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पांचवें महीने में पैदा इस 'बाहुबली' ने जीती जिंदगी की जंग, जानें 500 ग्राम के शिशु की कैसे बची जान

आइवीएफ तकनीक से पैदा इस बाहुबली ने करीब 110 दिनों तक संघर्ष के बाद जिंदगी की जंग जीत ली। इस बच्‍चे का पांचवें महीने में ही जन्‍म हो गया था और उस समय उसका वजन महज 500 ग्राम था।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sat, 06 Jul 2019 02:38 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jul 2019 02:38 PM (IST)
पांचवें महीने में पैदा इस 'बाहुबली' ने जीती जिंदगी की जंग, जानें 500 ग्राम के शिशु की कैसे बची जान
पांचवें महीने में पैदा इस 'बाहुबली' ने जीती जिंदगी की जंग, जानें 500 ग्राम के शिशु की कैसे बची जान

चंडीगढ़, [वीणा तिवारी]। इस नन्‍हे 'बाहुबली' ने आखिरकार जिंदगी की जंग जीत ली। 110 दिनों के अपने संघर्ष के बाद उसने जैसे कह दिया है- जिंदगी आ रहा हूं और हर उतार-चढ़ाव के लिए तैयार हूं। इस बच्‍चे का जन्‍म आइवीएफ तकनीक से हुआ है। उसका जन्‍म पांचवें माह में ही हो गया था और उस समय उसका वजन महज 500 ग्राम था। इस कारण उसकी हालत बहुत खराब थी, लेकिन डॉक्‍टरों ने उसे नई जिंदगी दी।

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आइवीएफ तकनीक से हुए बच्चे की डॉक्टरों ने बचाई जान

शहर के बेदी हॉस्पिटल में 110 दिनों के बीच क्रिटिकल हालत से जूझते हुए नया जीवन पाने वाला यह नन्‍हा 'बाहुबली' शुक्रवार को अपने माता-पिता के साथ घर पहुंच गया। घर जाते वक्त उसका वजन 500 ग्राम से दो किलो हो चुका है। अस्पताल में उसने 75 दिन वेंटिलेटर पर रहकर, 99 दिन पाइप के सहारे ऑक्सीजन और  32 दिन खून की नाडिय़ों से नूट्रिशन लेकर जिंदगी की जंग लड़ा।

जन्म के समय महज 500 ग्राम था वजन, थी तमाम कॉमप्लीकेशन, 110 दिनों तक चला इलाज

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा की अर्चना व सचिन कांगड़ा अपने बच्‍चे के नया जीवन मिलने पर बहुत खुश दिखे। अर्चना ने आइवीएफ तकनीक से बच्चे को जन्म दिया था। जन्म के दौरान काफी कॉम्पलीकेशन और वजन कम होने के कारण बच्‍चे को 110 दिनों तक हॉस्पिटल में डॉक्टरी देखरेख में रखा गया। अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. आरएस बेदी ने बताया कि ऐसे बच्चे बेहतर चिकित्सा सुविधा के बीच ही सर्वाइव कर पाते हैं। इसका कारण इनफर्टिलिटी, पुअर हाइजीन, कुपोषण और इंफेक्शन है।

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जानकारी के अनुसार, अर्चना और सचिन को शादी के 12 साल बाद भी जब बच्चा नहीं हुआ तो उन्होंने आइवीएफ तकनीक का सहारा लिया। अर्चना ने आइवीएफ कराने के एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन बच्‍चे का जन्‍म पांचवे महीने में ही हो गया। प्री मैच्योर बर्थ होने के कारण बच्चे की स्थिति बहुत नाजुक थी। डॉ. आरएस बेदी का कहना है कि ऐसे बच्चों को बचाना बहुत मुश्किल होता है। दुनियाभर में 20 से 25 फीसदी ही ऐसे बच्चों की जिंदगी बचाई जा पाती है।

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खून की नली से किया गया पोषण

समय से पहले जन्म लेने के कारण बच्चे के ऑर्गन डेवलप नहीं हो पाए थे। ऐसी स्थिति में उसे सभी पोषकतत्व फैट, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट खून की नाडिय़ों के जरिये दिया गया। इलाज के दौरान बच्चे को 22 बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन दिया गया।

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