युवाओं को सही दिशा शास्त्रीय कला ही दिखा सकती है..
इन दिनों हम कई तरह की बात करते हैं। हम अपने युवाओं पर सवाल उठाते हैं। उनकी पसंद और जीवन पर। मगर उन्हें राह दिखाने वाले हम ही हैं।
जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ :
इन दिनों हम कई तरह की बात करते हैं। हम अपने युवाओं पर सवाल उठाते हैं। उनकी पसंद और जीवन पर। मगर उन्हें राह दिखाने वाले हम ही हैं। अगर हम उन्हें अपनी सीख को नए अंदाज में बताएं, तो वो भी हमें समझने को तैयार होंगे। युवा पीढ़ी हमेशा से बागी रही है। उसे सही दिशा दिखाना हमारा ही कर्तव्य है। ऐसे में शास्त्रीय कला की अहमियत ज्यादा हो जाती है। जो आपको जल्दबाजी करने से रोकता है। शास्त्रीय गायिका शाल्मली जोशी कुछ इसी अंदाज में बात करती हैं। होटल अरोमा -22 में पहुंची गायिका शाल्मली ने कहा कि शास्त्रीय कला की खासियत इसका सादापन होता है। सादी होते हुए भी ये आपको एक अलग दुनिया तक लेकर जाती है। इन दिनों बहुत सी चिताएं हैं, लोग मुस्कुराना भूल गए हैं। ऐसे में शास्त्रीय संगीत उन्हें सुकून की राह पर ले जाता है। सीखने की उम्र नहीं होता..
मेरी खुशकिस्तमति है कि मेरा जन्म ऐसे परिवार में हुआ, जहां संगीत प्रमुख रहा। मेरी मां माधुरी कुलकर्णी ने संगीत की शिक्षा मुझे दी। उन्हें मुझमें एक बेहतर कलाकार दिखा, तो उन्होंने मुझे आगे इसकी शिक्षा लेने के लिए किराना घराना के प्रसिद्ध पंडित चिटुबुआ म्हैसकर से प्रशिक्षण लिया। इसके बाद मैंने संगीत को सीखना जारी रखा। वैसे तो ये आज भी है। मुझे जयपुर के अतरौली घराना के पंडित रत्नाकर पई से संगीत की एक अलग दुनिया देखने को मिली। इसके बाद मिली स्कॉलरशिप ने मुझे संगीत में आगे बढ़ने का मौका दिया। लगभग 25 वर्ष हो चुके हैं गायकी में। साथ ही आकाशवाणी में भी प्रस्तुति देती हूं। मगर मैं चाहती हूं कि आज की पीढ़ी को साथ लेकर चलूं, ताकि हम इस कला को ज्यादा से ज्यादा बांट सकें।