5 साल में 500 करोड़ से 15 करोड़ पर आया निगम
पांच साल में 500 करोड़ से 15 करोड़ रुपये रह गए निगम की एफडी में। सिैलरी तक के लिए पैसे नहीं। कांट्रेक्टर को देने है 40 करोड़
दिवाला निकला, सैलरी तक के लिए पैसे नहीं
कांट्रेक्टर को देनी है 40 करोड़ की पेमेंट जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : पांच साल पहले नगर निगम के पास 500 करोड़ रुपये की एफडी थी। आज हालत यह है कि निगम के पास अपने इंप्लाइज की सैलरी देने के लिए पैसे नहीं है। यही नहीं कांट्रेक्टर्स तक ने काम तक रोक दिया है। उनको निगम ने 40 करोड़ रुपये की पेमेंट देनी है। प्रशासन ने भी अब ग्रांट देने से मना कर दिया है। निगम को हर महींने इंप्लाइज को 15 करोड़ 50 लाख रुपये केवल सैलरी के ही देने होते है। ऐसे में साल में ही निगम को सैलरी पर 155 करोड़ खर्च करने पड़ते है। निगम की खस्ता वित्तीय हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2018-19 में निगम का अनुमानत खर्च 435 करोड़ रुपये है, जबकि निगम के पास इस दौरान केवल 443 करोड़ रुपये ही आएंगे। प्रशासन आगामी तीन तिमाही में 184 करोड़ रुपये की ग्रांट निगम को देगा। 30 परसेंट हिस्सा मांगा प्रशासन से
निगम प्रशासन से उसे होने वाली कुल आय में से 30 परसेंट की डिमांड कर रहा है। उसने प्रशासन को लिखा है कि फाइनेंस कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार एमसी को यूटी के रेवेन्यू से 30 परसेंट मिलना चाहिए, जबकि उसे 10 परसेंट ही हिस्सा मिल रहा है। पिछले दो सालों से निगम को 269 करोड़ रुपये ही मिल रहे है। इस साल अभी तक निगम को प्रशासन से केवल 59 करोड़ की एक ही किश्त मिली है। रेवेन्यू जुटाने में फेल
प्रशासन बार बार निगम को अपने स्तर पर रेवेन्यू जुटाने को कह रहा है, लेकिन निगम इसमें फेल हुआ है। मंगलवार को ही भाजपा प्रेसिडेंट संजय टंडन के साथ काउंसलर्स एडमिनिस्ट्रेटर वीपी सिंह बदनौर और होम सेक्रेटरी अनुराग अग्रवाल से मिले तो उन्होंने पहले एमसी को अपने संसाधन बढ़ाने को कहा था। यहां तक की होम मिनिस्ट्री भी इसके लिए निगम को निर्देश जारी कर चुकी है। कांट्रेक्टर आज करेंगे प्रदर्शन
निगम के कांट्रेक्टर पेमेंट न मिलने के कारण शुक्रवार को एमसी आफिस के बाहर प्रदर्शन करेंगे। पेमेंट न मिलने के कारण उन्होंने पहले ही काम ठप कर दिया है। शहर में जगह-जगह साइकिल ट्रैक बनाने का काम रुक गया है। यहां तक की मलोया में बनाए जा रहे सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का काम भी रुक गया है। मेयर और एमपी ने उठाया मामला
वीरवार को मेयर देवेश मोदगिल और एमपी किरण खेर ने निगम की खस्ता वित्तीय हालत का मामला पार्टी के संगठन मंत्री रामलाल के सामने उठाया। रामलाल ने कहा कि वह इस मामले को एडमिनिस्ट्रेटर के साथ साथ होम मिनिस्ट्री के साथ भी उठाएंगे। देवेश मोदगिल ने कहा कि निगम को वित्तीय संकट से निकालने के प्रयास किए जा रहे है और शीघ्र ही प्रशासन से उसके हिस्से की पूरी ग्रांट मिलेगी। कांग्रेस का डेलीगेशन मिला प्रशासक से
कहा- निगम द्वारा अलॉट किए कामों की जांच करवाएं
