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हमको लक्ष्मण रेखा न समझाएं हम अपनी सीमाएं जानते हैं : हाईकोर्ट

आशुतोष महाराज मामले में सुनवाई के दौरान संस्थान के वकील की टिप्पणी पर हाई कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई। कहा कोर्ट को उनकी मर्यादा या लक्ष्मण रेखा न बताई जाए।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 05 Dec 2016 08:17 PM (IST)Updated: Mon, 05 Dec 2016 08:53 PM (IST)
हमको लक्ष्मण रेखा न समझाएं हम अपनी सीमाएं जानते हैं : हाईकोर्ट

जेएनएन, चंडीगढ़। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान नूरमहल (जालंधर) के संस्थापक आशुतोष महाराज की समाधि पर सिंगल बेंच के फैसले पर लगातार अधिकार क्षेत्र को लेकर टिप्पणी करने पर हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने संस्थान को कड़ी फटकार लगाई है। हाई कोर्ट ने कहा कि बार-बार हमें लक्ष्मण रेखा न समझाएं, कोर्ट अपनी सीमाएं और अधिकार दोनों जानती है। सोमवार को आशुतोष महाराज के कथित पुत्र और संस्थान ने अपना पक्ष रखा, जिसके बाद हाईकोर्ट ने 13 दिसंबर के लिए अगली सुनवाई निर्धारित की है।

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मामले की सुनवाई आरंभ होते ही कथित पुत्र दलीप कुमार झा की ओर से उनके वकील एसपी सोई ने सिंगल बेंच के आदेशों को डिवीजन बेंच के सामने पढ़ा और इसके बाद अपनी दलीलें आरंभ कीं। उन्होंने कहा कि दलीप झा ही आशुतोष महाराज का बेटा है। आशुतोष महाराज और दलीप झा के डीएनए टेस्ट से सच्चाई सामने आ जाएगी।

हाई कोर्ट ने कहा कि यदि दलीप झा आशुतोष महाराज का बेटा है तो भी जब तक महाराज के मृत या समाधि में होने का मामला नहींं सुलझता तब तक बेटा साबित होने पर भी कोई लाभ नहींं है। इस पर सोई ने कहा कि महाराज के शरीर को कुछ दिन बाहर रखा गया था और शरीर विकृत होना आरंभ हो गया था, जिसके बाद शरीर फ्रीजर में रखा गया। ऐसा होने पर यह सिद्ध हो जाता है कि महाराज मृत हैं, समाधि मेंं नहीं। इससे पूर्व समाधि के उदाहरण मौजूद जरूर हैं, लेकिन किसी भी मामले में समाधि में जाने वाले व्यक्ति को फ्रिज में नहींं रखा गया है।

दलीप झा का पक्ष सुनने के बाद हाई कोर्ट ने संस्थान को पक्ष रखने को कहा। संस्थान ने सीधे तौर पर दलीप झा और महाराज के कथित ड्राइवर पूर्ण सिंह को सवालों के घेरे मेंं लिया। सिंगल बेंच के आदेशों का हवाला देते हुए संस्थान ने कहा कि इन आदेशों में दलीप को महाराज का बेटा मानने से इन्कार किया जा चुका है। साथ ही पूर्व में दाखिल झा और पूर्ण सिंह की याचिकाओं में उनका महाराज से संबंध साबित नहीं हुआ है। ऐसे में यह याचिका ही आधारहीन थी जिसे सिंगल बेंच को सुनना नहीं चाहिए था।

मामले में केवल जनहित याचिका बनती थी। ऐसे में मामला खारिज कर स्वयं संज्ञान लेकर जनहित याचिका के तौर पर सुना जाए। इस पर हाई कोर्ट ने संस्थान के वकील को चेताया कि कोर्ट को उनकी मर्यादा या लक्ष्मण रेखा न बताई जाए। हम अपनी सीमाएं जानते हैं और ऐसे में चाहे तो संज्ञान ले भी सकते हैं, लेकिन जैसी स्थिति बनी है उसे देखकर आंखें नहीं मूंद सकते हैं।

