सीएसआइओ के साइंटिस्ट मनोज पटेल को यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड
साइंटिस्ट डॉ. मनोज के पटेल को प्रतिष्ठित सीएसआइआर यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड के लिए चुना गया।
डॉ. सुमित सिंह श्योराण, चंडीगढ़ : हार तो जिदगी में जीत की शुरुआत की पहली सीढ़ी है। हारते वो हैं, जो चुनौतियों से दो-दो हाथ करने से घबराते हैं। मैंने इस मुकाम तक पहुंचने तक बहुत मुश्किलों का सामना किया है। लेकिन आज का दिन मेरे लिए बहुत खास है। मेरे दोस्तों और परिवार ने मेरी वर्षो की मेहनत को सफल बनाया है। यह कहना है डॉ. मनोज के पटेल का। चंडीगढ़ के सेक्टर-30 स्थित सेंट्रल साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट्स आर्गेनाइजेशन (सीएसआइओ) के साइंटिस्ट डॉ. मनोज को यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड-2020 के लिए चुना गया है। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) द्वारा हर साल दिया जाने वाला यह सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड है। चंडीगढ़ से डॉ. मनोज पुरस्कार पाने वाले एकमात्र साइंटिस्ट हैं, उन्हें इंजीनियरिग साइंस कैटेगरी में यह अवॉर्ड मिला है। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में डॉ. मनोज ने बताया कि बीते दो साल से उनका नाम अवॉर्ड के लिए प्रस्तावित हो रहा था। लेकिन इस बार उनके काम को सम्मान मिल ही गया। बचपन में ही पोलियो से पीड़ित डॉ. मनोज का अपने काम के प्रति जज्बा दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं है। परिवार की आर्थिक हालात ठीक नहीं होने पर भी दिन-रात मेहनत कर स्कॉलरशिप के दम पर इन्होंने जिदगी में कई बुलंदियों को छुआ है। बीते आठ साल में इन्होंने नेशनल स्तर पर करीब नौ प्रतिष्ठित अवॉर्ड हासिल किए हैं। इनकी टेक्नोलॉजी देश की नामी कंपनियां प्रयोग कर रही हैं। कोविड-19 के दौर में भी इन्होंने इलेक्ट्रोस्टेटिक डिसइन्फेकेशन मशीन तैयार कर खूब वाहवाही बटोरी थी। देशभर से सात साइंटिस्टों का चयन
सीएसआइआर का यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड पांच कैटेगरी में मिलता है। इस बार देशभर से सात यंग साइंटिस्ट को चुना गया है। अवॉर्ड के तहत प्रशंसा पत्र, ट्रॉफी और 50 हजार कैश अवॉर्ड मिलता है। किसी भी युवा साइंटिस्ट के करियर में यह मील का पत्थर माना जाता है। डॉ. मनोज की मेहनत का ही नतीजा रहा कि उन्हें प्रमोशन समय से पहले मेरिट पर मिला और अब वह सीनियर साइंटिस्ट हैं। 35 साल से कम उम्र के यंग साइंटिस्ट को यह अवॉर्ड दिया जाता है। मुश्किलों में भी नहीं मानी हार, हासिल किया मुकाम
डॉ. मनोज के पटेल का जीवन बचपन से ही संघर्ष से भरा रहा है। वह लाखों युवाओं के लिए वह प्रेरणास्त्रोत से कम नहीं हैं। उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के मियां बरोली में जन्म के कुछ समय बाद ही पोलियो से ग्रस्त हो गए। परिवार का गुजारा खेतीबाड़ी से होता था। स्कूली पढ़ाई सरकारी स्कूल से की और बाद में भाई की मदद से शहर में पढ़ाई करने का मौका मिल गया। डॉ. मनोज ने बताया कि आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे, लेकिन पढ़ाई के दम पर कई स्कॉलरशिप पाकर पीएचडी तक की डिग्री हासिल की। सात नामी कंपनियां इनकी इजाद की गई टेक्नोलॉजी को प्रयोग कर रही हैं। 2012 में चंडीगढ़ स्थित सीएसआइओ में साइंटिस्ट के तौर पर ज्वाइन किया और फिर कड़ी मेहनत से कई टेक्नोलॉजी देश को दी। यूके में भी इन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला चुका है। डॉ. मनोज पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं। खाली समय में कुकिग इनकी हॉबी है।