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किसान नेताओं ने बदली रणनीति, राजेवाल बोले- अब विपक्षी दलों का भी होगा विरोध, महंगाई के खिलाफ भी प्रदर्शन

किसान आंदोलन के राजनीतिक संरक्षण के आरोप लगने के बाद किसान नेताओं ने आंदोलन की रणनीति बदल दी है। किसान नेता अब विपक्षी दलों का भी विरोध करेंगे। 17 जुलाई को विरोधी नेताओं को मांग पत्र सौंपा जाएगा।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 06 Jul 2021 12:46 PM (IST)Updated: Tue, 06 Jul 2021 02:36 PM (IST)
किसान नेताओं ने बदली रणनीति, राजेवाल बोले- अब विपक्षी दलों का भी होगा विरोध, महंगाई के खिलाफ भी प्रदर्शन
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल की फाइल फोटो।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों ने अब विरोध की रणनीति बदल दी है। आंदोलन के राजनीतिकरण होने के आरोप लगने के बाद किसान नेता अब विपक्ष के नेताओं का भी विरोध करेंगे। किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि कृषि कानूनों के खिलाफ अब किसान सत्तारूढ़ नहीं, बल्कि विपक्षी पार्टी के नेताओं का भी विरोध करेंगे। 

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चंडीघड़ में पत्रकारों से बातचीत करते हुए राजेवाल ने कहा कि किसानों की आवाज संसद में न उठाने वाले राजनीतिक दलों के नेताओं का विरोध किया जाएगा। किसान नेता इस संबंध में विपक्ष के नेताओं को 17 जुलाई को मांग पत्र देंगे और किसानों की मांग को संसद में उठाए जाने की मांग करेंगे। 

किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि 22 जुलाई से करीब 200 किसानों का जत्था हर रोज पार्लियामेंट की तरफ कूच करेगा। यही नहीं, किसान नेताओं ने महंगाई के खिलाफ भी विरोध प्रदर्शन की रणनीति तैयार की है। किसान पेट्रोल डीजल और रसोई गैस के बढ़ते दामों के खिलाफ 8 जुलाई को 10 से बारह बजे सुबह सड़कों पर वाहन और गैस सिलेंडर लेकर विरोध प्रदर्शन करेंगे। राजेवाल ने कहा कि इस दौरान लोगों को दिक्कत न हो इसका ध्यान रखा जाएगा। सड़कों पर जाम नहीं लगाया जाएगा, बल्कि किसान अपने वाहन सड़क किनारे खड़े कर प्रदर्शन करेंगे।

बता दें, किसान लंबे समय से कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। सात महीने से किसान दिल्ली बार्डर पर धरने पर बैठे हैं। इससे पहले पंजाब में भी लंबा आंदोलन चला। इसी की परिणति रही कि पंजाब में अकाली भाजपा गठबंधन टूटा। केंद्र में मंत्री रही हरसिमरत कौर बादल को इस्तीफा देना पड़ा। इस बीच किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं पर आरोप लगे हैं कि वह विपक्षी दलों के इशारे पर काम कर रहे हैं। इन्हीं आरोपों से बचने के लिए किसान नेताओं ने यह रणनीति बनाई है। 

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