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ट्रांसजेंडर वर्ग के हक की लड़ाई लड़ रहे धनंजय

धनंजय ने पीयू में वर्ग के लिए अलग से टॉयलेट के लिए आवाज उठाई, थोड़ा टाइम जरूरत लगा, लेकिन अंतत: पीयू प्रशासन को इनकी जरूरत समझनी पड़ी और 2017 में पीयू ट्रासजेंडर वर्ग के लिए टॉयलेट बनाने वाली पहली यूनिवर्सिटी बन गई।

By JagranEdited By: Published: Fri, 10 Aug 2018 03:41 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2018 03:41 PM (IST)
ट्रांसजेंडर वर्ग के हक की लड़ाई लड़ रहे धनंजय
ट्रांसजेंडर वर्ग के हक की लड़ाई लड़ रहे धनंजय

डॉ रविंद्र मलिक, चंडीगढ़ : नाम धन सिंह। पहचान ट्रासजेंडर। 16 जुलाई 2016 तक इस नाम को कोई नहीं जानता था, लेकिन मात्र दो साल में ही इस नाम की गूंज देश ही नहीं विदेशों तक पहुंच गई है। साल 2014 में ट्रांसजेंडर्स को बराबरी का हक देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया तो धन सिंह ने अपनी पहचान उजागर करते हुए नाम बदलकर धनंजय चौहान मंगलमुखी रख लिया। उसके बाद पीयू के ह्यूमन राइट्स विभाग में मेरिट में जगह बना एमए में दाखिला लिया। इसी के साथ उन्होंने शुरू कर दिया ट्रासजेंडर्स वर्ग के अधिकारों के लिए संघर्ष।

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थोड़े दिनों में यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं रह गया। इन्होंने पीयू में वर्ग के लिए अलग से टॉयलेट के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी। थोड़ा टाइम जरूरत लगा, लेकिन अंतत: पीयू प्रशासन को इनकी जरूरत समझनी पड़ी और 2017 में पीयू ट्रासजेंडर वर्ग के लिए टॉयलेट बनाने वाली पहली यूनिवर्सिटी बन गई। इनके प्रयासों से ही पीयू में साल 2014 से लेस्बियन, गे, बायोसेक्सुअल और ट्रासजेंडर्स(एलजीबीटी) परेड गर्व उत्सव होती है। उसमें विदेशी कम्यूनिटी के लोग भी हिस्सा लेते हैं।

कैनेडियन पीएम का ऑफर ठुकराया

ट्रासजेंडर वर्ग के लिए इनके कामों की गूंज कनाडा पहुंच गई। पीएम जस्टिन ट्रूडो ने दिल्ली में वहा की एंबेसी में बुलाकर इनको सम्मानित किया। ंट्रूडो ने उनको कनाडा में पीएचडी करने का ऑफ र दिया लेकिन धनंजय ने कहा कि भारत में अभी मेरी जरूरत है। ट्रासजेंडर्स के अधिकारों की लड़ाई अभी पूरी नहीं हुई है। वर्ग के लोगों को शिक्षित करने की जरूरत है।

लोगों के ताने नहीं हिला पाए

जब पीयू में दाखिला लिया तो स्टूडेंट्स ताने मारते थे। हंसकर सब कुछ सहा, कभी-कभार स्थिति बस से बाहर होने लगी तो ऐसा करने वालों को भागने पर भी मजबूर कर दिया। धीरे स्टूडेंट्स और फैकल्टी जानने लगी। दिक्कतें कम होने लगी। शराबियों ने घर पर रात पत्थर तक फेंके

धनंजय समेत पाटको पीयू ने हॉस्टल नहीं दिया तो साथी ट्रासजेंडर्स के साथ नया गाव में मजूबरीवश बाहरी सुनसान इलाके में मकान किराए पर लेना पड़ा। मुख्य रिहायशी इलाके में कोई मकान किराए पर देने को तैयार नहीं था। यहा से रात को शराबी गुजरते और रात को पत्थर फेंकते। कई बार मकानों के शीशे भी टूटे, पर इरादा जस का तस रहा और मकान नहीं बदला। इनको दिलाया दाखिला

धनंजय के प्रयासों से कई ट्रासजेंडर्स स्टूडेंट्स को पीयू में दाखिला मिला। साल 2017 में ओशीन ने सोशल वर्क स्टडी में दाखिला लिया। हिंदी विभाग में दिव्या और फैशन टेक्नोलॉजी में सत्या को पढ़ाई करने का मौका मिला। दिक्कतें आई तो मिलकर सामना किया। अधिकारों की लड़ाई अब भी जारी है

-पीयू में हर कोर्स में ट्रासजेंडर्स के लिए दो सीट हों।

-वर्ग के स्टूडेंट्स की फीस माफ हो।

-कैंपस में हॉस्टल की सुविधा मिले।

-स्वास्थ्य सुविधा निशुल्क मिले, खासकर सर्जरी।

-लोगों को अब भी ट्रासजेंडर्स के बारे में कम जानकारी है, उनके बारे में अवेयर करना।


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