हाई कोर्ट ने कहा, किसानों की खुदकुशी पर मुआवजा मरने के लिए उकसाने जैसा
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने कहा कि किसानों के खुदकुशी करने पर उसके परिवार को मुआवजा देना अन्य किसानों को मरने के लिए उकसाने जैसा है।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब में किसानों को आत्महत्या पर आर्थिक मुआवजा देने की नीति पर कड़ी टिप्पणी की है। हाई कोर्ट ने कहा कि खुदकुशी करने पर परिवार को मुअावजा देना मरने के लिए उकसाने जैसा है। किसानों के खुदकुशी करने पर उनके परिवारों को मुआवजा देना किसानों को इसके लिए प्रेरित करने जैसा है।
पंजाब में किसानों व कृषि मजदूरों की ओर से आत्महत्या किए जाने के विषय पर हाईकोर्ट में विचाराधीन जनहित याचिका चीफ जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस अरुण पल्ली की खंडपीठ ने पर सुनवाई की। खंडपीठ ने कहा कि आर्थिक मुआवजा मिलने की उम्मीद किसी परेशान व हताश किसान को इस नीति का लाभ उठाने के लिए आत्महत्या जैसा कदम उठाने के लिए उकसा सकती है।
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हाईकोर्ट ने इस नीति के नकारात्मक पहलुओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि भूख और गरीबी से तंग लोग इस नीति पर नकारात्मक दिशा में विचार कर सकते हैं। किसानों को आत्महत्या के लिए मुआवजा देने की योजना को एक अंतरिम विकल्प बताते हुए हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को इस समस्या का समाधान बताने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने राज्य सरकार को किसानों व खेत मजदूरों की ओर से आत्महत्या किए जाने के मूल कारणों पर भी विचार करने और उन्हें अदालत के सामने पेश करने के आदेश दिए हैं।
पंजाब सरकार से तीन हफ्ते में मांगा जवाब
हाई कोर्ट ने इस मामले में पंजाब सरकार को हलफनामा दायर करने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया। हाईकोर्ट ने कहा है कि अगले हलफनामे में सरकार राज्य में किसानों और खेत मजदूरों की समस्या को सुलझाने के लिए उठाए गए कदमों और प्रस्तावित कदमों पर भी विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराए।
पंजाब सरकार की ओर से इस मामले में अदालत में पेश किए गए हलफनामे पर असंतोष व्यक्त करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि इस हलफनामे में सरकार ने मुआवजे के तौर पर पीड़ितों को दी गई राशि का ब्योरा तो पेश कर दिया, पर इस समस्या के समाधान की दिशा में उठाए गए कदमों का कोई जिक्र नहीं किया।
हाईकोर्ट ने इस मामले में पंजाब सरकार की ओर से किसानों के हित के लिए आंध्र प्रदेश व तेलंगाना की नीतियों से ली गई सीख पर भी जवाब मांगते हुए कहा है कि पंजाब सरकार ने इन राज्यों की नीतियों के अध्ययन के लिए अपनी आधिकारिक टीमें तो भेज दी थीं, लेकिन अब तक इन नीतियों से लिए गए सबकं पर कोई जानकारी अदालत को नहीं दी गई है।