कांग्रेस के डेलीगेशन ने वीरवार को प्रशासक वीपी सिंह बदनौर के सामने निगम की खस्ता हालत का मामला रखा। कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा, काउंसलर दविंदर बबला, गुरबख्श रावत, पूर्व मेयर सुभाष चावला व कमलेश ने एमसी द्वारा अलॉट किए गए कामों की जांच करवाने को कहा। बबला ने कहा कि एमसी ने एक प्राइवेट कंपनी को 7 साल के लिए सफाई का ठेका दिया है। हर माह कंपनी को 4 करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं, जोकि निगम की वित्तीय हालत खस्ता होने का सबसे बड़ा कारण है। कमिश्नर बोले-प्रयास कर रहे
एमसी कमिश्नर जितेंदर यादव के अनुसार प्रशासन को ग्रांट के लिए कहा गया है। इसके अतिरिक्त एमसी अपने स्तर पर भी रेवेन्यू जेनरेट करने के प्रयास कर रहा है। यादव ने माना कि एमसी की वित्तीय हालत ास्ता होने के कारण पेमेंटस में परेशानी आ रही है। उनके पास करीब साठ करोड़ की एफडी है, जिसमें से 40 करोड़ कांट्रेक्टर्स को दिए जाने है। बच-बचाकर सिर्फ 15 करोड़ ही बचेंगे। ----------------------------------------------------
नॉन प्लानिंग : निगम ने यहां खर्च कर दिया एफडी का पैसा दुकानें बनाने पर करोड़ों खर्च कर दिए, नहीं बेच पाया
निगम को सबसे अधिक नॉन प्लानिंग ने डुबोया है। पिछले 5 साल में जो भी प्रोजेक्ट शुरू किए उनमें से एक भी सिरे नहीं चढ़ा। सेक्टर 17 में लगभग 50 करोड़ की लागत से मल्टीलेवल पार्किग शुरू की गई, जबकि पार्किंग की समस्या जस की तस है। 20 करोड़ रुपये से अधिक नया ब्रिज बनाने में लगा दिए। इसका भी कोई अधिक फायदा नहीं हुआ। मौलीजागरां में 280 दुकानें बनकर तैयार है लेकिन एमसी इन्हें बेच ही नहीं पाया। सेक्टर 41 में बनी फिश मार्केट भी सालों से खाली है। यही नहीं 5 साल में शहर में 50 करोड़ रुपये से अधिक के पेवर ब्लाक ही लगा दिए। शहर के दक्षिणी सेक्टरों में नाइट फूड स्ट्रीट बनाने में ही एमसी के करोड़ो रुपये लग गए। निगम इनका कोई भी यूज नहीं कर सका। हर माह सफाई कंपनी को साढ़े चार करोड़
एमसी पहले पूरे शहर की सफाई पर लगभग 65 से 70 करोड़ रुपये खर्च करता था। अब शहर के दक्षिणी सेक्टरों की सफाई का ठेका एक प्राइवेट कंपनी को दिया हुआ है। इस कंपनी को हर महीने साढे़ चार करोड़ की पेमेंट की जा रही है। ऐसे में आधे शहर की सफाई के लिए ही 54 करोड़ रुपये सालाना प्राइवेट कंपनी को दिया जा रहा है। सेक्टर 37 और 38 में कम्यूनिटी सेंटर बनाने में 12 से 14 करोड़ रुपये खर्च किए गए। युनिटी सेंटर्स में 10 से 12 लाख रुपये के तो झूमर ही लगा दिए।
------------------------------------- वित्तीय संकट : निगम सिर्फ फिजूलखर्ची में लगा रहा 2017 से गहराने लगा था संकट
निगम पर वित्तीय संकट की छाया मार्च 2017 से ही शुरू हो गई थी। सबसे बड़ी दिक्कतयह हुई कि एमसी अपनी एक भी प्रॉपर्टी बेच नहीं पाया। सेक्टर 17 में तैयार दुकानों से ही एमसी को 50 करोड़ से अधिक मिल सकते थे। इसी प्रकार मौलीजागरां की दुकानों से भी 30 से 35 करोड़ मिल सकते थे। कोई कदम नहीं उठाया
एमसी ने इस संकट से निकलने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। एमसी के अफसर फिजूलखर्ची पर ही लगे रहे। इसका उदाहरण है कि शहर में कई जगह चंद सालों में ही पेवर ब्लाक उखाड़ कर नए लगाए गए। समूचे शहर को कंक्रीट के जंगल में बदल दिया गया। एमसी के काउंसलर्स आपसी राजनीति में उलझे रहे। गलतियां दोहराई जाती रही
इंस्टीट्यूट आफ चार्टेड अकाउंटेंट के चंडीगढ़ चैप्टर के पूर्व चेयरमैन उमाकांत मेहता के अनुसार फिजूल ार्चियों को रोककर एमसी काफी हद तक अपने संकट को कम कर सकता था। प्रशासन ने ग्रंाट रोककर सही किया है।
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