जब इंसान से बेहतर चूहे हो जाएं..
टैगोर थिएटर-18 में सोमवार को मंचित नाटक हरुस-मरुस कुछ इतनी ही गहराई तक जाता है। नाटक देखने के लिए खास तौर पर आइटीबीटी के जवानों को निमंत्रित किया गया।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : इसमें हास्य है, मगर इतना गंभीर की दो मिनट के लिए सोचना पड़ता है कि हम किस पर हंस रहे हैं। ये नाटक बहुत ही चोट पहुंचाता है, हमारे इंसान होने पर। दिनों दिन बढ़ती आबादी और गरीबी की मार, इंसान के सबसे निचले स्तर को दर्शाती है। इसमें चूहे और इंसान में कोई फर्क न रह गया हो। टैगोर थिएटर-18 में सोमवार को मंचित नाटक हरुस-मरुस कुछ इतनी ही गहराई तक जाता है। नाटक देखने के लिए खास तौर पर आइटीबीटी के जवानों को निमंत्रित किया गया।
नाटक का निर्देशन मुंबई की रंगकर्मी रसिका अगाशे ने किया। नाटक एक गांव से शुरू होता है, जहां स्थिती गंभीर है। वहीं एक चूहों की टोली पहुंचती है। चूहे भूखे हैं। ऐसे में वो गांव वालों पर आश्रित हैं। मगर गांव में मुखमरी है, न रोजगार है न खाने पीने को कुछ ऐसी स्थिती में चूहे ही इन पर दया खाने लगते हैं। नाटक में दो चूहों को सत्यवादी दिखाते हुए सफेद पोशाक पहनाई गई है। जिसमें वो गांव के लोगों के लिए राशन जुटाने का कार्य करते हैं। मगर अंत में गांव वाले इन दोनों चूहों को ही अपनी जान का दुश्मन समझ लेते हैं। नाटक में कलाकारों को बेहतरीन रूप से अपना अभिनय पक्ष पेश किया। चूहों और इंसान के बीच का तालमेल देखते ही बंधता था। समकालीन विषय पर आधारित नाटक को दर्शकों ने खूब सराहा। नाटक का लेखन मुकेश मेना ने किया, नाटक में 12 गीत भी रहे, जो इसे भारत के गांव की झलक देने में कामयाब रहे। नाटक में संगीत लाइव रहा, जिसे लोगों ने खूब सराहा।