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..किताबों से लेकर जायकों तक

शंकर सिंह, चंडीगढ़ : बात जो किताबों से शुरू हुई, तो जायकों तक पहुंची। चंडीगढ़ लिटरेरी सोसा

By JagranEdited By: Published: Mon, 19 Nov 2018 06:08 AM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 06:08 AM (IST)
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शंकर सिंह, चंडीगढ़ : बात जो किताबों से शुरू हुई, तो जायकों तक पहुंची। चंडीगढ़ लिटरेरी सोसायटी द्वारा आयोजित लिटराटी-2018 के आखिरी दिन साहित्य, पंजाबी गीत और खाने पर भी चर्चा हुई। रविवार को सुबह से ही लोग लेक क्लब में स्पीकर को सुनने पहुंचे। फेस्टिवल का पहला सेशन जयश्री सेठी का रहा, जहां उन्होंने स्टोरी टेलिंग पर लेक्चर दिया। इसके अलावा उन्होंने दो घंटे की वर्कशॉप भी कंडक्ट की, जिसमें उन्होंने स्कूली बच्चों को स्टोरी टेलिंग के गुर सिखाए। वेलेंटाइन नहीं, भारत में मनाना चाहिए काम दिवस

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फेस्टिवल का दूसरा सेशन खास रहा। इसमें प्रसिद्ध लेखक गुरचरण दास, सिद्धार्थ गिग्गू और लिली स्वर्ण ने हिस्सा लिया। इसका शीर्षक गुरुचरण की किताब कामा डायरीज पर रखा गया। जिसमें उन्होंने कामसूत्र पर बात की है। बोले कि भारतीय कामसूत्र में बहुत विविध पहलू हैं। जिसमें केवल सेक्स नहीं, बल्कि प्यार की विविध रचना और एक सही शैली को बताया गया। आज सेक्स एक बड़ा बाजार बन गया है। मगर उससे जुड़ी शैली, प्रकृति और भाव को बिल्कुल खत्म कर दिया गया है। भारतीय समाज तो पहले से ही इतना जागरूक और बुद्धिमान रहा है, जिसने काम के लिए भी शास्त्र बनाया। समस्या ये हुई की इसे बाद में बेहद छोटी नजर से देखा जाने लगा। अपनी किताब को लिखने के लिए मैंने कई वेदों को भी पढ़ा। ये एक खूबसूरत जर्नी रही। मैंने देखा कि विदेश ने इसे कई तरीकों से लिया। आज का समय हालांकि अच्छा है, जहां हर तरह की सोच देश में है। वैसे एक बात है कि हम भारतीय विदेशी चीजों को जल्दी अपनाती है, हमारे देश में तो कामसूत्र पहले से है, ऐसे में हमें काम दिवस मनाना चाहिए, न कि वेलेटाइन डे। आस्था नहीं, अंधविश्वास से पीछा छुड़ाओ

फेस्टिवल का अगला सेशन शिव खेड़ा का रहा, जहां वो अपनी नई किताब यू कैन अचीव मोर पर बात करने पहुंचे। इसके साथ ही उन्होंने लोगों को खुद को प्रोत्साहित करने से जुड़े कई मुद्दों पर बात की। बोले कि कुछ दिनों पहले मैं एक कार से कहीं जा रहा था, अचानक ड्राइवर ने ब्रेक लगा दी। मैंने पूछा क्या हुआ, तो उसने कहा कि सामने से एक बिल्ली ने रास्ता काट दिया। मैं हैरान था, मैंने पूछा कि इससे क्या होगा, उसने कहा कि साहब बहुत बुरा। अब जब तक कोई यहां से गुजर नहीं जाता, मैं नहीं जाउंगा। मुझे हैरानी हुई कि ये क्या सोच लेकर हम बैठे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारा पढ़ा लिखा वर्ग ये नहीं सोचता। वो भी ये ही सोच रहा है। ये किस तरह के अंधविश्वास में हम जी रहे हैं। मेरी बेटी की शादी के दौरान एक बाबा ने कहा कि ये मांगलीक है, तो इसकी शादी किसी पेड़ से पहले करनी होगी। क्या ये एक सही सोच है। मुझे आस्था से कोई परेशानी नहीं, मगर अंधविश्वास से है। हमें एक नए देश में इस जागरूकता को जरूर लाना होगा। इश्क में कुछ नहीं रखा, फ्रिज में देखो बहुत कुछ रखा है..

फेस्टिवल का अगला सेशन खाने पर आधारित रहा। इसमें मास्टरशेफ की विजेता पंकज भदौरिया, कांडला निझोवन और राजन बेदी ने खाने को लेकर बातचीत की। पंकज ने कहा कि भारत में खाने में बहुत विविधता है। मगर समस्या ये है कि हम खाने को सपाट बना देते हैं। खाने में कलर और उसकी सजावट बहुत महत्व रखती है। ऐसे में खाने में रंग ज्यादा होने चाहिए, इसको डेकोरेटिव बनान जरूरी है। शेफ कांडला ने कहा कि खाने के साथ हमें नए एक्सपेरिमेट्स जरूर करने चाहिए। खाने में बहुत विविधता है, ऐसे में हमें इसकी कहानी और इसके इतिहास में जरूर जाना चाहिए। खाने को जितना खोजोगे, उसमें कई कहानियां मिलेंगी साथ ही नया स्वाद भी।


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