Move to Jagran APP

पराली प्रबंधन के लिए सरकार के बड़े दावे, हकीकत एेसी कि सारे प्रयास नाकाफी

पराली प्रबंधन के लिए सरकार भले ही बड़े दावे कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि ये सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 09 Oct 2018 12:20 PM (IST)Updated: Tue, 09 Oct 2018 12:20 PM (IST)
पराली प्रबंधन के लिए सरकार के बड़े दावे, हकीकत एेसी कि सारे प्रयास नाकाफी
पराली प्रबंधन के लिए सरकार के बड़े दावे, हकीकत एेसी कि सारे प्रयास नाकाफी

चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। पराली प्रबंधन के लिए सरकार भले ही बड़े दावे कर रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि ये सारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। पराली की समस्या का समाधान करने के लिए इस साल केंद्र सरकार ने 650 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था जो किसानों को मशीनरी खरीदने के लिए सब्सिडी के रूप में दिए जाने थे।

loksabha election banner

दिलचस्प बात यह है कि अब जबकि धान की कटाई जोरों पर है, लेकिन अभी तक मात्र 32 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं। हालांकि, सरकार का दावा है कि उन्हें 269 करोड़ रुपये मिल चुके हैं। जैसे जैसे तरह से मशीनें लोगों के पास पहुंचनी शुरू हो रही हैं वैसे यह फंड रिलीज किए जाते रहेंगे। मगर यहां सवाल यह उठता है कि जब 15 दिनों में धान की कटाई होकर पराली का प्रबंधन शुरू हो जाएगा और यह मशीनरी किसानों तक पहुंच ही न सकी तो इसका लाभ क्या होगा?

पिछले साल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्र सरकार, पंजाब व हरियाणा को फटकार लगाते हुए छोटे किसानों को निशुल्क मशीनरी उपलब्ध करवाने का आदेश दिया था, जिसके तहत केंद्र सरकार ने व्यक्तिगत तौर पर मशीनरी खरीदने पर 50 फीसद और ग्रुप में या सोसायटी के जरिए खरीदने पर 80 फीसद सब्सिडी दी जा रही है।

क्यों हुई देरी?

खेती विभाग से जुड़े सूत्रों के अनुसार इस बात का फैसला होने में ही महीने से ज्यादा समय लग गया कि किस मशीनरी पर कितनी सब्सिडी दी जानी है। अप्रैल में हुए फैसले को लागू करने में तीन माह लगने के बाद जो इंडस्ट्री इसे बनाती है, उसकी पहचान करने और किसानों को प्रेरित करने में ही ज्यादातर समय बीत गया, जिस कारण आज भी कुल जरूरत के मुताबिक 5 फीसद मशीनरी भी उन तक नहीं पहुंच पाई है।

एसएमएस ही बचाएगी लाज...

पराली की समस्या के समाधान के वैसे तो कई रास्ते हैं, लेकिन सबसे आसान रास्ता इसे जमीन में ही चूरा करके खपा देने का है, जिसके लिए कंबाइनों पर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) लगाकर दिए जा रहे हैं। इसके लिए किसानों को 50 फीसद सब्सिडी दी जाती है। पंजाब में इस समय दस हजार कंबाइनें हैं, जो धान की कटाई करती हैं। इनमें से तीन हजार के करीब कंबाइनों पर इसे फिट कर दिया गया है।

यह मशीन धान के अवशेष, पराली का कुतरा कर देती है, जिसे ट्रैक्टर के जरिए जुताई करके जमीन में खपा दिया जाता है। इससे जमीन को बायोमास मिल जाता है और किसानों की यूरिया की खपत कम हो जाती है। वहीं, किसानों की पराली का प्रबंध भी हो जाता है। यह एसएमएस 1.12 लाख रुपये का है, जो किसानों को 56 हजार रुपये में लगाकर दिया जाता है। शेष 56 हजार की सब्सिडी सरकार वहन करती है।

