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याद रहेंगे भारतेंदु हरिश्चंद्र और रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

By JagranEdited By: Published: Sun, 15 Sep 2019 08:15 PM (IST)Updated: Sun, 15 Sep 2019 08:15 PM (IST)
याद रहेंगे भारतेंदु हरिश्चंद्र और रामधारी सिंह दिनकर
याद रहेंगे भारतेंदु हरिश्चंद्र और रामधारी सिंह दिनकर

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : आधुनिक हिदी साहित्य के पितामह भारतेंदु हरिश्चंद्र और राष्ट्रकवि पद्मविभूषण रामधारी सिंह दिनकर के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन को टैगोर थिएटर सेक्टर-18 में आयोजित किया गया जहां पर ट्राईसिटी के सौ कवियों ने भाग लिया और दोनों कवियों की रचनाओं को पेश किया। कवि सम्मेलन का आयोजन साहित्यकार बलवंत सिंह रावत की अध्यक्षता में किया गया। कवि वीरेंद्र वीर ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि साहित्य में बेहतर योगदान के कारण ही सन 1857 से 1600 तक के काल को भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है। आज जो हिदी हम लिखते-बोलते हैं, वह भारतेंदु हरिश्चंद्र की ही देन है। उन्होंने नवीन साहित्यिक चेतना और स्वभाषा प्रेम का सूत्रपात किया। भारतेंदु की रचनाओं में अंग्रेजी शासन का विरोध, स्वतंत्रता, सामाजिक समस्या और जातीय भावबोध की झलक मिलती है। इसके बाद कवि कार्तिक शर्मा ने भारतेन्दु के सवैये-''हम चाहत हैं तुमको जिउ से, तुम नेकहू नाहिनै बोलती हौ, यह मानहु जो 'हरिचंद' कहै, केहि हेत महाविष घोलती हौ'' को पेश किया। सम्मेलन के दूसरे चरण में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर' के साहित्यिक पक्ष पर वक्तव्य देते हुए डॉ. उर्मिला कौशिक 'सखी' ने कहा कि ''पद्य व गद्य में 50 से अधिक पुस्तकों के रचयिता थे। 'दिनकर' स्वतंत्रता पूर्व एक विद्रोही कवि तो स्वतन्त्रता पश्चात राष्ट्रकवि के नाम से जाने गए। एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रांति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। ..तुम मुझे पुत्र कहने आयीं किस मुख से

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इसके बाद 'दिनकर' के महाकाव्य 'रश्मिरथी' से 'कर्ण-कुंती' संवाद की रचनाएं कवि सुशील 'हसरत' नरेलवी ने ''तुम मुझे पुत्र कहने आयीं किस मुख से, मैं नाम-गोत्र से हीन, दीन, खोटा हूँ, सारथीपुत्र हूँ, मनुज बड़ा छोटा हूँ'', कवयित्री उर्मिला कौशिक 'स़खी' ने 'रे कर्ण! बेध मत मुझे निदारूण शर से, राधा का सुत तू नहीं, तनय मेरा है, जो धर्मराज का, वही वंश तेरा है'' एवं कवि वीरेन्द्र 'वीर' ने ''माँ ने बढ़कर जैसे ही कंठ लगाया, हो उठी कण्टकित पुलक कर्ण की काया'' सुनाकर श्रोताओं को भावविभोर कर खूब प्रशंसा बटोरी।


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