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कीमो और रेडिएशन भूल जाइए, बस एक टेबलेट करेगा फेफड़े के Cancer का इलाज

Chandigarh PGI के डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन में इस प्रकार के लंग कैंसर के 400 मरीजों को महज एक टेबलेट देकर सफल इलाज किया जा रहा है।

By Edited By: Published: Wed, 04 Dec 2019 07:23 PM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 01:24 PM (IST)
कीमो और रेडिएशन भूल जाइए, बस एक टेबलेट करेगा फेफड़े के Cancer का इलाज
कीमो और रेडिएशन भूल जाइए, बस एक टेबलेट करेगा फेफड़े के Cancer का इलाज

चंडीगढ़, [वीणा तिवारी]।  अगर आपको फेफड़े का कैंसर (लंग एडीनोकार्सिनोमा) है, तो तत्काल किसी अच्छे डाइग्नोस्टिक सेंटर में ईजीएफआर और एएलके टेस्ट कराएं। इन दोनों में से एक भी टेस्ट पॉजिटिव आने पर कीमो और रेडिएशन की बजाय महज एक टेबलेट से उस कैंसर का इलाज संभव होगा। जानकारी के अभाव में आज भी हजारों मरीजों का आसान इलाज की बजाय कीमोथेरेपी और रेडिएशन से ट्रीटमेंट किया जा रहा है।

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Chandigarh PGI के डिपार्टमेंट ऑफ पल्मोनरी मेडिसिन में इस प्रकार के लंग कैंसर के 400 मरीजों को महज एक टेबलेट देकर सफल इलाज किया जा रहा है। यह जानकारी डिपार्टमेंट के एडिशनल प्रो. नवनीत सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि जानकारी के अभाव में टारगेटेड थेरेपी से किए जा रहे इस इलाज का लाभ बहुत सीमित मरीजों तक ही पहुंच पा रहा है।

बढ़ रहा सर्वाइवल रेट

डॉ. नवनीत ने बताया कि ईजीएफआर और एएलके टेस्ट में पॉजिटिव आने वाले मरीजों को महज एक टेबलेट के बल पर बेहतर इलाज दिया जा सकता है। इससे जहां एक ओर कीमो और रेडिएशन से होने वाले साइडइफेक्ट से बचाव होता है। दूसरी ओर मरीज की सर्वाइवल दर चार से पांच साल तक बढ़ जाती है।

मरीज को चंद दिनों पर कीमो के लिए हॉस्पिटल आने और तमाम तरह के दर्द सहने की नौबत नहीं आती। अलग-अलग कंपनियों की उपलब्ध टेबलेट को डॉक्टर की सलाह के अनुसार बस प्रतिदिन एक लेना होता है। दो से तीन महीने पर फॉलोअप के लिए हॉस्पिटल जाना होगा है।

कैंसर का बढ़ता दंश

आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2018 से 2040 के बीच प्रथम कीमोथेरेपी की आवश्यकता वाले रोगियों की संख्या 98 लाख से बढ़कर 1.5 करोड़ हो जाएगी। द लांसेट, ऑन्कोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कीमोथेरेपी वाले मरीजों की संख्या में 2018 के 63 प्रतिशत से 2040 में 67 प्रतिशत तक की एक स्थिर वृद्धि होगी। यह स्थिति बेहद गंभीर और चिंताजनक है। अगर इससे बचाव की ओर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में स्थिति और भयानक होगी।

फेफड़ा बचाना है तो इससे बचें

डॉ. नवनीत ने बताया कि फेफड़े के कैंसर का सबसे बड़ा कारण धूमपान और तंबाकू प्रोडक्ट का सेवन करना है। इसके अलावा फैक्ट्री से निकलने वाला धुआं, प्रदूषण का बढ़ता स्तर, रहन-सहन व खान-पान भी इसके लिए काफी काफी हद तक जिम्मेदार बनती जा रही है।

फेफड़े के कैंसर के 25 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं जो धूमपान नहीं करते। इसलिए फेफड़े में परेशानी संबंधी किसी भी तरह के लक्षण सामने आने पर तत्काल डॉक्टर को दिखाएं और जरूरी जांच कराएं।

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