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छोटे बांधों के निर्माण पर जोर, गैर खेती परियोजनाओं पर लगे अंकुश

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : प्रदेश में पलायन की समस्या की मार झेल रहे उत्तराखंड को प्रवासियों

By JagranEdited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 11:15 PM (IST)Updated: Sun, 11 Nov 2018 11:15 PM (IST)
छोटे बांधों के निर्माण पर जोर, गैर खेती परियोजनाओं पर लगे अंकुश
छोटे बांधों के निर्माण पर जोर, गैर खेती परियोजनाओं पर लगे अंकुश

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : प्रदेश में पलायन की समस्या की मार झेल रहे उत्तराखंड को प्रवासियों की प्रतिभा की उपयोगिता की दरकार है। उत्तराखंड युवा मंच द्वारा रविवार को सेक्टर-29 स्थित गढ़वाल भवन में आयोजित एक संगोष्ठि के दौरान नैनीताल विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व प्रोफेसर व लेखक शेखर पाठक ने कहा कि प्रवासी युवा अपने प्रदेश के लिए 'ब्राड एंबेसेडर' की भूमिका निभाएं, ताकि अन्य लोग भी उत्तराखंड की छवि से अवगत हो सकें। इसके साथ नवगठित प्रदेश के उत्थान में वे भी अपना योगदान देते रहें और जमीन संबंधी अधिनियम लागू कर तेजी से विकसित की जा रही गैर खेती परियोजनाओं पर अंकुश लगाया जाए। उन्होंने छोटे बाधों के निर्माण पर बल दिया, जिससे की प्रदेश में लोग विस्थापन की समस्या से न जूझे। चमौली जिले के घैस गाव का उदाहरण दिया

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गेरसैंण स्थित हर्बल प्लाट संस्थान के डीन बीपी नौटियाल ने प्रदेश में पनप रही विश्व प्रसिद्व हर्बल पौधों की उपयोगिता के लिए चमौली जिले के घैस गाव का उदाहरण दिया। संस्थान ने एक प्रोग्राम के तहत वर्ष 2002 में कृषि के विकल्प के लिए वहा करीब 22 परिवारों को 'केदार कड़वी' नामक औषधि की खेती के लिए प्रेरित किया, जोकि वर्तमान में लीवर और शरीर के इम्यून के लिये पूरे विश्व में काफी कारगर सिद्ध हो रही है। यह गाव पारम्परिक आलू की खेती छोड़ औसतन प्रति वर्ष 80 से 90 लाख रुपये की आय अर्जित करता है। नौटियाल ने बल दिया कि युवा प्रदेश में आकर केरल की तर्ज पर 'स्पाइस गार्डन' विकसित करे, जिसमें आपार क्षमताएं हैं। प्रस्तावित राजधानी गेरसैंण को विकास के विकेंद्रीकरण का मार्ग बताया

उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने लोगों द्वारा प्रस्तावित राजधानी गेरसैंण को विकास के विकेंद्रीकरण का मार्ग बताया। उनके अनुसार उत्तराखंड आदोलन से भी पूर्व गेरसैंण स्थानीय लोगों के लिए सर्वोपरि रहा है। लोगों का गेरसैंण का राजधानी बनाने का सपना भले की राजनीतिक हितों के चलते अड़चनें पैदा कर रहा है, परंतु प्रदेश के विकास के लिए लोगों की एकजुटता सभी चुनौतियों को बौना साबित कर रही है। स्थानीय संस्कृति का बचाव करना जरूरी

हल्द्वानी स्थित उत्तराखंड ओपन यूनिवर्सिटी के निदेशक गिरिजा पाडेय ने प्रदेश में तेजी से पैर पसारती बहु परिजायनाओं से स्थानीय संस्कृति को पहुंच रहे आघात का गहन चिंतन व्यक्त किया। दिल्ली स्थित उत्तराखंड एकता मंच के संस्थापक सदस्य सुरेन्द्र हलसी ने कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषाओं को संविधान के आठवीं अनुसूची में दर्ज करने का आह्वान किया, जिसके लिए वे कई व्यापक अभियान छेड़ चुके हैं।


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