सात साल से कम सजा वाले केस में बच्चों के खिलाफ नहीं रजिस्टर होती एफआइआर
इसके अलावा सजा शुरू होने के तीन साल बाद उसका क्राइम डाटा खत्म करना होता है ताकि भविष्य में उस पर पुलिस केस जैसा कोई आरोप न लगे।
चंडीगढ़, सुमेश ठाकुर। बच्चा कोई अपराध करता है और उसमें सात साल से कम सजा होती है तो बच्चे पर कोई एफआइआर दर्ज नहीं होती। इसके अलावा बच्चे को पुलिस कस्टडी में भी नहीं रखा जाता बल्कि डिस्ट्रिक चाइल्ड प्रोटेक्शन सेल टेकअोवर करता है। इसके अलावा सजा शुरू होने के तीन साल बाद उसका क्राइम डाटा खत्म करना होता है ताकि भविष्य में उस पर पुलिस केस जैसा कोई आरोप न लगे। यह जानकारी नेशनल इंस्टीट्यूशन ऑफ पब्लिक कॉरपोरेशन एंड चाइल्ड डिवेलपमेंट (एनआइपीसीसीडी) द्वारा आयोजित नेशनल वेबिनार में डिप्टी डायरेक्टर डॉ. संघमित्रा बारीक ने कहे।
वेबिनार में पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट से जस्टिज जसवंत सिंह, स्टेट लीगल ऑथोरिटी से मेंबर सेक्रेटरी महावीर सिंह अलाहवत, डिस्ट्रिक लीगल सर्विसेज अथॉरिटी से सीजीएम अशोक कुमार मान सहित जुवेनाइल जस्टिस पैनल के वकीलों ने भाग लिया। इस मौके पर जसवंत सिंह ने बताया कि बच्चों को इंसाफ दिलाने से पहले कानूनी जानकारी होना जरूरी है। बच्चे की कितनी उम्र का है, किस अपराध में उसे कौन से चाइल्ड होम या फिर बाल गृह सुधार में भेजना है। इसके बारे में पता होने के बाद ही वकील काम कर सकता है। कानून के बारे में उन्होंने बताया कि बहुत ही कम केस में बच्चे को बाल गृह सुधार में भेजा जाता है। बच्चे को पकड़ने के बाद चाइल्ड केयर होम भेजा जाता है। जहां पर उनकी पढ़ाई से लेकर उनके लिए साकारात्मक माहौल देने की जिम्मेवारी वकील को पक्की करानी होती है।
नासमझी में किए अपराध से बाहर निकालना है कानून का मकसद
स्टेट लीगल सर्विसज अथॉरिटी के मेंबर सेक्रेटरी महावीर सिंह अलाहवत ने कहा कि कानून का मकसद बच्चे काे सही रास्ते पर लाना होता है। बच्चे नासमझी में अपराध करते है। उन्हें बेहतर माहौल देकर हम एक नॉर्मल लाइफस्टाइल में ला सकते है। बहुत से बच्चे माता-पिता के बिना समाज में रह रहे होते है और उनसे मजदूरी से लेकर गलत काम समाज के लोग ही करवाते है। उन्हें उन लोगों से छुडवाकर एक बेहतर परिवार का सहारा दिलाना भी कानून का अहम हिस्सा है।