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International Father's Day: पीजीआइ डायरेक्टर प्रो. जगतराम ने कभी पेड़ों के नीचे गुजारी थी रात, पिता की बातों ने पहुंचाया मंजिल तक

फादर्स डे पर डॉ. जगतराम ने बताया कि पिता दयानुराम अनपढ़ थे। उनके लिए 12वीं कक्षा तक पढ़ाई करना ही काफी था लेकिन मेरी जिद्द थी कि मैंने डॉक्टरी करनी है और जो लोग बिना इलाज के मर जाते हैं उनके लिए कुछ करना है।

By Ankesh ThakurEdited By: Published: Sun, 20 Jun 2021 12:52 PM (IST)Updated: Sun, 20 Jun 2021 06:00 PM (IST)
International Father's Day: पीजीआइ डायरेक्टर प्रो. जगतराम ने कभी पेड़ों के नीचे गुजारी थी रात, पिता की बातों ने पहुंचाया मंजिल तक
पिता दयानुराम के साथ पीजीआइ चंडीगढ़ के डायरेक्टर प्रो. जगतराम और उनकी पत्नी।

चंडीगढ़, [सुमेश ठाकुर]। पीजीआइ चंडीगढ़ के डायरेक्टर प्रो. जगतराम के पिता दयानुराम किसान थे। वह दिन-रात एक करके खेतों में काम करते थे और घर में रोटी जुटाने से लेकर घर के हर खर्च को चलाते थे। वह हमेशा बोलते थे कि जो भी काम शुरू किया है उसे पूरा जरूर करो। आधा-अधूरा कोई काम नहीं छोड़ना। यदि काम पूरा न कर सको तो तो बेहतर है कि उसे शुरू मत करो। यह कहना है पीजीआइ चंडीगढ़ के डायरेक्टर प्रो. डॉ. जगतराम का।

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फादर्स डे पर डॉ. जगतराम ने बताया कि पिता दयानुराम अनपढ़ थे। उनके लिए 12वीं कक्षा तक पढ़ाई करना ही काफी था लेकिन मेरी जिद्द थी कि मैंने डॉक्टरी करनी है और जो लोग बिना इलाज के मर जाते हैं उनके लिए कुछ करना है। उस समय पिता ने कहा कि ठीक है अगर तुम्हें डॉक्टर बनना है तो बनो लेकिन फिर काम पूरा करके आना। ऐसा न हो कि पढ़ाई बीच में छोड़ दो या फिर जब नौकरी मिले तो उसे बीच में छोड़ दो। पिता के शब्दों का डर भी था और प्रेशर भी। इसके चलते मैंने पहले पढ़ाई पूरी की और उसके बाद पीजीआइ चंडीगढ़ में आकर काम करना शुरू कर दिया। डॉक्टर जगतराम ने बताया कि 12वीं कक्षा की पढ़ाई तक मैंने पापा के साथ खेतों में काम किया है और देखा था कि थकान होने पर भी वह कभी घर नहीं लौटते थे बल्कि थोड़ी देर खेत में बैठकर आराम करते और दोबारा काम पर जुट जाते।

खुले में रात गुजारना पिता के शब्दों का असर

डॉक्टर जगतराम ने बताया कि जब मैं पहली बार पीजीआइ में ज्वाइनिंग के लिए आया तो मेरे पास पैसे नहीं थे और न ही चंडीगढ़ की ज्यादा जानकारी थी। मुझे सुबह ड्यूटी ज्वाइन करनी थी लेकिन रात को रुकने के लिए कोई जगह नहीं मिली। उस समय भी मुझे पिता के शब्द याद आए कि यदि डॉक्टरी करनी है तो पूरे किए बिना मत लौटना। मैं उसी सोच के साथ पहली बार पेड़ों के नीचे खुले में सो गया और सुबह उठकर ड्यूटी भी ज्वाइन कर ली।

डॉक्टर के पेशे के साथ पापा के शब्दों को रखता हूं हमेशा याद

प्रो. जगतराम ने बताया कि डॉक्टरी की पढ़ाई जब कर रहे होते हैं तो हमें बताया जाता है कि मरीज और जरूरत के आगे दिन-रात नहीं देखा जाता। उस समय सिर्फ मरीज देखा जाता है। उसी के साथ मैं अपने पापा की बातों को भी याद रखता हूं कि हमेशा काम पूरा करके वापस आना है। आज मैं डायरेक्टर बन चुका हूं लेकिन यदि आज भी मुझे कभी फील्ड में उतरना पड़े तो वह मेरे लिए कोई परेशानी या शर्म नहीं है बल्कि पिता की दी हुई जिम्मेदारी है कि तूने मरीज को इलाज के बिना मरने नहीं देना।


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