नहींं चाहते हैं और देरी हो

हाई कोर्ट में संस्थान ने इस मामले मेंं स्वयं संज्ञान लेकर सुनवाई करने की बात कही तो हाईकोर्ट ने स्पष्टï कर दिया कि जनवरी 2014 से यह मामला लंबित है। इस मामले में सिंगल बेंच में सुनवाई हो चुकी है और डिवीजन बेंच भी काफी हद तक इसे सुन चुकी है। ऐसे में इस मामले का निपटारा करना चाहते हैं। जनहित याचिका के तौर पर सुनना आरंभ किया तो और अधिक समय लगेगा जो कोर्ट नहीं चाहती है।

फैसला जरूरी वरना स्थिति विकट हो जाएगी

हाईकोर्ट ने कहा कि आज केवल आशुतोष महाराज के शरीर को लेकर मामले की सुनवाई हो रही है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या समाधि मेंं केवल आशुतोष महाराज ही जा सकते हैं या फिर उनके चेले भी। यदि ऐसी स्थिति रही तो हर कोई अपने प्रियजन की मृत्यु पर उसके शरीर मेंं वापस लौटने की राह देखते हुए शव घर में रखना आरंभ कर देगा। ऐसा हुआ तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।

शरीर के निपटारे को लेकर नहीं है कानून

हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार से पूछा कि क्या शरीर के निपटारे से जुड़ा कोई कानून है। पंजाब सरकार ने बताया कि अभी तक न तो केंद्र ने ऐसा कोई कानून बनाया है और न ही राज्य सरकार के पास। संस्थान ने कहा कि जब कोई कानून ही नहींं है और शरीर को संभाल कर पूरे सम्मान के साथ रखा गया है तो संस्थान को कैसे रोका जा सकता है। रोज आशुतोष महाराज के शरीर की पूजा की जाती है और इससे ज्यादा सम्मान क्या होगा।

कानून नहीं तो क्या सामाजिक नियम तो हैं

हाईकोर्ट ने संस्थान की दलील के बाद कहा कि यदि कानून नहींं है तो भी समाज के नियमों के लिहाज से इस स्थिति को देखना जरूरी है, क्योंकि यहां बात विश्वास की भी है। इच्छा कुछ भी हो सकती है और भले ही कानून में प्रावधान न हो, लेकिन समाज भी अहम है। कोई व्यक्ति दो महिलाओं से संबंध रखता है और इसमें कोई कानूनी अड़चन नहीं है, फिर भी समाज इसे स्वीकार नहीं करता है। इसी प्रकार शरीर को लेकर भी स्थिति बनती है। इस मामले में सामाजिक दृष्टिï से विचार करना भी जरूरी है।

समाधि या मौत पहले यह फैसला, बाकी सब बाद में

हाईकोर्ट में कथित बेटे ने अंतिम संस्कार के दावे और संस्थान ने दलीप झा के महाराज का बेटा न होने की दलील दी। इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सबसे पहले कोर्ट में यह बहस और निर्णय होगा कि महाराज मृत हैं या समाधि में हैं। इसका फैसला होने के बाद ही अन्य पक्षों पर सुनवाई होगी। हाईकोर्ट अब सुनवाई पर तथ्यात्मक बहस सुनेगा।

फ्रीजर की दलील स्वीकार नहीं

दलीप झा के वकील ने दलील दी कि समाधि मेंं शरीर विकृत नहीं होता है और महाराज मृत थे तभी शरीर खराब होना आरंभ हुआ। उन्हें फ्रीजर में रखना पड़ा। पूर्व में कभी समाधि और फ्रीजर का कोई जोड़ दिखाई नहीं दिया है। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि इस दलील को माना नहींं जा सकता है, क्योंकि पूर्व में ज्यादातर समाधि हिमालय में होती थी, जहां तापमान कम होता था।

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