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अब पराली से बनेंगी ईटें और साबुन, मोहाली की दो वैज्ञानिकों को मिली सफलता

पराली से अब ईंटें, कपड़े धोने का साबुन और डिटर्जेंट बनाया जा सकेगा। यह आविष्कार मोहाली की वैज्ञानिक डॉ. मेनका झा और डॉ. दीपा घोष ने किया है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Thu, 01 Nov 2018 12:49 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2018 12:49 PM (IST)
अब पराली से बनेंगी ईटें और साबुन, मोहाली की दो वैज्ञानिकों को मिली सफलता
अब पराली से बनेंगी ईटें और साबुन, मोहाली की दो वैज्ञानिकों को मिली सफलता

चंडीगढ़ [सुमेश ठाकुर]। पराली से अब ईंटें, कपड़े धोने का साबुन और डिटर्जेंट बनाया जा सकेगा। यह आविष्कार किया है इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी मोहाली की वैज्ञानिक डॉ. मेनका झा और डॉ. दीपा घोष ने। दो साल की लंबी रिसर्च के बाद मोनिका ने पराली से ईंटें, साबुन और डिटर्जेंट बनाने में सफलता हासिल की है।

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इस खोज का मुख्य उद्देश्य पंजाब और हरियाणा में जलाई जा रही पराली पर रोक लगाना है, ताकि वायु में फैलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड भी खत्म हो सके और सर्दियों के मौसम में होने वाली धुंध व सांस की बीमारियों से बचा जा सके। डॉ. मेनका के आविष्कार में पराली को खास तरीके से जलाया जाएगा। पराली को जलाने से पहले इस पर एक खास सॉल्यूशन लगाया जाएगा।

इसमें पराली को जलाने से निकलने वाली गैस इकट्ठी होगी। जलने के बाद जो राख बचेगी, उसमें सीमेंट डालकर उसे मिक्स किया जाएगा और ईंट के सांचे में ढाला जाएगा। वहीं, जो कार्बन डाइऑक्साइड सॉल्यूशन में जमा होगी, उससे एक विशेष प्रकार का तरल पदार्थ पैदा होगा, जिसमें कुछ सोडा डालकर कपड़े धोने का साबुन और डिटर्जेंट बनाया जा सकेगा।

साल के अंत तक बाजार में आएंगी ईंटें

डॉ. मेनका ने बताया कि पराली को जलाकर बनाई गई ईंटें व साबुन को फाइनल टेस्ट के लिए भेजा गया है। यदि यह पास हो जाता है, तो सालभर में पराली से बनी हुई ईंटें मार्केट में उपलब्ध होंगी। इसके साथ ही इसे गांव के लोग या फिर ईंट-भट्ठे पर बड़े स्तर पर प्रयोग किया जा सकेगा।

मार्केट वेल्यू से सस्ती व टिकाऊ

डॉ. मेनका ने दावा किया कि पराली की राख से यदि ईंटें बनाई जाती हैं, तो वे आम ईंटों से कहीं ज्यादा मजबूत होंगी, क्योंकि उसमें एक तो सीमेंट इस्तेमाल होगा और दूसरा पराली की राख डालने से वह जल्दी गलेंगी नहीं। गांव में लोग मिट्टी के मकान बनाते हैं। मिट्टी की ईंटों की जगह पर यदि इन ईंटों का इस्तेमाल होगा, तो घर की बाहरी दीवारों की मरम्मत की जरूरत नहीं पड़ेगी।

ऐसे आया आइडिया

डॉ. मेनका झारखंड से संबंध रखती हैं। घर आने-जाने के लिए हमेशा मोहाली से दिल्ली मार्ग का ही इस्तेमाल करती हैं। उस दौरान हरियाणा के रास्ते में पराली को जलते हुए देखती थी और कहीं न कहीं उसके बुरे प्रभावों से भी जूझती थी। वहीं से मैंने सोचा कि पराली से कोई ऐसी उपयोगी चीज बनाई जाए कि पर्यावरण प्रदूषण से बचाव हो सके।

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