पंजाब में जाखड़ के इस्तीफे के बाद कांग्रेस की सरगर्मियां ठप, पार्टी दफ्तर से रौनक गायब
अभी तक जाखड़ के इस्तीफे को लेकर दुविधा वाली स्थिति बनी हुई है। इस्तीफा देने के बाद सुनील जाखड़ ने पार्टी नेताओं वर्करों और मीडिया से भी दूरी बनाई हुई है।
चंडीगढ़ [जय सिंह छिब्बर]। पंजाब कांग्रेस की गतिविधियां करीब दो माह से ठप पड़ीं हैं। कांग्रेस भवन से रौनक गायब है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने के कारण राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की तरफ से कोई प्रोग्राम नहीं किया गया, लेकिन पंजाब में कांग्रेस पार्टी की सरकार होने के बावजूद पार्टी वर्कर मायूसी के आलम में हैं। कांग्रेस के नेता और वर्कर अपने आप को मझधार में फंसे हुए महसूस कर रहे हैं कि कोई उनकी बाज़ू पकड़ने वाला नहीं है।
पंजाब में दूसरे राज्यों के मुकाबले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नतीजे बेहतर रहे हैं। कांग्रेस ने आठ सीटों पर जीत हासिल की है, लेकिन पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने गुरदासपुर लोकसभा चुनाव में हारने के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पंजाब मामलों की इंचार्ज आशा कुमारी, नए चुने गए सांसदों समेत सीनियर नेताओं ने एक प्रस्ताव पास करके कांग्रेस हाईकमान को सुनील जाखड़ का इस्तीफ़ा रद करने की अपील की है। अभी तक जाखड़ के इस्तीफे को लेकर दुविधा वाली स्थिति बनी हुई है। इस्तीफा देने के बाद सुनील जाखड़ ने पार्टी नेताओं, वर्करों और मीडिया से भी दूरी बनाई हुई है।
इसी तरह नवजोत सिद्धू ने भी मुख्यमंत्री के साथ चल रहे मतभेद कारण कैबिनेट मंत्री के ओहदे से इस्तीफा दे दिया है। पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से इस्तीफा देने के कारण कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव कुलजीत सिंह नागरा भी इस्तीफा दे चुके हैं। लोकसभा चुनाव के बाद पंजाब कांग्रेस भवन में रौनक गायब है।
पार्टी से टूटा हुआ महसूस कर रहे वर्कर
कांग्रेस के कई सीनियर नेताओं, वर्करों का कहना है कि साधारण वर्कर कांग्रेस भवन में पार्टी अध्यक्ष सुनील जाखड़ को अपनी समस्याएं व मांगें बता देते थे। जाखड़ वर्करों की बात सुनकर अधिकारियों के साथ संपर्क भी कर लेते थे, लेकिन अब कांग्रेस भवन में बात सुनने वाला कोई नहीं है। पार्टी के कई नेताओं ने बताया कि मुख्यमंत्री तक कई नेताओं की पहुंच नहीं है। आम वर्कर तो पार्टी से टूटा हुआ महसूस कर रहा है। जिला परिषद और ब्लॉक समिति के चेयरमैन समेत बाकी बोर्डों, निगमों के चेयरमैन, मेंबर लगाने की सरकार की तरफ से तैयारी की जा रही है।
जिला परिषद और ब्लॉक समिति के चेयरमैन विधायक या मंत्री की इच्छा से चुने जाते हैं, लेकिन जिन नेताओं की विधायक के साथ नहीं बनती, उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। दिलचस्प बात है कि कई विधायक भी पार्टी की सक्रियता न होने व सुनील जाखड़ के पार्टी से दूरी बनाने के कारण अपनी बात नहीं रख पा रहे हैं। अब देखने वाली बात यह है कि पार्टी हाईकमान सुनील जाखड़ और नवजोत सिद्धू को मनाने में कामयाब होती है या नहीं।