास्थ्य संबंधी उपदेश दिया: बाबा बकाला से चार किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में स्थित गांव सठियाला में स्थित यह गुरुद्वारा वह स्थान है जहां के तलाब के पास बैठकर गुरु जी ने सिख धर्म का प्रचार किया था। संगत में सब से अधिक मुस्लिम महिलाएं थीं। जिन को गुरु साहिब ने त्वचा रोगों और पोलियो आदि बीमारियों के संबंध में जानकारी दी थी। जो उस वक्त इस गांव में खतरनाक बीमारियां थी। कहा जाता है कि उस वक्त गुरु साहिब ने यह संदेश दिया कि महिलाएं अपने बच्चों को इस तलाब में प्रतिदिन स्नान करवाएं तो बीमारियों से बच्चे बचे रहेंगे। आज भी उस पवित्र सरोवर में स्नान की महत्ता है।

उद्दोके खुर्द
गुरुद्वारा थम्म साहिब
यहां करीब 10 माह रुके थे गुरु जी: खडूर साहिब से कुछ दूर गांव उद्दोके खुर्द है। पहले गुरु जी विवाह के लिए बटाला जाते समय यहां आए थे और नन्ही बीबी इसरो उन्हें मिली। उसी से किए वायदे को पूरा करने के लिए उदासियों के दौरान वे यहां आ कर रुके। एक कुंए के पास वह 9 महीने 26 दिन एक कोठा बना कर रहे और संगत को उपदेश देते थे। बरसात से जब कोठे का शतीर गिरने लगा तो गुरु जी ने उसे कंधे से रोक लिया। गांव छोड़ते हुए गांव वालों से कहा कि यह शतीर हमेशा इस गांव की रक्षा करेगा। आज भी वह गुरुद्वारा थम्म साहिब, जो पहले श्री कोठा साहिब कहलाता था, के रूप में सुशोभित है।

नवांशहर
हकीमपुर
गुरुद्वारा नानकसर: नवांशहर की तहसील बंगा के गांव हकीमपुर स्थित गुरुद्वारा नानकसर में गुरु नानक देव जी तीन दिनों तक रुके थे। इसके अलावा यहां पर श्री गुरु हरि राय जी भी करतारपुर से किरतपुर जाते हुए आए थे। इसके बाद नवम गुरु श्री तेगबहादुर जी भी यहां आए थे। यहां गुरुद्वारा साहिब का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने करवाया था।

फरीदकोट
लंभवाली
गुरुद्वारा श्री अकालगढ़ साहिब: सिख इतिहास के अनुसार श्री गुरु नानक देव जी, अपनी यात्रा के दौरान गांव लंभवाली से गुजर रहे थे। इस दौरान भाई मरदाना जी ने पानी के लिए गुरु साहिब से पूछा। गुरु साहिब ने भाई मरदाना जी को पास के टिब्बे पर जाकर पानी लाने के लिए कहा। यहां गुरु हरगोबिंद साहिब जी और गुरु गोबिंद सिंह जी भी आए।

पटियाला
छींटावाला (नाभा)
गुरुद्वारा चौबारा साहिब: यात्रा के दौरान गुरु नानक देव जी यहां 17 दिन रुके थे। कमालपुर काले से होते हुए गुरु जी इस गांव में पहुंचे और भगत चन्नन मल जाडा खत्री के घर पर पहुंचे तो उन्होंने गुरु जी का आसन अपने चौबारे में बड़ी श्रद्धा से लगाया। चौबारे की चौगाठ आज भी इस पवित्र स्थान पर सुशोभित है। आसा दी वार के सूतक वाला श्लोक यहीं कहा गया।

अबोहर
हरिपुरा
गुरुद्वारा बाड़ तीर्थ साहिब: अबोहर से 17 किलोमीटर दूर गांव खुइयां सरवर में हरिपुरा में श्री गुरु नानक देव जी पहली उदासी के दौरान इस स्थान पर रहे थे। गांव के उत्तर में पानी का एक गहरा सरोवर था, जो तीर्थयात्रा का एक प्राचीन स्थान था और इसे बुरी तीरथ के नाम से जाना जाता था, जिसके चलते इस गुरुद्वारा बाड़ तीरथ साहिब पड़ा।

संगरूर
मंगवाल
नानकियाना साहिब: संगरूर स्थित नानकियाना साहिब (मंगवाल) में श्री नानकियाना साहिब गुरुद्वारा स्थापित है। सन 1497 ई से 1509 ई तक हुई श्री गुरु नानक देव जी पहली उदासी के दौरान भाई लालो को मिल कर नगर सैदपुर (ऐमनाबाद) से सीधे रावी, ब्यास व सतलुज नदी पार कर के मालेरकोटला, मनसूरपुर (छिंटा वाला), अकोई साहिब होते हुए इस स्थान पर पहुंचे। यह छोटा सा गांव है। इस स्थान पर गुरु जी ने संगत को उपदेश दिया। यहां तीन पातशाहियों के चरण पड़े।

