शिअद-भाजपा गठजोड़ में टूट: काम आया कांग्रेस का दबाव, अब 2022 कें चुनाव पर नजर
पंजाब में शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन के टूटने में कांग्रेस का दबाव ने की काम किया है। कृषि विधेयकों के आने के बाद कांग्रेस गठबंधन को लेकर शिअद पद दबाव बना रही थी। अब कांग्रेसे की नजर 2022 के विधानसभा चुनाव पर है।
चंडीगढ़, जेएनएन। शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच गठबंधन टूटने का सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस को होने वाला है। पहले कृषि अध्यादेश और बाद में कृषि विधेयकों के आने के बाद कांग्रेस ने शिरोमणि अकाली दल परनिशाना साधना शुरू कर दिया। कांग्रेस लगातार शिअद पर भाजपा से गठबंधन तोड़ने के लिए दबाव बना रही थी।
पार्टी इस दाैरान शिरोमणि अकाली दल पर सरकार से बाहर आने का दबाव बना रही थी। जब हरसिमरत बादल ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया, तो मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पार्टी के अध्यक्ष सुनील जाखड़ लगातार दबाव बनाते रहे कि अकाली दल केवल मगरमच्छ के आंसू बहा रहा है, जबकि वह अब भी एनडीए में बना हुई है और केंद्र सरकार को समर्थन दे रहा है।
हरसिमरत के इस्तीफे में भी कामयाब रही थी कांग्रेस की रणनीति
खेती विधेयकों को अगर छोड़ भी दिया जाए तो यह पहला मौका नहीं है, जब कांग्रेस इस तरह का दबाव हरसिमरत बादल या अकाली दल पर बनाती रही है। इससे पहले लंगर पर लगाए जीएसटी को लेकर भी कांग्रेस ने हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा मांगा था।
वोट बैंक के बंटने का कांग्रेस को मिल सकता है फायदा
दरअसल अकाली भाजपा का गठबंधन टूटने का कांग्रेस को बड़ा फायदा है। इसलिए उसकी नजर 2022 के विधानसभा चुनाव पर हैं। चूंकि पार्टी राज्य की सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ती है। ऐसे में हर सीट पर अकाली दल और भाजपा का वोट बैंक है, जो एक दूसरे को सीट जितवाने में मदद करता है। मसलन अगर पठानकोट जैसे जिले को पूरी तरह से भाजपा गढ़़ भी मान लिया जाए तो भी ऐसा नहीं है कि यहां पर अकाली दल बिल्कुल शून्य है। जितने भी वोट अब अकाली दल के उम्मीदवार को पड़ेंगे, वे भाजपा के खाते से ही कटेंगे।
अगर बहुकोणीय मुकाबले होते हैं, तो कांग्रेस को उसका सीधा-सीधा लाभ मिलेगा। ऐसा ही मालवा में अकाली दल को भाजपा का फायदा होता रहा है। उनका हिंदू वोट बैंक अकाली दल के पक्ष में जाता रहा है। अब अगर वहां भाजपा का उम्मीदवार होगा तो यह वोट बैंक बंटेगा और इसका फायदा कांग्रेस उठा सकती है।
हिंदू वोट बंटने का मिलेगा लाभ
अब तक का इतिहास भी यह रहा है कि पंजाब में भाजपा जब भी कमजोर हुई है, उसका लाभ कांग्रेस को मिला है। 1997 के दौरान जब भाजपा को 18 सीटें मिलीं तो प्रदेश में सरकार अकाली-भाजपा की बनी। 2002 में भाजपा तीन सीटों पर सिमट गई और प्रदेश में सरकार कांग्रेस की बनी। 2007 में 19 और 2012 में 12 सीटें जब भाजपा को मिलीं तो प्रदेश में कांग्रेस सत्ता से दूर रही। 2017 में फिर यही देखने को मिला। भारतीय जनता पार्टी के पास मात्र तीन सीटें आईं और कांग्रेस सत्ता में लौट आई। यानी हिंदू वोट के बंटने का फायदा कांग्रेस को होता है।
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