पंजाब में जमीन कद्दू कर धान लगाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी भाकियू
भारतीय किसान यूनियन कादियां भूजल को बचाने के लिए जमीन को कद्दू करके धान की रोपाई के खिलाफ लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।
चंडीगढ़ [इंद्रप्रीत सिंह]। भारतीय किसान यूनियन कादियां अब भूजल को बचाने के लिए जमीन को कद्दू करके (जुताई करके जमीन के छिद्र बंद करना, ताकि पानी जमीन में न रिसे) धान की रोपाई के खिलाफ लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। यूनियन का कहना है कि कोरोना के कारण यूपी और बिहार से आने वाली लेबर पलायन कर गई तो किसानों ने पहली बार डायरेक्ट सीडिंग राइस (डीएसआर) तकनीक अपनाई। लगभग बीस फीसद किसानों ने इस तकनीक को अपनाया। आज लगभग 70 दिन बाद इसके पनपने के परिणाम को देखते हुए किसान संगठनों ने कद्दू करने पर पाबंदी लगाने की मांग उठा दी है।
भाकियू कादियां इससे पराली न जलाने वाले किसानों को 2500 रुपये प्रति एकड़ मुआवजा देने की लड़ाई जीत चुकी है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को लागू करवाने को लेकर अब भी केस लंबित है। यूनियन के जनरल सेक्रेटरी तलविंदर सिंह ने कहा, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट में तारीख लगेगी, उसी दिन यूनियन एक एप्लीकेशन देकर कद्दू करने पर पाबंदी लगाने की मांग उठाएगी। तलविंदर सिंह ने कहा कि डीएसआर तकनीक से 33 फीसद पानी लगता है तो किसानों पर कद्दू करके धान लगाने वाली तकनीक क्यों थोपी जा रही है। किसानों को यह लड़ाई सड़कों पर उतर कर नहीं, अदालतों का सहारा लेकर लड़़नी होगी।
30 फीसद जमीन पर अपनाई गई है डीएसआर तकनीक
पंजाब खेतीबाड़ी विभाग का कहना है कि इस साल 30 फीसद के लगभग जमीन पर कद्दू किए बिना धान की लगाई गई है जो लगभग 5.19 लाख हेक्टेयर से ज्यादा बनती है।
2002 में मेरी बात मानी होती तो राज्य में भू जल समस्या न होती : डॉ. दलेर सिंह
इस तकनीक को वीडियो के जरिए ज्यादा से ज्यादा फैला रहे डॉ. दलेर सिंह का कहना है कि मेरा अपना अनुमान है कि इतनी जमीन पर डीएसआर के जरिए धान लगाने से किसानों को 66 फीसद पानी कम खर्च करना पड़ा है। खेती विभाग से ही रिटायर हुए डॉ. दलेर सिंह का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या पानी को बचाने की है। अगर हम जमीन को कद्दू न करें तो बरसाती पानी खेतों के जरिए रीचार्ज हो जाता है। मैं 2002 से इस तकनीक के जरिए किसानों, पीएयू और खेती विभाग के अधिकारियों को धान लगाने की सलाह दे रहा हूं । अगर ऐसा किया होता तो भूजल को लेकर कोई दिक्कत न होती।
उन्होंने कहा, यह तकनीक केवल भूजल को ही नहीं बचाएगी बल्कि पराली का हल भी निकालेगी। डॉ दलेर सिंह ने बताया कि इससे पराली 15 दिन पहले पकेगी। अगर किसान इसे मल्चिंग के तौर पर प्रयोग कर लें तो धान के खेतों में लगाई जाने वाली अगली फसल की पैदावार भी 15 फीसद बढ़ेगी। इसके अलावा किसानों को पराली संभालने के लिए अतिरिक्त समय भी मिल सकेगा।
किसान भी अपनाने लगे नई तकनीक
फतेहगढ़ साहिब के गांव डडियाणा के किसान अवतार सिंह ने अपनी दो एकड़ जमीन पर डीएसआर के जरिए धान की बिजाई की है। उन्होंने बताया कि अभी तक इनमें केवल एक बार ही ट्यूबवेल के जरिए पानी लगाया है। चूंकि इसमें पानी की जरूरत कम होती है, इसलिए समय-समय पर हो रही बारिश धान की जरूरत को पूरा कर रही है। किसान हरमीत सिंह ने बताया कि इस तकनीक के चलते उन्हें यूरिया, नदीन नाशक की मात्रा बढ़ानी पड़ी है, लेकिन यह फिर भी कद्दू वाली तकनीक से बेहतर है। हमने दोनों तरह से धान लगाई है और दोनों को खर्च अलग-अलग रख रहे हैं, ताकि पता चल सके किस तकनीकी से कितना फायदा नुकसान हुआ है।