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चंडीगढ़ के शिव मंदिर का काष्ठकुणी शैली से हो रहा निर्माण, खाततौर पर पहुंचे हिमाचल के कारिगर, रोचक है इतिहास

चंडीगढ़ स्थित शिवमंदिर को नया रूप दिया जा रहा है। सेक्टर-45 गोशाला के प्रेसिडेंट विनोद शर्मा ने कहा कि गोशाला में बने शिव मंदिर का निर्माण 1980 के आसपास का माना जाता है। मंदिर को पुरातन शैली से जोड़ने के लिए हिमाचल प्रदेश के कारिगर बुलाए गए हैं

By Ankesh ThakurEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 12:35 PM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 12:35 PM (IST)
चंडीगढ़ के शिव मंदिर का काष्ठकुणी शैली से हो रहा निर्माण, खाततौर पर पहुंचे हिमाचल के कारिगर, रोचक है इतिहास
मंदिर का निर्माण कार्य अप्रैल तक पूरा हो जाएगा।

सुमेश ठाकुर, चंडीगढ़। चंडीगढ़ के सेक्टर-45 स्थित शिव मंदिर का नए सिरे से निर्माण किया जा रहा है। धार्मिक स्थल में पुरातन धार्मिक आस्था बनी रहे इसी सोच के साथ मंदिर का नवनिर्माण किया जा रहा है। शिव मंदिर निर्माण गौरीशंकर सेवादल की तरफ से करवाया जा रहा है। शिव मंदिर को पुरातन एहसास दिलाने के लिए मंदिर में भगवान विश्वकर्मा की काष्ठकुणी शैली (लकड़ी) से मंदिर निर्माण हो रहा है। मंदिर का निर्माण कार्य अप्रैल तक पूरा हो जाएगा।

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इसके लिए खाततौर पर कारिगर बुलाए गए हैं जो मंदिर निर्माण में जुटे हुए हैं। पुरातन शैली का निर्माण देश में सिर्फ हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के कारीगर ही बनाते हैं और मंदिरों में इसे स्थापित करते हैं। सेक्टर-45 स्थित मंदिर में भी काष्ठकुणी शैली का निर्माण करने के लिए कारिगर रामदास अमित और गोबिंद को किन्नौर से बुलाया गया है, जो अपने काम में जुटे हुए हैं। 

काष्ठकुणी शैली का इतिहास

पुरातन काल में मां पार्वती भगवान शिव से कहती है कि वह कैलाश के जंगलों में नहीं रह सकती। ऐसे में उसके रहने के लिए आवास की व्यवस्था हो। उस समय भगवान शिव ने भगवान विश्वकर्मा को बुलाकर आवास निर्माण की जिम्मेदारी दी तो उन्होंने पार्वती के लिए काष्ठकुणी शैली आवास तैयार कर दिया। उसी शैली से आज देश के विभिन्न स्थानों पर शिव मंदिरों का निर्माण कार्य होता है।  

दरवाजे और खिड़कियों की जा रही तैयार

शिव मंदिर सेक्टर-45 के लिए काष्ठकुणी शैली में दरवाजों और खिड़की का निर्माण किया जा रहा है। कारिगरी की खासियत है कि इसमें नक्काशी के बाद दो लकड़ों को जोड़ने के लिए किसी प्रकार की कील का इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि नक्काशी के द्वारा ही उसे आपस में जोड़ा जाता है। इसके अलावा समय के साथ इसकी नक्काशी भी फीकी नहीं पड़ती बल्कि उसकी चमक पर कोई फर्क नहीं आता। 

इतिहास से जोड़ने का प्रयास

गोशाला के प्रेसिडेंट विनोद शर्मा ने कहा कि गोशाला में बने शिव मंदिर का निर्माण 1980 के आसपास का माना जाता है। मंदिर को पुरातन शैली से जोड़ने के लिए हिमाचल प्रदेश के कारिगर बुलाए गए हैं ताकि मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को इतिहास और बेहतर कला से जोड़ा जा सके।


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