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ग्राउंड वाटर रिचार्ज हो, इसलिए पीएल वर्मा ने दिया सुखना बनाने का आइडिया

चंडीगढ़ बनाने के लिए आर्किटेक्ट और एक्सपर्ट की टीम फाइनल हो चुकी थी।

By Edited By: Published: Mon, 14 Sep 2020 07:29 PM (IST)Updated: Tue, 15 Sep 2020 09:31 AM (IST)
ग्राउंड वाटर रिचार्ज हो, इसलिए पीएल वर्मा ने दिया सुखना बनाने का आइडिया
ग्राउंड वाटर रिचार्ज हो, इसलिए पीएल वर्मा ने दिया सुखना बनाने का आइडिया

चंडीगढ़, [बलवान करिवाल]। चंडीगढ़ बनाने के लिए आर्किटेक्ट और एक्सपर्ट की टीम फाइनल हो चुकी थी। फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से कहा कि काम शुरू करने के लिए वे इंजीनियर्स की टीम फ्रांस से लेकर आएंगे। उन्हें इंडियन इंजीनियर्स पर भरोसा नहीं था। लेकिन चीफ इंजीनियर परमेश्वरी लाल वर्मा (पीएल वर्मा) ने कहा कि इंजीनियर फ्रांस से नहीं आएंगे, वे खुद यह काम अपनी टीम के साथ करेंगे। उसके बाद उन्होंने इंजीनियर आग्या राम और स्ट्रक्चर डिजाइनर महेंद्र राज के साथ मिलकर काम शुरू किया। फिर एक समय ऐसा भी आया, जब पीएल वर्मा की रिटायरमेंट के बाद भी ली कार्बूजिए चाहते थे, वे उन्हें सहयोग करते रहे। इसके लिए पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने पंजाब सरकार से वर्मा की एक्सटेंशन के लिए अपील भी की। ली कार्बूजिए ने नेहरू से शिकायत की थी कि यह टीम नहीं होगी तो चंडीगढ़ का काम पूरा नहीं हो सकता। 1971 में पीएल वर्मा को पद्म भूषण से नवाजा गया।

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उस जमाने में की कंक्रीट वर्क की शुरुआत, बना दिए थे 30 फीट के कंटीलीवर

चंडीगढ़ की अधिकतर बिल्डिंग कंक्रीट से बनी हैं। उस जमाने में विदेशों के अंदर ही कंक्रीट बिल्डिंग का चलन था। भारत में कंक्रीट से काम नहीं होता था। पीएल वर्मा और उनकी टीम ने चैलेंज लेते हुए कंक्रीट के स्ट्रक्चर बनाए। इंजीनियर आग्या राम ने पंजाब यूनिवर्सिटी के गांधी भवन, एडमिन ब्लॉक और स्टूडेंट सेंटर जैसी बिल्डिंग गढ़ी। उनकी इंजीनियरिंग का ही कमाल है कि उस जमाने में उन्होंने 30 फीट के कंटीलीवर बनाने का जोखिम उठाया था। जो आज भी उदाहरण है। अब तो एडवांस्ड टेक्नोलॉजी और संसाधन के बावजूद बिल्डिंग गिर जाती है। कैपिटल कांप्लेक्स जैसी बिल्डिंग 70 साल बाद भी मिसाल है। जबकि अब सेक्टर-17 में बनी मल्टीलेवल पार्किंग की बिल्डिंग तीन साल में ही टपकने लगी है।

पानी को बचाना था मकसद

सुखना लेक बनाने का आइडिया पीएल वर्मा का ही था। लेक से पहले इस एरिया में बड़ी वाटर बॉडी होती थी। उन्होंने आर्किटेक्ट ली कार्बूजिए से कहा कि ग्राउंड वाटर रिचार्ज करने के लिए यह वाटर बॉडी बहुत उपयोगी है। इसको ऐसे ही रखते हुए नया स्वरूप दिया जाना चाहिए। जिसके बाद लेक बनाने का निर्णय लिया गया। उस समय अगर लेक नहीं बनाई होती तो पूरे शहर को हर साल बाढ़ का प्रकोप झेलना पड़ता। अब लेक की वजह से इतने पानी को स्टोर कर फ्लड गेट से जरूरत पड़ने पर खोले जा सकते हैं। पंजाब यूनिवर्सिटी के लिए दूसरे सेक्टर से दी जमीन बंटवारे के बाद लाहौर से पंजाब यूनिवर्सिटी को चंडीगढ़ के सेक्टर-14 में शुरू करने की प्लानिंग बन चुकी थी। लेकिन एक सेक्टर की जमीन यूनिवर्सिटी के लिए कम पड़ गई। जिसके बाद इसे दूसरी जगह शिफ्ट किए जाने की बात चली। लेकिन पीएल वर्मा ने यूनिवर्सिटी के लिए रियायती दर पर दूसरे सेक्टर में जमीन देने का फैसला लिया। यही वजह है कि यूनिवर्सिटी सेक्टर-14 और 25 दो जगह अलग कैंपस में है।

जब चंडीगढ़ बनाने की शुरुआत हुई, उस समय भारत में अच्छे आर्किटेक्ट भले ही कम हों, लेकिन इंजीनियरिंग का काम अच्छा था। भाखड़ा डैम जैसे बड़े प्रोजेक्ट इंजीनियर बना रहे थे। पीएल वर्मा मिट्टी, पानी, मेटीरियल क्वालिटी खुद चेक करते थे। उस जमाने का कंक्रीट वर्क अब भी मिसाल है। इंजीनियर आग्या राम ने पीयू में शानदार काम कर बड़ी बिल्डिंग से लेकर 30 फीट के कंटीलीवर तक बना दिए।

-दीपिका गांधी, डायरेक्टर, ली कार्बूजिए सेंटर।


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