PGI के डॉक्टरों ने ढूंढा Lung Cancer का कारगर इलाज, ऐसे मिली सफलता
फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए PGI (चंडीगढ़) के डॉक्टरों ने एक नई तकनीक ईजाद की है।
चंडीगढ़ [वीणा तिवारी]। फेफड़े के कैंसर से जूझ रहे मरीजों की जिंदगी बचाने के लिए PGI (चंडीगढ़) के डॉक्टरों ने एक नई तकनीक ईजाद की है। इसके लिए उन्होंने विश्व के पांंच देशों के चुनिंदा डॉक्टरों के साथ मिलकर लगातार तीन साल (2016-2018) तक मरीजों पर रिसर्च किया।
इस दौरान उन मरीजों को कीमो और रेडिएशन का डोज एक साथ देकर कैंसर प्रभावित टिश्यू को निष्क्रिय करने में काफी हद तक सफलता मिली। इतना ही नहीं इस तकनीक में पहली बार सीटी और पैट स्कैन की तकनीक का एक साथ प्रयोग कर बेहतर परिणाम प्राप्त किया गया। इससे फेफड़े के कैंसर के मरीजों का सर्वाइवल रेट (बचने का संभावना) 20 फीसद से बढ़कर 25-30 फीसद के बीच पहुंच गया।
इस टीम ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
इस रिसर्च में PGI रेडियोथेरेपी के विभागाध्यक्ष (HOD) डॉ. राकेश कपूर के साथ ही डॉ. अश्वनी सूद और डॉ. नवीनत ने अहम भूमिका निभाई है। फेफड़े के कैंसर के इलाज पर आधारित इस रिसर्च को यूरोपियन जर्नल ऑफ न्यूक्लीयर मेडिसिन ने प्रकाशित किया है। इस शोध के लिए ऐसे देशों को चुना गया, जहा फेफड़े के कैंसर के मरीज ज्यादा पाये जाते हैं। इसमें भारत, पाकिस्तान, वियतनाम, टर्की, नीदरलैंड, सऊदी अरब में फेफड़े के कैंसर के 246 मरीजों पर रिसर्च किया गया।
ऐसे किया रिसर्च
इन रिसर्च में शामिल देशों के रेडियोलॉजिस्टों ने फेफड़े के कैंसर के मरीजों के इलाज में पेट और सीटी स्कैन को मिलाकर यूज किया। डॉ. राकेश ने बताया कि कैंसर के मरीजों के डाइग्नोसिस में यूज की जाने वाली सीटी (कंप्यूटेड टोमोग्राफी)स्कैन और पैट (पोजीस्ट्रोन इमीशन टोमोग्राफी) स्कैन तकनीक का कंबाइंड यूज कर रेडिएशन और कीमोथेरेपी एक साथ दी गई। ऐसा अब तक नहीं किया जाता था।
इस प्रयोग में पेट और सीटी स्कैन बेस्ट रेडियोथेरेपी प्लानिंग और डिलीवरी के मेथड का प्रयोग कर उन मरीजों को कीमो के दौरान रेडिएशन की उचित मात्रा ही कैंसर प्रभावित हिस्से में दी गई। इससे इलाज की तीव्रता बढ़ी। जबकि अब तक प्रयोग की जा रही तकनीक में सामान्य टिश्यू भी प्रभावित होते हैं।
फेफड़े के कैंसर का कारण
फेफड़े के कैंसर का मुख्य कारण धूमपान, तंबाकू, गुटखा व पान खाना होता है। इसके लक्षण बहुत ही मुश्किल से समझ में आते हैं। इतना ही नहीं यह धुंआ, फैक्ट्री से निकलने वाले केमिकल और ज्यादा प्रदूषण से भी होता है। यह ज्यादातर 55-80 आयुवर्ग के लोगों को अपना शिकार बनाता है। इसके अलावा 15-16 साल से लगातार धूमपान करने वालों को भी फेफड़े के कैंसर का खतरा ज्यादा होता है।
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