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आशियाना नहीं मिलने से चंडीगढ़ के कर्मचारियों में गुस्सा, बुधवार को ले सकते हैं बड़ा फैसला

चंडीगढ़ में कर्मचारियों के लिए वर्ष 2008 में लांच की गई सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम 12 साल बाद भी पूरी नहीं हो सकी है। चार हजार इंप्लाइज को एडवांस राशि जमा कराने के बाद भी अपने आशियाने का इंतजार है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Mon, 06 Dec 2021 01:47 PM (IST)Updated: Mon, 06 Dec 2021 01:47 PM (IST)
आशियाना नहीं मिलने से चंडीगढ़ के कर्मचारियों में गुस्सा, बुधवार को ले सकते हैं बड़ा फैसला
12 साल से आशियाने से महरूम चंडीगढ़ के कर्मचारी निगन चुनाव में अपना गुस्सा जाहिर कर सकते हैं। सांकेतिक चित्र।

जासं, चंडीगढ़। यूटी के 5 हजार से अधिक इंप्लाइज और उनके स्वजन प्रशासन की कार्यप्रणाली से नाराज हैं। 12 वर्ष बाद भी मकान नहीं मिलने का दर्द फिर छलकने लगा है। कारण नगर निगम चुनाव में फिर से वोट की अपील और बदले में मकान दिलाने के वायदे किए जा रहे हैं। इसे देखते हुए अब इंप्लाइज बुधवार को फिर मीटिंग करने जा रहे हैं। इसमें अगली रणनीति तैयार कर फैसला लेंगे कि कैसे इस चुनाव में अपनी मांग पूरी नहीं करने होने का जवाब दिया जा सके। कर्मचारियों के लिए वर्ष 2008 में लांच की गई सेल्फ फाइनेंसिंग इंप्लाइज हाउसिंग स्कीम 12 साल बाद भी पूरी नहीं हो सकी है। चार हजार इंप्लाइज को एडवांस राशि जमा कराने के बाद भी अपने आशियाने का इंतजार है।

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स्कीम में 7827 लोगों ने आवेदन किया था। हाईकोर्ट के निर्देश पर निकाले गए ड्रा में 3930 सफल हुए। 12 साल के लंबे इंतजार में इन 3930 में से 30 इंप्लाइज दुनिया छोड़ रुखसत हो चुके हैं। जबकि 300 से अधिक सेवानिवृत हो चुके हैं लेकिन फ्लैट का सपना अभी अधूरा है। इस लंबे अंतराल में दो आम चुनाव, नगर निगम चुनाव हो चुके हैं। चार प्रशासक, पांच एडवाइजर और चार सीएचबी चेयरमैन बदल चुके हैं लेकिन इंप्लाइज को छत नहीं मिल पाई।

स्कीम की शर्त थी कि जिनका ट्राइसिटी में मकान होगा उन्हें फ्लैट नहीं मिलेगा। इस शर्त की वजह से यह इंप्लाइज कहीं कोई मकान नहीं खरीद सके। हालत यह है कि रिटायरमेंट के बाद किराये के घरों में रहने को मजबूर हैं।

चंडीगढ़ में कर्मचारियों का बड़ा वर्ग

चंडीगढ़ की पहचान वर्किंग सिटी के तौर पर भी है। यहां चंडीगढ़ ही नहीं पंजाब-हरियाणा के हेडक्वार्टर और अधिकतर सरकारी आफिस हैं। केवल चंडीगढ़ के ही 18 हजार से अधिक कर्मचारी हैं। पंजाब और हरियाणा के जोड़ लिए जाएं तो यह संख्या 30 हजार को पार कर जाती है। इसलिए नगर निगम चुनाव में कर्मचारी वर्ग को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कर्मचारी वर्ग चुनाव में अहम रोल अदा करेगा। कर्मचारियों के साथ ही उनके परिवार में भी कई सदस्य हैं जो मतदाता हैं। ऐसे में कर्मचारियों का समर्थन जिस राजनीतिक दल या प्रत्याशी को मिलेगा उसकी जीत और करीब होगी। कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग चुनाव में गुस्सा जाहिर कर सकता है।


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