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सज्जन को उम्रकैदः सिखों और विरोधी दलों ने जाहिर की खुशी, कांग्रेस ने साधी चुप्पी

1984 दंगे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को उम्र कैद पर सिख समुदाय और विपक्षी दलों ने खुशी जाहिर की है। वहीं, कांग्रेस ने चुप्पी साध ली है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 12:32 PM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 12:32 PM (IST)
सज्जन को उम्रकैदः सिखों और विरोधी दलों ने जाहिर की खुशी, कांग्रेस ने साधी चुप्पी
सज्जन को उम्रकैदः सिखों और विरोधी दलों ने जाहिर की खुशी, कांग्रेस ने साधी चुप्पी

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में 1984 में हुए सिख दंगों के एक मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार को हुई उम्र कैद की सजा पर सिख समुदाय और विपक्षी दलों के नेताओं ने खुशी जाहिर की है। विपक्षी पार्टी के नेताओं का कहना है कि आज सिख समुदाय और पीड़ितों के परिवार को कुछ मरहम लगा होगा। जबकि कांग्रेस नेताओं ने इस मामले में चुप्पी साध ली है।

हरियाणा सरकार के मुख्य सचेतक ज्ञानचंद गुप्ता का कहना है कि सजा बेशक देर से शुरू हुई है। जबकि सजा काफी पहले ही हो जानी चाहिए थी। लेकिन सिक्ख कम्युिनटी पर थोड़ा बहुत मरहम लगा है। उनका कहना है कि जो करेगा उसे वैसा ही भरना पड़ेगा।उनका कहना है कि कमलनाथ का नाम भी दंगा भड़कने वालों में शामिल था उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए।

चंडीगढ़ अकाली दल के अध्यक्ष हरदीप सिंह का कहना है कि सज्जन कुमार को फांसी की सजा होनी चाहिए। सजा सुनाने में काफी लंबे समय लग गया है। उनका कहना है कि सिक्ख इसके लिए काफी लंबे समय से संघर्ष कर रहे थे। उनका कहना है कि कांग्रेस के नेता जगदीश टाइलर और कमलनाथ को भी सजा मिलनी चाहिए।

चंडीगढ़ आप के संयोजक प्रेम गर्ग का कहना है कि कानून के हाथ कभी न कभी अपराधी तक पहुंच ही जाते हैं। चाहे अपराधी कितना भी चतुर क्यों न हो। लेकिन इंसाफ उसका पीछा करता रहता है। आज मृत आत्माओं को शांति मिली होगी। चंडीगढ़ कांग्रेस नेता एवं पूर्व मेयर सुभाष चावला का कहना है कि कानून ने जो ठीक समझा है उसके अनुसार ही आगे सजा सुनाई गई है। वह इस पर और ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता था।

पंजाब की शिअद नेता एवं दगा पीड़ित कश्मीर कौर का कहना है कि सज्जन कुमार को फांसी की सजा मिलनी चाहिए थी। इसके अलावा दंगा पीड़ितों के साथ जो सरकार ने वायदे पूरे किए थे वह अब तक पूरे नहीं हुए है। न तो पीड़ितों को प्लाट मिले और न ही नौकरियां मिली।

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