ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा: चंडीगढ़ पीजीआई में भर्ती घोटाला, स्वीकृत पदों से कई गुना अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति
पीजीआई में अनियमितताओं का खुलासा हुआ है जहां स्वीकृत पदों से अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। लिफ्ट ऑपरेटर और माली के पदों पर नियमों का उल्लंघन किया गया। मंत्रालय के प्रतिबंध के बावजूद आउटसोर्सिंग के माध्यम से भर्तियां हुईं जिससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ा। इंजीनियरिंग विभाग में भी वित्तीय अनियमितताएं पाई गईं।

मोहित पांडेय, चंडीगढ़। पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में गंभीर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की रोक के बावजूद संस्थान ने स्वीकृत पदों से कई गुना अधिक कर्मचारियों की नियुक्ति कर डाली। ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार लिफ्ट ऑपरेटर के सिर्फ 22 पद स्वीकृत थे, लेकिन 151 लोग कार्यरत पाए गए। इनमें 26 नियमित और 125 आउटसोर्स पर कार्य कर रहे हैं। माली के 35 स्वीकृत पदों के मुकाबले 101 कर्मचारी तैनात किए गए हैं।
इतनी बड़ी संख्या में अतिरिक्त नियुक्तियां नियमों और मंत्रालय के आदेश की खुली अवहेलना हैं। वर्ष 2018 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट आदेश जारी किया था कि जूनियर इंजीनियर से नीचे के सभी पदों पर भर्ती पर रोक रहेगी। इसके बावजूद पीजीआई ने भारी संख्या में आउटसोर्सिंग के जरिये कर्मचारियों की तैनाती की।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम ने न केवल मंत्रालय के आदेश की अनदेखी की है बल्कि सरकारी खजाने पर भी करोड़ों रुपये का अतिरिक्त बोझ डाला है। इसके साथ यह मामला सिर्फ अतिरिक्त भर्तियों का नहीं है, बल्कि संस्थान की पारदर्शिता और जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
इंजीनियरिंग विभाग भी ठेकेदार पर मेहरबान
ऑडिट रिपोर्ट में आगे पीजीआई के इंजीनियरिंग विभाग में वाॅटर सप्लाई और फायर पंप्स के संचालन और रखरखाव में बड़े वित्तीय घोटाले का खुलासा हुआ है। ठेकेदार जीके इंजीनियर्स को अनुबंध नियमों का पालन न करने के बावजूद अनुचित लाभ पहुंचाया गया। रिपोर्ट के अनुसार योग्य कर्मियों की कमी के साथ नियुक्ति प्रमाण उपलब्ध नहीं। ईपीएफ और एसआई गड़बड़ी, जमा प्रमाण नहीं, फिर भी भुगतान किया गया।
वहीं, ठेकादार की और से बिल जमा नहीं करवाने पर विभाग ने खुद बिल तैयार कर भुगतान किया। पीजीआइ इंजीनियरिंग विभाग ने जुर्माना नजरअंदाज करते हुए अनुबंध उल्लंघन पर 6.32 लाख रुपये की कटौती और 63,285 रुपये का जुर्माना नहीं लगाया।
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