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गवर्नमेंट प्रेस बंद : यादें दफन और मझधार में भविष्य, कर्मचारियों ने कुछ यू बयां किया दर्द Chandigarh News

गवर्नमेंट प्रेस में 40 से अधिक इंप्लाइज ऐसे हैं जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते। कुछ पांच से भी कम पढ़े हैं। वह गवर्नमेंट प्रेस में सालों से नौकरी कर यहां के माहौल में ढले हुए थे।

By Edited By: Published: Mon, 30 Sep 2019 09:17 PM (IST)Updated: Tue, 01 Oct 2019 04:12 PM (IST)
गवर्नमेंट प्रेस बंद : यादें दफन और मझधार में भविष्य, कर्मचारियों ने कुछ यू बयां किया दर्द Chandigarh News
गवर्नमेंट प्रेस बंद : यादें दफन और मझधार में भविष्य, कर्मचारियों ने कुछ यू बयां किया दर्द Chandigarh News

चंडीगढ़ [बलवान करिवाल]। 36 साल जिसने मां की तरह रोटी दी, हर सुख दुख में परिवार का सहारा बनी, अब उस गवर्नमेंट प्रेस से नाता टूट गया है। यह प्रेस चलती थी तो उनके घरों में चूल्हे जलते थे। हर इंप्लाइज के अच्छे-बुरे वक्त का प्रेस ही सहारा थी। लेकिन प्रेस के बंद होने से उनकी की यादें भी साथ ही चली जाएंगी। जहां इतना अरसा बिताया, आगे कभी वहां आकर अपने पुराने दिनों को याद भी नहीं कर सकेंगे। गवर्नमेंट प्रेस के अंतिम दिन इंप्लाइज ने भावुक मन से कुछ इसी तरह से अपना दर्द बयां किया। गवर्नमेंट प्रेस बंद होने से कुछ इंप्लाइज ने तो वीआरएस के लिए लिख दिया है। हालांकि प्रशासन ने वीआरएस का प्रावधान नहीं रखा है।

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40 इंप्लाइज ऐसे जो लिखना-पढ़ना नहीं जानते

गवर्नमेंट प्रेस में 40 से अधिक इंप्लाइज ऐसे हैं जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते। कुछ पांच से भी कम पढ़े हैं। वह गवर्नमेंट प्रेस में सालों से नौकरी कर यहां के माहौल में ढले हुए थे। लेकिन अब नई जगह जाकर नया काम करने का सवाल इन इंप्लाइज के मन में है। बाइंडिंग जैसे काम में वह परफेक्ट थे लेकिन जब तक नया काम समझने लगेंगे रिटायरमेंट हो जाएगी। ऐसे कई इंप्लाइज ने आगे नौकरी करने में असमर्थता जता दी है।

सम्मान को ठेस क्यों पहुंचा रहे हो

गवर्नमेंट प्रेस में प्रिंटिंग सेक्शन इंचार्ज सुरिंद्र सिंह ने कहा कि 1983 में उन्होंने प्रेस ज्वाइन की थी। 36 साल नौकरी को हो गए। 33 साल की लंबी नौकरी और कड़ी मशक्कत के बाद सेक्शन इंचार्ज बने। अब इंप्लाइज को ट्यूबवेल ऑपरेटर और कंडक्टर जैसे पदों पर रीडिप्लॉय किया जाना उनके सम्मान को ठेस पहुंचाना है। इंप्लाइज के लिए यह समय बहुत संवेदनशील है। 80 प्रतिशत इंप्लाइज पांच साल में रिटायर हो रहे हैं। कोई मकान बनाने की सोच रहा था तो कोई बच्चों की शादी के बारे में। लेकिन अब अपनी मां जैसी गवर्नमेंट प्रेस से अलग होने का गम झेलना बस से बाहर लग रहा है।

वहीं सुपरिंटेंडेंट स्तर के इंप्लाइज दर्शन भल्ला ने कहा कि गवर्नमेंट प्रेस बंद होने के बाद भले ही इंप्लाइज को दूसरी जगह रीडिप्लॉय किया जा रहा है। लेकिन यह सब उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाकर हो रहा है। सुपरिंटेंडेंट लेवल के इंप्लाई के नीचे प्रेस में 25 से 30 इंप्लाइज काम करते हैं। सुपरवाइजरी का काम देखने वाले इंप्लाइज को क्लर्क लगाया जा रहा है। प्रतिष्ठा को दांव पर लगा वह ऐसा नहीं कर सकते। इसलिए आगे नौकरी नहीं करने का फैसला लिया है। उनके सम्मान का ध्यान रखा जाता तो जरूर नौकरी करते। जनवरी 2022 में उनकी रिटायरमेंट है। 36 साल की सर्विस के बाद यह अपमान सहकर नौकरी नहीं की जा सकती।

जनरल फोरमैन नरेश कोहली ने कहा कि इंटर डिपार्टमेंटल ट्रांसफर में और प्रेस बंद होने से दूसरी जगह नौकरी करने में बहुत अंतर है। इंटर डिपार्टमेंटल ट्रांसफर में इंप्लाइज कोर्ट केस जीत कर वापस अपने मूल डिपार्टमेंट में चले गए हैं। हमारा तो मायका ही खत्म हो रहा है। हम कभी अपने डिपार्टमेंट में आ ही नहीं सकेंगे। जिस प्रेस में इतने साल खपा दिए अब रिटायरमेंट के वक्त वहां से विदा नहीं हो सकेंगे।

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