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डिजाइन में झलकती है संस्कृति..

भारत में विविधता है। जिसमें संस्कृति झलकती है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Feb 2019 08:54 PM (IST)Updated: Sat, 16 Feb 2019 08:54 PM (IST)
डिजाइन में झलकती है संस्कृति..
डिजाइन में झलकती है संस्कृति..

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : भारत में विविधता है। अभी तक डिजाइनर अपने नाम तक ही इसे सीमित रखे हैं। बुनकर, लोक कलाकारों को इससे कोई फायदा नहीं होता। ऐसे में हमने भारत की संस्कृति को उसके संयोजक समेत आगे लाने की सोची। इसी कोशिश में भारत के कारीगरों और वीवर के साथ मिलकर हमारी कलेक्शन द्वेत तैयार हुई। जिसे लंदन में आयोजित फैशन शो में प्रदर्शित भी किया गया। हमारी कोशिश यही रहती है कि ड्रेस हो या इंटीरियर, भारतीय संस्कृति को आगे रखा जाए। फैशन डिजाइनर करिश्मा साहनी और इंटीरियर डिजाइनर वसीम खान कुछ इन्हीं शब्दों में अपने डिजाइन पर बात करते हैं। आइनिफ्ड में आयोजित मिनी फैशन शो में करिश्मा की द्वेत कलेक्शन को स्टूडेंट्स मॉडल्स ने पहनकर रैंपवॉक की। टेराकोटा और चंदेरी फेब्रिक से तैयार की ड्रेस..

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करिश्मा ने कहा कि उन्होंने लंदन में फैशन शो के लिए मध्यप्रदेश के फेब्रिक को चुना। जिसमें टेराकोटा और चंदेरी सिल्क को एक साथ एक ड्रेस में रखा गया। दरअसल, इसमें सबसे बड़ी समस्या वीवर को डिजाइन के अनुरूप ड्रेस तैयार करने में होती है। इसमें वीवर वर्षों से जो कर रहे थे, हमनें उन्हें इसका उलटा करने को कहा। जिसकी वजह से इसे बनाने में थोड़ा वक्त लगा। टेराकोटा केवल साड़ियों के लिए ही अभी तक प्रयोग हुआ था, ऐसे में हमने इसे पूरी तरह ड्रेप, रेप रोल और लेयर से जुड़ी ड्रेस में इस्तेमाल किया। हम अपने फेब्रिक को ही नहीं जानते..

करिश्मा ने कहा कि हमारी समस्या हमारा सीमित ज्ञान है। भारत में अनेक फेब्रिक हैं। इसमें हमारे राज्य की संस्कृति झलकती है। ऐसे में इनसे दूर रहकर हम कभी डिजाइ¨नग के पैटर्न को नहीं सीख पाएंगे। मुझे काफी समय बाद पता चला कि मेरी दादी मां केवल खादी की साड़ी पहनती हैं। इसके बाद खादी के कपड़े से जुड़ी काफी खोज की। जिसने मुझे भारतीय परिधानों की तरफ आकर्षित किया। भारतीय सभ्यता नहीं खोने देंगे

वसीम ने कहा कि इन दिनों वह स्पेस और सस्टेनेबिलिटी पर काम कर रहे हैं। उनका मकसद कम जगह में भी, बेहतर उपयोग और उसमें भी पर्यावरण को तरजीह देना मुख्य है। हम देख रहे हैं कि घर फ्लैट में तब्दील हो रहा है। आंगन अब नहीं है। पेड़ नहीं है। ऐसे में फ्लैट में हम कैसे भारतीय संस्कृति को सहेज इस पर काम करना जरूरी है। जरूरत के अनुसार बदलें फ्लैट को

वसीम ने कहा कि इन दिनों छोटे फ्लैट को बेहतर इस्तेमाल में लाने के लिए हमें जरूरी बदलाव करने होंगे। जैसे मैंने अपने थ्री बीएचके फ्लैट में एक कमरे की दीवार तोड़कर उसे हॉल में ही तब्दील कर दिया। ऐसे में मैंने अपने लि¨वग एरिया को बढ़ाकर, अपने लिए स्पेस को खोजा। मैं चाहता हूं, कि आप भी अपने घर में छोटे बदलाव कर, अपनी जरूरत के अनुसार बेहतर कर सकते हैं। प्रगति मैदान में बना रहे हैं इस्टालेशन..

वसीम हाल ही में गुजरात में बने डांडी कुटीर म्यूजियम के इंटीरियर पर भी काम कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि इन दिनों वो कई नेशनल प्रोजेक्ट से जुड़े हैं। जिसमें प्रगति मैदान में बन रहे इंस्टालेशन जुड़े हैं। इसमें हर इंस्टालेशन में भारत की छवि दिखेगी।


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