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कर्नाटक मॉडल से कम हो सकती हैं पंजाब में किसान आत्महत्याएं

कर्नाटक स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के चेयरमैन डॉ. टीएन प्रकाश का कहना है कि पंजाब भी कृषि में कर्नाटक मॉडल अपनाए तो यहां किसानाें की खुदकुशी कम हो सकती है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 19 Jun 2018 12:17 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jun 2018 08:57 PM (IST)
कर्नाटक मॉडल से कम हो सकती हैं पंजाब में किसान आत्महत्याएं
कर्नाटक मॉडल से कम हो सकती हैं पंजाब में किसान आत्महत्याएं

चंडीगढ़, [इन्द्रप्रीत सिंह]। पंजाब सरकार यदि कृषि में कर्नाटक सरकार का मॉडल अपनाए, तो यहां किसान आत्महत्या की घटनाओं में कमी आ सकती है। आत्महत्या में कमी लाने और उन्हें उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाने के लिए चार साल पहले बनाए गए कर्नाटक एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। पिछले चार वर्षों में किसानों पर कर्ज का तनाव कम हुआ है। यह दावा है कर्नाटक स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के चेयरमैन डॉ. टीएन प्रकाश का।

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-कर्नाटक एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के चेयरमैन डॉ. टीएन प्रकाश से विशेष बातचीत

वह दो दिन तक चंडीगढ़ में चली डायलॉग हाईवे की नेशनल कांफ्रेंस में हिस्सा लेने के लिए आए थे। जागरण ने उनसे किसानों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति और उनकी समस्याओं के समाधान को लेकर चर्चा की। डॉ. प्रकाश ने बताया कि कर्नाटक सरकार ने इस ओर कदम उठाया है। किसानों को समय पर उनकी फसलों का उचित मूल्य न मिलने से ही उन पर कर्ज का बोझ बढ़ता है। फिर इस कर्ज को उतारने की चिंता में ही वह आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं।

डॉ. प्रकाश ने बताया कि कर्नाटक सरकार ने 2014 में स्टेट प्राइस कमीशन का गठन किया था। इसमें हम फसलों की कीमत सुनिश्चित करते हैं और अगर खुले बाजार में कीमत उससे नीचे जाती है, तो फसल की खरीद सरकार करती है। इसके लिए एक पोर्टल बनाया गया है और पूरे राज्य के किसानों को इस पोर्टल के जरिए फसल की कीमत बताई जाती है, ताकि वे इससे नीचे न बेचें।

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कमीशन के चेयरमैन ने बताया कि रौंगी, ज्वार, तुअर की दाल, सुपारी, धान समेत दस फसलें हैं, जिनकी कीमत राज्य सरकार तय करती है और कीमत गिरने पर अपनी कीमत पर उसकी खरीद करती है। उन्होंने बताया कि इस सारी खरीदी गई फसलों को राज्य सरकार की विभिन्न स्कीमों के तहत विभागों को बेच दिया जाता है, जिससे सरकार पर इसका बोझ नहीं पड़ता।

यह है मॉडल

डॉ. प्रकाश ने बताया कि जेलों, आंगनबाड़ी केंद्रों, मिड-डे-मील सहित तमाम सरकारी संस्थानों में बनने वाले खाने में राज्य सरकार की ओर से खरीदे गए खाद्यान्न का इस्तेमाल किया जाता है। मार्केट में जैसे ही सरकार फसलों की खरीद शुरू करती, वैसे ही व्यापारी अपना दाम बढ़ा देते हैं और किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम मिलने लगता है।

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यह पूछे जाने पर कि आखिर इसके लिए पैसा कहां से आता हैए उन्होंने बताया कि एपीएमसी एक्ट के अधीन 1.5 फीसद सैस मंडियों में बिकने वाली फसल पर लगाया है, जिससे सरकार को 1500 करोड़ रुपये से ज्यादा की आमदनी होती है। इस राशि को इसी गैप फंडिंग के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

व्यापारियों का नेक्सस नहीं बनता

डॉ. प्रकाश ने कहा कि राज्यों के लिए यह फॉर्मूला बहुत अच्छा है, क्योंकि इससे बाजार में व्यापारियों पर नेक्सस न बनाने का दबाव बना रहता है। उन्हें मालूम है कि अगर सरकार ने खरीद कर ली, तो उसे तय दाम से ज्यादा ही अदा करने होंगे।

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प्रसिद्ध एग्रो अर्थशास्त्री दविंदर शर्मा ने भी डॉ. प्रकाश के इस दावे की वकालत की है कि अगर सरकार पंजाब में धान के अलावा वैकल्पिक फसलों को गैप फंडिंग देना शुरू कर दे, तो धान का रकबा कम होने लगेगा। खुद सरकार की अपनी आटा-दाल योजना में सरकार को दालों की जरूरत है। इन्हें प्रमोट करके सरकार खरीद करके इस योजना को चलाए। इसी तरह जेलों में भी दालों की जरूरत होती है।


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