कमालपुर
32 वर्ष की आयु में आये यहां दिड़बा से कुछ दूर गांव कमालपुर का यह गुरुद्वारा साहिब कमालपुर से दियालगढ़, खनाल कलां के चौक पर सुशोभित है। गुरुद्वारे की प्रबंधकीय कमेटी के प्रधान जगविंदर सिंह व अकाली नेता तेजा सिंह ने बताया कि इस गुरुद्वारा साहिब की धरती को श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु हरगोबिंद साहिब व श्री गुरु तेग बहादुर के चरण स्पर्श प्राप्त है। गुरु नानक देव जी 32 वर्ष की आयु में भागल, चीके, खरौदी होते हुए कमालपुर पहुंचे थे। इसके बाद छींटावाला, कोटला व फिर बीबी नानकी के याद करने पर हरीके पत्तण पहुंचे थे।

अकोई साहिब
गुरुद्वारा मंजी साहिब: संगरूर स्थित अकोई साहिब सिख जगत का वह पवित्र स्थान हैं, जहां पहली, छठी, नौंवी व दसवीं पातशाही ने चरण डाले। श्री गुरु नानक देव जी 1508 ई में यहां पहुंचे। जब संगत ने गुरु जी के मुख से बाणी के कीर्तन की आवाज सुनी तो संगत जमा हुई। तब गुरु जी ने संगत से पूछा कि यह कौन-सा नगर है। तो एक बुजुर्ग ने कहा कि यह ‘कोई नगर नहीं है’, तो गुरु साहिबान ने कहा कि ‘यहां पर नगर अकोई साहिब होगा’। बाद में नगर का नाम अकोई साहिब ही रखा गया। यहां से गुरु जी ने कांझला की तरफ कूच किया। यहां रुक कर सिखी का प्रचार करने के कारण यहां श्री गुरुद्वारा मंजी साहिब स्थापित है।

सुनाम
चार दिन रुके यहां सुनाम में स्थापित ऐतिहासिक गुरुद्वारा साहिब स्थल पर गुरु नानक देव जी अपनी पहली उदासी के दौरान चार दिन रुके थे। इतिहासकारों के अनुसार गुरु नानक देव जी महाराज ने मूनक के नजदीक गांव अनदाना से सुनाम का रुख किया था। भाई बाला जी और भाई मरदाना जी के साथ संवत 1566 विक्रमी को गुरु नानक देव जी यहां पहुंचे और यहां बहती हंसना नदी (प्राचीन सरस्वती नदी) के किनारे पर डेरा लगाया। इस दौरान एक ब्राह्मण परिवार ने गुरु नानक देव जी की सेवा की और चार दिन के प्रवास के बाद वे सुलतानपुर की ओर चल दिए। बाद में नदी किनारे उस स्थान पर गुरुद्वारा साहिब का निर्माण किया गया।

बठिंडा
लक्खी जंगल
गुरुद्वारा लक्खी जंगल साहिब जपुजी साहिब का किया पाठ : गांव लक्खी जंगल में गुरु नानक देव जी ने एक लाख से ज्यादा जपुजी साहिब का पाठ किया था। इसी के चलते यहां पर ऐतिहासिक गुरुद्वारा भी बना हुआ है। जहां पर हर गुरुपर्व पर भारी मेला भी लगता है। वहीं गुरु जी ने वरदान भी दिया था कि पूर्णमासी के दिन जो प्राणी जपुजी साहिब जी का पाठ करेगा या सुनेगा उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। इसके अलावा दिल्ली से लाहौर जाने के समय मीरी पीरी के मालिक छठे पातशाह गुरु हरगोबिंद सिंह जी भी लक्खी जंगल में रुके थे, जिनके बाद सातवें पातशाह गुरु हरराय साहिब जी व दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी 1762 विक्रमी में लक्खीजंगल की धरती पर अपने चरण रखे थे।

कोठे नाथियाणा
गुरद्वारा जितासर: बठिंडा जिले के गांव मेहमा सरजा में गुरु नानक देव जी आए और वहां पर भाई जीता जी से मिले। भाई जीता जी गुरु जी की शिक्षाओं से प्रभावित हुए और उन्होंने मुक्ति मांगी। गुरु जी ने 10वें गुरु के रूप में उन्हें मुक्ति का वायदा कियो। इस प्रकार दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह लक्खी जंगल से होते हुए गांव मेहमा सरजा पहुंचे और भाई जीता को मुक्ति दी। वहां पर आज विशाल गुरुद्वारा साहिब स्थित है। भाई जीता को सेवा के बदले गुरु जी ने वर दिया गया कि यहां पर हमेशा ही ठंडा और मीठा जल मिलेगा। पहले यह गुरुद्वारा साहिब मेहमा सरजा में स्थित था लेकिन बाद में गांव के रकबे में से और कई गांव बन गए और यह गुरुद्वारा साहिब गांव कोठे नाथियाना में आ गया।


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