पहाड़ जैसी समस्या, राई जैसे प्रयास

  • 650 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था सरकार ने इस साल पराली प्रबंधन के लिए
  • 32 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं अब तक
  • 269 करोड़ रुपये पहुंचने का दावा कर रही है सरकार
  • 50 फीसदी सब्सिडी व्यक्तिगत रूप से मशीनरी खरीदने पर दे रही सरकार
  • 80 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है ग्रुप में या सोसायटी के जरिए खरीद पर
  • 05 फीसद मशीनरी भी नहीं पहुंच पाई है किसानों तक
  • 03 हजार कंबाइनों में फिट किया गया है स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम

किसानों की समस्या को भी समझने की जरूरत

पंजाब किसान आयोग के सचिव बलविंदर सिंह सिद्धू का कहना है कि पराली को जलाने से बचाने में बहुत से मित्र कीटों का नाश हो जाता है, लेकिन किसानों की समस्या को भी समझने की जरूरत है। वे पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं। उन पर मशीनरी खरीदने का और बोझ डालना सही नहीं है। इसे कोऑपरेटिव सोसायटी के जरिए उपलब्ध करवाकर उन्हें देना चाहिए, ताकि छोटे किसानों पर इसका बोझ न पड़े। दूसरा, खेती मूल्य एवं लागत आयोग जब धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करता है, तो उसे सौ रुपये प्रति क्विंटल पराली का प्रबंध करने के लिए दिया जाए। हमें जमींदारों से लगातार मिलकर उन्हें पराली को न जलाने के लिए प्रेरित करना चाहिए न कि उन्हें धमकाना चाहिए।

क्या करने की जरूरत...

सबसे बड़ी समस्या लगातार धान का रकबा बढ़ने के कारण पराली की ज्यादा उपलब्धता है। इसी सीजन में कई दालें भी होती हैं, चूंकि इनकी खरीद नहीं है, इसलिए किसानों ने पंजाब में दाल उगाना ही बंद कर दिया है। पंजाब में 65 लाख परिवार हैं। उनकी सालाना दाल की जरूरत दस से 12 हजार टन की है। देश में दस हजार करोड़ से ज्यादा की दाल विदेश से आयात की जाती है। यानी हम इस आयात पर इतनी भारी विदेशी मुद्रा उपयोग करते हैं। उपभोक्ताओं को 80 से 120 रुपये किलो मिलती है।

खेती माहिरों का कहना है कि पंजाब में 6 से 8 क्विंटल दाल प्रति एकड़ हो सकती है। यदि सरकार किसानों से 60 रुपये किलो लेकर इसे 80 रुपये में उपभोक्ताओं को उपलब्ध करवा दे, तो जहां उनकी विदेशी मुद्रा बचे वहीं, पानी और बिजली की भी बचत होगी। इस बचत को भावांतर के रूप में किसानों को दिया जा सकता है।

पराली से बायोचार बना बढ़ सकती है उपज

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) लुधियाना के भूमि विज्ञान विभाग ने ईंट व गारे से एक भट्ठी बनाकर उसमें पराली से बायोचार (परालीचार) बनाने की तकनीक विकसित की है। वैज्ञानिकों का दावा है कि बायोचार के प्रयोग से जहां फसल का उत्पादन बढ़ता है, वहीं भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। शोधकर्ता सीनियर सॉयल केमिस्ट डॉ. आरके गुप्ता के अनुसार बायोचार धान की पराली को ऑक्सीजन की गैर मौजूदगी में कम तापमान में जला कर तैयार किया जाता है।

बायोचार बनाने के लिए पहले ईंट व मिट्टी के गारे से गुबंद वाली चौदह फीट ऊंची व दस फीट ब्यास वाली भट्टी तैयार की जाती हैं। भट्ठी में उपर से नीचे तक तीन जगहों पर छोटेछोटे छेद छोड़े जाते हैं। इसके अलावा भट्ठी के निचले हिस्से में एक खिड़की बनाई जाती है और ऊपर के हिस्से को भी खुला छोड़ा जाता है। सबसे पहले नीचे की खिड़की से भट्ठी में पराली भरी जाती है। जब खिड़की तक पराली भर जाती है, तब ईंट व गारे से खिड़की को बंद कर दिया जाता है।

