बड़ी राहत: पीजीआइ में खोजा कैंसर के इलाज का नया तरीका
चंडीगढ़ पीजीआइ में कैंसर के इलाज की नई तकनीक की खोज की गई है। इससे कैंसर का शुरूआती स्टेज में ही पता लगाया जा सकेगा और इसका आसानी से इलाज हो सकेगा।
चंडीगढ़, [डॉ. रविंद्र मलिक]। असाध्य रोग कैंसर से पीडि़त लोगों के लिए राहत की खबर है। चंडीगढ़ पीजीआइ में कैंसर के इलाज का नया तरीका ईजाद किया है पीजीअाइ के न्यूक्लियर मेडिसन विभाग के प्रो. बलजिंदर सिंह ने कैंसर के ट्रीटमेंट का यह नया तरीका खोजा है। इस तकनीक से कैंसर डायग्नोस भी होगा और इसका इलाज भी।
कैंसर को शुरुआती स्टेज में ही डायग्नोस कर बचाई जा सकती है जिंदगी
कैंसर अगर प्राथमिक स्टेज पर डिटेक्ट हो जाए, तो इसका इलाज संभव है। ऐसे में प्रो. बलजिंदर सिंह द्वारा खोजा गया नया ट्रीटमेंट बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। इसके बारे में वह ब्रिटेन में प्रेजेंटेशन भी दे चुके हैं और वहां उनकी रिसर्च की काफी तारीफ भी हुई। इसके अलावा कई जगह इसके प्रजेंटेशन के लिए उनको बुलाया गया है। उनके इस तरीके में डायग्नोस और ट्रीटमेंट दोनों में समान रूप से प्रभावी है। यह ट्रीटमेंट मुख्य रूप से प्लाज्मा सेल कैंसर के इलाज में प्रभावी होगा। यूके में उनको सम्मानित भी किया गया है। वो न्यूक्लियर सोसायटी ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट भी हैं।
गैलियम 68 और प्रोटीन से डिटेक्ट होता है कैंसर
उनके द्वारा खोजे गए ट्रीटमेंट में गैलियम 68 और प्रोटीन के छोटे रूप का इस्तेमाल होता है। इसको पैटियम 4 भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल मनुष्य पर किया जाता है। इंसानी शरीर में कीमोकाइन रिसेप्टर मिलने पर कैंसर होता है। उनकी तकनीक से शरीर में कीमोकाइन रिसेप्टर की तुरंत डिटेक्शन हो जाती है। इसके डायग्नोस होने पर इलाज समय पर शुरू हो जाने से कैंसर को खत्म किया जा सकता है।
ऐसे काम करेगा ट्रीटमेंट
डॉ. बलविंदर सिंह की खोज कैंसर मरीजों के डायग्नोस में ही नहीं, बल्कि इलाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। कैंसर की डिटेक्शन के बाद ट्रीटमेंट शुरू होता है। इसके इस्तेमाल से कैंसर पैदा करने वाली सेल को नष्ट करने में मदद मिलती है। यह कीमोकाइन रिसेप्टर को तुरंत टारगेट कर अटैक करने में सक्षम है। तकनीक के जरिए शरीर में कीमोकाइन रिसेप्टर को ढूंढ़ा जाता है। इससे पहले फ्लोरिन 18 और ग्लूकोज को सयुंक्त रूप से इस्तेमाल कर कैंसर डिटेक्शन की जाती थी। यह नई तकनीक पहली की तुलना में ज्यादा कारगर है।
विदेशों में भी बज रहा डंका
प्रो. बलजिंदर को रिसर्च की प्रेजेंटेशन के लिए कई देशों में से बुलाया गया है। ब्रिटिश न्यूक्लियर मेडिसन सोसायटी द्वारा आयोजित कांफ्रेंस में ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में इसको लेकर बाकायदा वे प्रेजेंटेशन दे चुके हैं। इसके लिए उनको काफी सराहना मिली है। फिलहाल वे रूस के दौरे पर हैं। वहां वे एटम एक्सपो 2018 में शिरकत कर रहे हैं।
विश्व में सातवां और एशिया में पहला संस्थान है पीजीआइ
दुनियाभर में कैंसर के इलाज में इमेजिंग तकनीक का इस्तेमाल गिने-चुने देशों में ही होता है। महज सात देश ही ऐसे हैं, जहां इस तकनीक से इलाज होता है। एशिया में पीजीआइ ही अकेला ऐसा संस्थान है, जिसमें इसके माध्यम से इलाज किया जाता है। फेफड़ों के कैंसर के 100 मरीजों का इलाज इससे किया जा चुका है।
डीएसटी से डेढ़ करोड़ मिला
प्रो. बलविंदर सिंह इस पर लगातार रिसर्च कर रहे हैं। इसके लिए डीएसटी यानी डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी द्वारा डेढ़ करोड़ की राशि दी गई थी। रिसर्च के परिणाम पूरी तरह सकारात्मक रहे हैं, जोकि युवा और नई फैकल्टी को भी रिसर्च की दिशा में प्रेरित करने वाला है।
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'' इसको लेकर यूके व अन्य देशों में प्रेजेंटेशन दे चुका हूं। फिलहाल में रूस में हूं। वहां भी इस बारे में चर्चा हुई। अब तक के नतीजे बेहद ही उत्साहित करने वाले हैं।
- प्रो. बलजिंदर सिंह, पीजीआइ, चंडीगढ़।