Move to Jagran APP

पाकिस्तानी पत्रकार की डॉक्यूमेंट्री देख सन्न रह गए फ्लाइंग सिख

बल्कि वह विश्वास भी मर जाता है जोकि वर्षो के भरोसे के बाद बनता है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Mar 2020 08:50 PM (IST)Updated: Mon, 16 Mar 2020 06:14 AM (IST)
पाकिस्तानी पत्रकार की डॉक्यूमेंट्री देख सन्न रह गए फ्लाइंग सिख
पाकिस्तानी पत्रकार की डॉक्यूमेंट्री देख सन्न रह गए फ्लाइंग सिख

विकास शर्मा, चंडीगढ़ : दंगों में सिर्फ लोग ही नहीं मरते बल्कि वह विश्वास भी मर जाता है जोकि वर्षो के भरोसे के बाद बनता है। बंटवारे के दौरान हुए दंगों में अपने परिवार को खोने वाले फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह बताते हैं कि यह दर्द आज भी कई बार उन्हें सोते-सोते जगा देता है। दैनिक जागरण से बातचीत में मिल्खा सिंह ने बताया कि कुछ दिन पहले उन्हें पाकिस्तान के मुल्तान से एक लोकल पत्रकार का फोन आया। उस पत्रकार ने मेरे गांव के बारे में पूछा। मैंने उसे बताया कि मेरे गांव का नाम गोबिंदपुरा था जोकि मुल्तान के करीब है। इसके बाद उस पत्रकार ने पहले तो गोबिंदपुरा गांव को तलाशा जो अब पाकिस्तान में बस्ती बुखारियां के नाम से जाना जाता है। इसके बाद वह छह घंटे का सफर तय कर मेरे गांव पहुंचा। मेरे दोस्तों को आज भी याद हूं मैं

loksabha election banner

मिल्खा सिंह के बताते हैं कि मुझे हैरानी है कि उस पत्रकार ने गांव में जाकर पहले तो 80-90 साल के बुजुर्गो से मेरे बारे में जानकारी ली और उसके बाद उनसे हमारे बचपन के किस्सों के बारे में पूछा। मिल्खा बताते है कि मेरे साथ मस्जिद में पढ़ने वाले लोगों को आज भी मैं और मेरा परिवार याद है। इस पत्रकार ने बाद में मुझे ट्रैवल टू फ्लाइंग सिंह मिल्खा विलेज गोबिंदपुरा नाम से एक वीडियो फुटेज का लिक भेजा। जिसमें मैंने देखा कि आज भी मेरे गांव के लोग मुझे और मेरे परिवार को याद करते हैं। इतना ही नहीं, कुछ बुजुर्गो को मेरे पिता सम्पूर्ण सिंह तक का नाम याद था। उन्होंने मेरे भाईयों समेत गांव के सभी सिख परिवारों के नाम बताए। बंटवारे के दौरान हुई हिसा के बारे में और हमारे बचपन के किस्सों के बारे में उस पत्रकार को बताया। इन दोस्तों ने बताया कि कैसे हम मस्जिद में पढ़ते थे और कैसे मेरे परिवार को दंगाइयों ने मार डाला था। यह वीडियो देखकर मुझे वो सारा मंजर याद आ गया जिसे भुलाते-भुलाते वर्षो में मैं बूढ़ा हो गया था। इसने मुझे काफी दुखी किया लेकिन साथ ही खुशी भी हुई कि लोगों के दिलों में आज भी हम जिंदा हैं। आज सुनाई देता है भाग मिल्खा भाग

मिल्खा बताते हैं कि मेरे कानों में आज भी भाग मिल्खा भाग सुनाई देता है। मुझे आज भी बंटवारे को वो मंजर याद आता है तो मैं सिहर जाता हूं। मिल्खा सिंह बताते हैं कि उन्होंने गुलामी और देश के बंटवारे का दर्द झेला है, यही वजह है कि जब वह 1960 में पाकिस्तान दौड़ने गए तो उनके मन में यही था कि यह दौड़ प्रतियोगिता नहीं युद्ध का मैदान है और मैं हारा तो मेरा देश हार जाएगा। मैंने जीत हासिल की तो पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान ने मुझे बुलाकर कहा कि मिल्खा आज तुम दौड़े होते तो यकीनन हार जाते लेकिन आज तुम उड़े हो और इसलिए उन्होंने मुझे उड़न सिख की उपाधि दी थी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.