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Coronavirus भी नहीं रोक पाया बत्ता को 126वीं बार खून देने से, 15 राजधानियों में कर चुके हैं रक्तदान

16वें राज्य में रक्तदान करने के लिए उन्होंने तीन अप्रैल को मिजोरम की राजधानी आइजोल जाना था इसकी फ्लाइट की टिकट भी बुक करवा ली थी।

By Edited By: Published: Sat, 25 Apr 2020 07:14 PM (IST)Updated: Sun, 26 Apr 2020 09:47 AM (IST)
Coronavirus भी नहीं रोक पाया बत्ता को 126वीं बार खून देने से, 15 राजधानियों में कर चुके हैं रक्तदान
Coronavirus भी नहीं रोक पाया बत्ता को 126वीं बार खून देने से, 15 राजधानियों में कर चुके हैं रक्तदान

चंडीगढ़, [राजेश ढल्ल]। कश्मीर टू कन्याकुमारी तक सभी राज्यों की राजधानी में जाकर रक्तदान करने का लक्ष्य रखने वाले 54 साल के रणदीप बत्ता अब तक 126 बार रक्तदान कर चुके हैं। बत्ता अभी तक 15 प्रमुख राज्यों की राजधानी में जाकर रक्तदान करने के साथ वहां के लोगों को जागरूक कर चुके हैं। 16वें राज्य में रक्तदान करने के लिए उन्होंने तीन अप्रैल को मिजोरम की राजधानी आइजोल जाना था, इसकी फ्लाइट की टिकट भी बुक करवा ली थी। लेकिन कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के कारण वह नहीं जा सके। बत्ता अलग-अलग राज्यों की राजधानी में अपने खर्चे पर ही फ्लाइट में जाते हैं। 

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पंचकूला के रहने वाले हैं बत्ता

ऐसे में पंचकूला निवासी रणदीप बत्ता ने पीजीआइ जाकर रक्तदान किया। हालांकि उनके जानकारों ने कोरोना के बीच रक्तदान करने के लिए मना भी किया लेकिन रणदीप बत्ता को परिवार का स्पोर्ट मिला और वह पीजीआइ में रक्तदान करने के लिए पहुंचे। इस समय पीजीआइ सहित सरकारी अस्पतालों में रक्त की भारी कमी है। ऐसे में बत्ता इस समय लोगों को सुरक्षित तरीके से रक्तदान करने के लिए जागरूक भी कर रहे हैं।

हर तीन माह बाद करते हैं रक्तदान

बत्ता हर तीन माह बाद रक्तदान करते हैं। उनका कहना है कि लोगों के मन एक डर होता है कि रक्त देने से कमजोरी आएगी लेकिन इसके विपरीत रक्तदान करने से व्यक्ति सेहतमंद है। उनकी फिटनेस का भी यही कारण है। वह अब तक 50 से ज्यादा लोगों को रक्तदान करने के लिए जागरूक कर चुके हैं जोकि अब हर तीन माह बाद रक्तदान करते हैं। बत्ता पिछले 27 मार्च को 126वीं बार रक्तदान करने के लिए बिना पास के ही पीजीआइ गए तो रास्ते में तीन नाके मिले लेकिन पुलिस ने भी बत्ता द्वारा बताए जाने के बाद उनकी सराहना की।

पहली बार सोलन में किया था रक्तदान

इस समय में बत्ता को किसी बेटे का फोन आया था जोकि अपने पिता के लिए रक्त मांग रहा था। ऐसे में बत्ता मानवता दिखाते हुए पीजीआइ में पहुंच गए। उन्होंने बताया कि 17 साल की आयु में उन्होंने सोलन के चायल में लगे शिविर में पहली बार रक्तदान किया था। उस समय बत्ता पंजाब विश्वविद्यालय के इव¨नग कॉलेज में पढ़ाई करते थे।


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