सरकार के पास सुरक्षा का फालतू खर्च घटाने का मौका, 600 करोड़ का है सालाना भार
15 हजार मुलाजिम सिर्फ सुरक्षा में ही तैनात हैं। एक कांस्टेबल का वेतन 60 से 70 हजार रुपये है। यदि आधे भी निजी लोगों की सुरक्षा में लगे हैं तो खजाने पर लगभग 630 करोड़ का बोझ कम होगा।
चंडीगढ़ [इन्द्रप्रीत सिंह]। Coronavirus COVID-19 के चलते पटरी से उतर रही आर्थिकता को दोबारा अपने पांव पर खड़ा करने के लिए पंजाब सरकार के पास इस समय बहुत बड़ा मौका है। आज कैबिनेट के सामने सभी विभागों ने अपने खर्चों में कटौती करने का प्रस्ताव देना है, ताकि भविष्य में सरकार को कर्मचारियों के वेतन में कटौती न करनी पड़े। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पिछली कैबिनेट बैठक में वित्त मंत्री मनप्रीत बादल से सभी विभागों के फालतू खर्चों में कटौती करने का एजेंडा लाने के लिए कहा था।
कोरोना संकट को देखते हुए सभी सांसदों ने अपने वेतन में तीस फीसद कटौती की हामी भर दी है। सवाल यह है कि क्या मंत्री, विधायक व मुख्यमंत्री ऑफिस में लगे तमाम ओएसडी और सलाहकार भी अपने वेतन में तीस फीसद कटौती करवाएंगे या फिर वह गुजारिश करेंगे कि अगले दो साल में उनके वेतन का आयकर खुद भरेंगे।
मुख्यमंत्री ने पहले भी विधायकों से अपने वेतन का आयकर खुद भरने के लिए कहा था, लेकिन सिर्फ फतेहगढ़ साहिब के विधायक कुलजीत सिंह नागरा ने ही ऐसा किया। एक साल में एक विधायक का लगभग 80,000 रुपये आयकर सरकार भरती है। इस तरह सालाना आठ करोड़ रुपये से अधिक आयकर सरकार अदा करती है।
दूसरा बड़ा सवाल वीआइपी लोगों और विवादित नेताओं की सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों को लेकर है। पंजाब में ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो विवादित बयान देते हैं और फिर जब जान से मारने की धमकियां मिलती हैं तो पुलिस उन्हें न सिर्फ सुरक्षा कर्मी मुहैया करवाती है, बल्कि जिप्सी आदि भी देती है। इनका पेट्रोल खर्च अतिरिक्त तौर पर है।
पंजाब पुलिस के सूत्रों के मुताबिक करीब 15 हजार मुलाजिम सिर्फ सुरक्षा में ही तैनात हैं। एक कांस्टेबल का वेतन 60 से 70 हजार रुपये है। यानी यदि आधे भी निजी लोगों की सुरक्षा में लगे हैं तो खजाने पर लगभग 630 करोड़ रुपये का सालाना बोझ है। सरकार इनका खर्च क्यों वहन कर रही है। इसी तरह आइएएस, आइपीएस, पीसीएस, ज्यूडिशियल अफसरों को दी जाने वाली गाडिय़ों का खर्च है। यह खर्च 200 करोड़ रुपये सालाना है। इस खर्च को कम करने के लिए वित्त विभाग ने एक सॉफ्टवेयर तैयार किया है जिसमें सभी अफसरों, जिन्हें गाड़ी अलॉट है, को अपना यात्रा से संबंधित सारा डेटा पोर्टल पर भरना पड़ता है।
यह सॉफ्टवेयर पिछले साल तैयार किया था। ऐसा करने मात्र से ही 25 करोड़ रुपये सालाना बच रहे हैं। विभाग ने पेट्रोल खर्च को और कम करने के लिए 25 हजार रुपये महीना यात्रा खर्च देने का भी सुझाव दिया था, लेकिन अफसरों ने उसे ठुकरा दिया था। शुक्रवार की कैबिनेट बैठक में राज्य सरकार के पास यह मौका है कि वह कोरोना से पैदा हुए आर्थिक संकट से उभरने के लिए ऐसे कदम उठा सकती है।
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