इसके बाद सीढ़ी के माध्यम से ऊपर से पराली को भट्ठी के अंदर डालकर पूरी तरह से भरा जाता है। इसके बाद ऊपर की खुली जगह से ही पराली में आग लगा दी जाती है। आग लगाने के तुरंत बाद खुली जगह को ढक्कन रखकर गारे के साथ सील कर दिया जाता है। थोड़ी देर बाद ढक्कन के नीचे बनाए गए छोटे छेदों से पहले साफ धुआं और फिर पतली नीली लाट निकलती है। इसका अर्थ यह होता है कि ऊपर वाले हिस्से में बायोचार बन गई है। इसके बाद ऊपर के छेदों को मिट्टी के गारे से बंद कर दिया जाता है। ऊपर की आग इसके बाद नीचे बीच के हिस्से में आती है। यहां भी छेदों के जरिए पहले साफ धुआं और फिर पतली नीले रंग की लाट निकलती है। इसका संकेत यह होता है कि बीच के हिस्से में भी बायोचार बन गई है।

इसके बाद बीच के छेदों को भी तुरंत बंद कर दिया जाता है। अब आग अपने अंतिम चरण अर्थात निचले हिस्से में पहुंचती है। जहां एक बार फिर से छेदों से पहले साफ धुएं के बाद पतली नीले रंग की लाट निकलती नजर आती है। इसका अर्थ है कि नीचे के हिस्से में भी बायोचार बनकर तैयार है। नीचे के छेदों को भी अन्य छेदों की तरह बंद कर दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब आठ से दस घंटे लगते है। छेदों को बंद करने के बाद पूरी भट्ठी पर पतले गारे का घोल डाला जाता है। दो दिन बाद बायोचार को प्रयोग के लिए बाहर निकाला जाता है।

12 क्विंटल पराली से साढ़े सात क्विंटल बायोचार

  • कार्बन: 30 से 36 फीसद
  • नाइट्रोजन: 0.5 से 0.6 फीसद
  • फास्फोरस:  0.16 से 0.22 फीसद 
  • पोटाश: 2.0 से 2.5 फीसद
  • भट्ठी में कुल 12 क्विंटल पराली लगती है। इससे सात से साढ़े सात क्विंटल बायोचार तैयार होता है।

बायोचार से दस फीसद बढ़ा गेहूं व धान का उत्पादन

  • बायोचार के फायदे जानने के लिए भूमि विज्ञान के फार्म पर चार वर्षों तक अध्ययन किया गया।
  • वर्ष 2016 में यूनिवर्सिटी के सीड फार्म लाडोवाल में एकएक एकड़ के दो खेतों में धान की खेती पर बायोचार के प्रभाव को जाना।
  • एक खेत में 110 किलो यूरिया व 25 किलो डीएपी का प्रयोग किया, जबकि दूसरे एक एकड़ खेत में भट्ठी में तैयार किया गया दो टन बायोचार, 75 किलो यूरिया व 25 किलो डीएपी का प्रयोग किया।
  • जिस खेत में बायोचार का प्रयोग किया गया था, उस खेत में धान का झाड़ 24.3 क्विंटल हुआ, जबकि बिना पराली चार वाले खेत में 22 क्विंटल धान का झाड़ प्राप्त हुआ।
  • वर्ष 2013 से लगातार तीन साल तक यूनिवर्सिटी के अंदर रिसर्च फार्मों में धान व गेहूं पर इसका प्रयोग किया गया।
  • गेहूं व धान के उत्पादन में दस फीसद की बढ़ोतरी देखी गई।
  • बायोचार प्रयोग वाले खेतों की भूमि में तीन साल के बाद 57 फीसद फास्फोरस, 200 फीसद पोटाश, 27 फीसद ऑर्गेनिक कार्बन, जैविक मादा व डी हाइड्रोजिनेस एक्टिविटी में वृद्धि दर्ज की गई।
  • भूमि की भौतिक गुणों में भी सुधार आया। (पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के  विशेषज्ञ डॉ. आरके गुप्ता के अनुसार)

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.