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डीजीपी नियुक्ति को लेकर केंद्र का हस्तक्षेप नहीं चाहती कैप्टन सरकार

पंजाब पुलिस में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर पंजाब की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार ने केंद्र सरकार का हस्तक्षेप नहीं चाहती।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Fri, 10 Aug 2018 08:37 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2018 09:08 PM (IST)
डीजीपी नियुक्ति को लेकर केंद्र का हस्तक्षेप नहीं चाहती कैप्टन सरकार
डीजीपी नियुक्ति को लेकर केंद्र का हस्तक्षेप नहीं चाहती कैप्टन सरकार

जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब पुलिस में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर राज्य सरकार ने केंद्र का हस्तक्षेप नहीं चाहती। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 3 जुलाई के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का जो फैसला लिया है, उससे साफ जाहिर है कि राज्य सरकार लॉ एंड आर्डर जैसे मामले में केंद्र की दखलंदाजी नहीं चाहता।

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काबिलेगौर है कि तीन जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि डीजीपी की नियुक्ति के लिए तीन सीनियर अधिकारियों का पैनल यूपीएससी को भेजा जाए। वही तय करेंगे कि इनमें से कौन डीजीपी होगा। अगर ऐसा होता है तो किसी भी राज्य का मुख्यमंत्री अपनी पसंद का डीजीपी नहीं लगा सकेगा और चूंकि सितंबर महीने में मौजूदा डीजीपी सुरेश अरोड़ा को रिटायर होना है, इसलिए परख की घड़ी में सबसे पहला नंबर पंजाब का आ गया है।

अरोड़ा को एक्सटेंशन नहीं

कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा एजी अतुल नंदा से राय लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का जो फैसला लिया गया है उससे एक सवाल यह भी उठता है कि क्या सरकार मौजूदा डीजीपी सुरेश अरोड़ा को ही फिलहाल एक्सटेंशन देना चाहती है। हालांकि सीएम के निकटवर्ती सूत्रों का कहना है कि जब तक इस केस का फैसला नहीं होता तब तक अरोड़ा को एक्सटेंशन देने पर विचार किया जा सकता है, इसीलिए यूपीएससी को फिलहाल तीन सीनियर अधिकारियों का पैनल नहीं भेजा जा रहा है।

ऐसी स्थिति में केंद्र और पंजाब की कांग्रेस सरकार के बीच कलह की जमीन तैयार होती नजर आ रही है। अगर पंजाब सरकार 3 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए प्रस्ताव को स्वीकार करती है तो उसके हाथ में केवल डीजीपी के लिए पैनल बनाने का ही अधिकार रह जाएगा और वह अपनी मर्जी से डीजीपी को नहीं लगा सकेगी। जबकि राज्य सरकार किसी भी सूरत में डीजीपी लगाने के अधिकार को खोना नहीं चाहती है।

यही कारण है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एडवोकेट जनरल अतुल नंदा से इस संबंध में राय मांगी थी। एडवोकट जनरल ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस फैसले से राज्य की शक्ति न सिर्फ कम होगी। बल्कि राज्य के मामले में केंद्र की दखलंदाजी बढ़ेगी। चूंकि भारतीय संविधान की व्यवस्थाओं के अनुसार कानून व्यवस्था राज्य का मामला है, इसलिए डीजीपी कौन होगा? यह तय करना भी राज्य सरकार का ही काम है न कि यूपीएससी का। पंजाब सरकार के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध रिव्यू याचिका डालने के फैसले से ही यह चर्चा शुरू हो गई है कि पंजाब सरकार डीजीपी सुरेश अरोड़ा को एक्सटेंशन देना चाहते है। चूंकि सुरेश अरोड़ा 30 सितंबर को सेवानिवृत्त हो रहे है।

महत्वपूर्ण यह भी है कि जिस समय सुरेश अरोड़ा सेवानिवृत्त होंगे उस समय पंजाब में 13000 से अधिक पंचायतों व 22 जिला परिषदों के चुनाव चल रहे होंगे। हालांकि मुख्यमंत्री कार्यालय ने डीजीपी के एक्सटेंशन की बात की पुष्टि तो नहीं की है लेकिन यह तय है कि पंजाब सरकार अपनी मर्जी से डीजीपी लगाने के अधिकार को खोना नहीं चाहती है। 

ये भी हैं लाइन में...

मार्च 2017 में जब अकाली भाजपा सरकार से सत्ता कांग्रेस के हाथ में आई थी तो यह तय माना जा रहा था कि मौजूदा डीजीपी सुरेश अरोड़ा की जगह मोहम्मद मुस्तफा कमान संभाल सकते हैं लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सुरेश अरोड़ा को ही डीजीपी के रूप में रखकर सभी को भौचक्का कर दिया। माना गया है कि इसके पीछे नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजीत डोबाल का भी हाथ है। अब जब अरोड़ा रिटायरमेंट के करीब हैं तो उन्हें किसी राज्य का राज्यपाल लगाने भी चर्चा है।

अरोड़ा के बाद कौन?

अब सवाल यह पैदा होता कि यदि पैनल के हिसाब से डीजीपी तय किया गया तो पिछले 17 सालों से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चल रहे 1984 बैच के सामंत गोयल सबसे सीनियर हैं। पता चला है कि वह राज्य में सेवाएं देने के इच्छुक नहीं हैं। उनके बाद मोहम्मद मुस्तफा का नंबर है जो 1985 बैच के हैं। उनके अलावा 85 बैच के हरदीप ढिल्लों और 1986 बैच के जसमिंदर सिंह और एस चट्टोपाध्याय भी लाइन में हैं, लेकिन सीएम की पसंद डीजीपी इंटेलिजेंस दिनकर गुप्ता बताए जाते हैं जो 1986 बैच के हैं।

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