देवाशीष की कलम बनी अमेजन बेस्टसेलर..
बस पांच साल पहले पूछे गए इस सवाल का जवाब मेरा जुनून बन गया। वो दिन था और आज का दिन है मैंने अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए पूरी ताकत लगा दी।
शंकर सिंह, चंडीगढ़।
तुम क्या करना चाहोगे, जिससे तुम कुछ कमाना न चाहो? ये सवाल पांच साल पहले मुझसे पूछा गया। कुछ देर सोचने के बाद मेरे मन में एक ही जवाब आया। वो था कहानी लेखन। बस पांच साल पहले पूछे गए इस सवाल का जवाब मेरा जुनून बन गया। वो दिन था और आज का दिन है, मैंने अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए पूरी ताकत लगा दी। इसकी वजह से आज अमेजन का बेस्ट सेलर बन पाया। शहर के देवाशीष सरदाना कुछ इसी अंदाज में अपनी नॉवल द एप्पल पर बात करते हैं। जो पिछले आठ हफ्तों से अमेजन बेस्टसेलर के पहले स्थान पर बनी हुई है। इस नॉवल को अमेजन टॉप फाइव फाइनलिस्ट में भी शामिल किया गया है, जिसमें दुनिया भर से 5000 किताबों का नामांकन किया गया था।
देवाशीष इन दिनों सिगापुर में पीएंडजी कंपनी के साथ ग्लोबल बिजनेस लीडर के रूप में कार्यरत हैं। पिछले वर्ष नवंबर में प्रकाशित इनका नॉवल द एप्पल ऑनलाइन काफी प्रसिद्ध हुआ, जिसकी पांच हजार से ज्यादा कापियां ऑनलाइन बिक चुकी हैं। पत्नी ने किया सवाल और कलम हाथ में आई..
देवाशीष ने कहा कि लेखन मुझे बचपन से पसंद था। मगर कॉरपोरेट जगत से जुड़ने पर इससे थोड़ा दूरी बन गई। पांच वर्ष पहले मेरी पत्नी ने ही मुझे मेरी खुशी से जुड़ा सवाल किया। जो मुझे कलम के करीब ले आया। चंडीगढ़ के सेंट स्टीफंस -45 से पढ़ाई की। जहां स्कूल के प्रिसिपल हारल्ड कार्वर और टीचर्स मुझे अकसर विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करते थे। स्कूल के हेड ब्वॉय से लेकर स्टेट फेंसिग टीम का कैप्टन भी रहा। इसके अलावा एक और शौक था, जिसकी वजह से मैं प्रसिद्ध था और वो था कहानी लेखन। मां बचपन में पौराणिक कथाएं सुनाती। महाभारत और रामायण से जुड़ी कथाएं मुझे बहुत प्रेरित करती। मां ने ही कहा था कि लिखने के लिए कल्पता करना जरूरी है। वो मेरी हर तरह की कहानी को सुनती और सराहना करती थी। इसी वजह से मेरे अंदर लेखन का बीज पनपने लगा। मेरी मां, आज भी मेरी पहली कहानी की पहली लाइन को याद रखे हैं। जिसकी वजह से लेखन की तरफ मेरा भावनात्मक जुड़वा भी रहा। 50 से ज्यादा बार हुआ रिजेक्ट..
देवाशीष ने कहा कि उन्होंने जब नॉवल पूरा किया, तो इसे अमेरिका के कई पब्लिशर को भेजा गया। मगर अफसोस मुझे कई बार रिजेक्शन झेलनी पड़ी। करीबन 50 बार रिजेक्शन झेलने के बाद, मैंने इसे खुद पब्लिश करने की सोची। इसमें करीबन पांच वर्ष का समय लगा। मैं चाहता था कि किताब का स्तर भी उन्हीं प्रकाशक की तरह हों, जिन्होंने मुझे रिजेक्ट किया। इसका असर, ये हुआ कि मुझे ऑनलाइन काफी कामयाबी मिली। भारत के बुक स्टोर में अभी ये किताब नहीं पहुंची। ये केवल अभी ऑनलाइन ही अवेलेबल है। किताब के दूसरे सीक्वल पर कर रहे हैं काम.
ईडन मिस्ट्री से जुड़ी द एप्पल किताब का क्या सीक्वल भी आएगा? पर देवाशीष ने कहा हां, मैंने दरअसल, इसे एक दिलचस्प अंत की तरफ खत्म किया। मुझे कई पाठनों ने खासकर विदेशी पाठकों ने कहा कि इसका दूसरा भाग भी लिखो। इन दिनों उसी में व्यस्त हूं। उम्मीद है इसे भी उतना ही प्यार मिलेगा।