मेयर चुनाव में BJP को फिर सता रहा बगावत का डर, नाम फाइनल होने पर बवाल तय Chandigarh News
चंडीगढ़ बीजेपी में गुटबाजी इतनी हावी है कि नेता और पार्षद अपने ही उम्मीदवार को हरवाने के लिए पीछे नहीं रहते। इस बात की जानकारी हाईकमान को भी है।
चंडीगढ़ [राजेश ढल्ल]। नए साल में होने वाले मेयर चुनाव के लिए जहां दावेदारों ने लॉबिंग शुरू कर दी है। वहीं, भाजपा के सीनियर नेताओं की धड़कनें बढ़नी शुरू हो गई हैं क्योंकि पिछले दो मेयर चुनाव में पार्टी को अपने ही पार्षदों की बगावत झेलनी पड़ी है। पार्टी द्वारा किसी एक का नाम तय करने पर जमकर बवाल हुआ है। इसलिए ही अब पार्टी ने हाईकमान से मांग की है कि मेयर का कार्यकाल या तो पांच साल के लिए हो या फिर प्रत्यक्ष तौर पर सीधे मेयर का चुनाव शहर के मतदाताओं से करवाया जाए। पार्टी में गुटबाजी इतनी हावी है कि नेता और पार्षद अपने ही उम्मीदवार को हरवाने के लिए पीछे नहीं रहते। इस बात की जानकारी हाईकमान को भी है।
खेर और टंडन ने हाईकमान पर बनाया दबाव
इस समय भी यह आशंका जताई जा रही है कि किसी एक का नाम तय होने पर बगावत होना तय है। चंडीगढ़ भाजपा का बवाल और गुटबाजी से पुराना संबंध रहा है। भाजपा को कांग्रेस से कम और अपने ही नेताओं का विरोध ज्यादा झेलना पड़ता है। नए साल में होने वाला मेयर का पद जनरल कैटेगरी की महिला पार्षद के लिए रिजर्व है और अपनी चहेती महिला पार्षद को मेयर का उम्मीदवार बनाने के लिए सांसद किरण खेर और भाजपा अध्यक्ष संजय टंडन ने जोर लगाना शुरू कर दिया है। दोनों ने हाईकमान पर अपने गुट की महिला पार्षद को टिकट देने का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। जब-जब नगर निगम में भाजपा आई है तब-तब पार्षदों ने अपनी ही उम्मीदवारों के खिलाफ मोर्चा खोला है।
आइए जानते है पिछले सालों में कब-कब हुआ बवाल
1. इसी साल जब पार्टी ने राजेश कालिया को उम्मीदवार बनाया तो सतीश कैंथ ने बगावत करते हुए निर्दलीय तौर कांग्रेस के समर्थन से मेयर का चुनाव लड़ा। बेशक वे चुनाव हार गए हैं लेकिन वह भाजपा के आठ पार्षदों के वोट क्रॉस करवाने में कामयाब रहे। राजेश कालिया चुनाव जीत गए लेकिन भाजपा की शहर में काफी किरकिरी हुई। लोकसभा चुनाव से पहले सतीश कैंथ भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए।
2. 2018 में पार्टी ने पूर्व सांसद सत्यपाल जैन गुट के देवेश मोदगिल को मेयर पद का उम्मीदवार बना दिया। उस समय भाजपा अध्यक्ष संजय टंडन गुट की आशा जसवाल ने बगावत करते हुए अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ नामांकन भर दिया। मतदान से एक दिन पहले टंडन गुट की मांग पर मोदगिल से माफीनामा लिखवाया गया जिसके बाद आशा जसवाल ने नामांकन वापस लिया। उस समय भी आशा जसवाल को 12 भाजपा पार्षदों ने समर्थन दिया था।
3. 2017 में नगर निगम में वित्त एवं अनुबंध कमेटी के पांच सदस्यों के लिए चुनाव हुआ जिसमें एक सीट पर सांसद किरण खेर गुट की पार्षद हीरा नेगी को खड़ा किया लेकिन गुटबाजी के कारण हीरा नेगी चुनाव हार गई जबकि भाजपा के पास नेगी को जीत दिलवाने का पूर्ण बहुमत था। इसके लिए खेर गुट ने टंडन गुट की हाईकमान को शिकायत भी की थी।
4. 2015 में सांसद किरण खेर के दबाव के कारण पार्टी ने हीरा नेगी को मेयर पद का उम्मीदवार बनाया जबकि टंडन गुट आशा जसवाल को मेयर बनवाना चाहता था लेकिन टंडन गुट की उम्मीदवार तय करते नहीं चली जिसके बाद क्रॉस वोटिंग करते हुए हीरा नेगी को मेयर का चुनाव हरवा दिया उस समय कांग्रेस के आठ पार्षद होने के बावजूद पूनम शर्मा चुनाव जीत गई।
5. 1998 में भाजपा ने अपनी ही पार्टी द्वारा तय उम्मीदवार को हरवाकर बागी उम्मीदवार केवल कृष्ण आदिवाल को मेयर का चुनाव जितवा दिया था। इस बार ये हैं दावेदार इस बार होने वाले मेयर चुनाव के लिए पांच महिलाओं में उम्मीदवार बनने के लिए टकराव है। जिनमें सांसद किरण खेर गुट से पूर्व मेयर राजबाला मलिक और हीरा नेगी का नाम शामिल है। जबकि टंडन गुट से पूर्व मेयर आशा जसवाल, सुनीता धवन और चंद्रवती शुक्ला का नाम शामिल है। कांग्रेस जीत के आकड़े से कोसों दूर है, इसलिए वह चाहती है कि भाजपा में बवाल हो। इस समय नगर निगम में भाजपा के कुल 20 और कांग्रेस के चार पार्षद हैं। जबकि अकाली का एक पार्षद है जिसका भाजपा के साथ गठबंधन है।
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