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चंडीगढ़ में 35 साल बाद भी प्रॉपर्टी नहीं हो रही लीज से फ्री होल्ड

चंडीगढ़ में इंडस्ट्रियलिस्ट्स 35 साल से प्रॉपर्टी लीज से लीज होल्ड का इंतजार कर रहे हैं। बिजली के रेट और कलेक्टर रेट भी यहां पड़ोसी शहरों से ज्यादा हैं। बिजनेस करना मुश्किल हो गया है।

By Edited By: Published: Sun, 11 Nov 2018 11:11 PM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 12:06 PM (IST)
चंडीगढ़ में 35 साल बाद भी प्रॉपर्टी नहीं हो रही लीज से फ्री होल्ड
चंडीगढ़ में 35 साल बाद भी प्रॉपर्टी नहीं हो रही लीज से फ्री होल्ड

जागरण संवाददाता, चंडीगढ़। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिजनेस और इंडस्ट्री चलाने की राह को आसान करने पर जोर दे रहे हैं। दूसरी ओर चंडीगढ़ में बिजनेस करना और इंडस्ट्री चलाना आसान नहीं है। खुद भाजपा के पदाधिकारियों की चिंता भी इन मुद्दों ने बढ़ा दी है। चंडीगढ़ में इंडस्ट्रियलिस्ट्स 35 साल से प्रॉपर्टी लीज से लीज होल्ड का इंतजार कर रहे हैं। फ्री होल्ड का तो अभी सोचा भी नहीं जा सकता। बिजली के रेट और कलेक्टर रेट भी यहां पड़ोसी शहरों से काफी ज्यादा हैं। साथ ही प्लॉट में कोई दूसरा काम करने की मंजूरी भी नहीं है। ऐसा करने पर मिसयूज और वॉयलेशन के नोटिस झेलने पड़ते हैं।

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इन्हीं दिक्कतों को लेकर रविवार को भाजपा के अध्यक्ष संजय टंडन प्रशासक वीपी सिंह बदनौर से मिले। संजय टंडन ने लोगों को पेश आ रही दिक्कतों के बारे में प्रशासक को विस्तार से बताया। टंडन ने कहा कि शहर के व्यापारियों की कई मागें प्रशासन के पास लंबित पड़ी हैं। इनमें लीज होल्ड प्रॉपर्टी को फ्री होल्ड करना, शहर के एससीओ में बॉक्स टाइप स्ट्रक्चर की परमिशन देना शामिल है। इन समस्याओं को सुनने के बाद प्रशासक ने फाइनेंस सेक्रेटरी को तुरंत मीटिंग बुलाकर इनका हल निकालने के आदेश दिए हैं। इससे पहले इस मामले में प्रशासक ने फाइनेंस सेक्रेटरी के अंडर दो कमेटी का गठन भी किया था, जिसमें व्यापारियों और उद्योगपतियों के संगठनों के प्रतिनिधि भी शामिल हैं।

दिसंबर तक मिल सकती है खुशखबरी

दिसंबर तक प्रशासन व्यापारियों और उद्योगपतियों की जरूरी और जायज मांगों को पूरी करने की तैयारी में है। सबसे महत्वपूर्ण मांग लीज से लीज होल्ड प्रॉपर्टी ट्रांसफर की खुशखबरी मिल सकती है। इसके अलावा व्यापारियों को फ‌र्स्ट फ्लोर पर बिजनेस करने की अनुमति मिल सकती है। इसको लेकर पिछले सप्ताह फाइनेंस सेक्रेटरी एके सिन्हा नए डीसी मनदीप सिंह बराड़ के साथ मीटिंग कर चुके हैं। एस्टेट ऑफिस से जुड़े मामलों को डीसी देख रहे हैं। इसमें मिसयूज वॉयलेशन का मामला भी शामिल है। प्रशासन नए साल से पहले इन दोनों वर्गो को राहत दे सकता है। इसके लिए फाइनेंस सेक्रेटरी एके सिन्हा को मीटिंग बुलाने के आदेश प्रशासक वीपी सिंह बदनौर ने दे दिए हैं। प्रशासक ने सिन्हा को ये सभी समस्याएं समय सीमा निर्धारित कर निपटाने के आदेश दिए हैं।

लीज से लीज भी प्रॉपर्टी नहीं होती ट्रांसफर

पिछले 35 सालों से इंडस्ट्रियलिस्ट्स को लीज से लीज होल्ड प्रॉपर्टी ट्रांसफर का इंतजार है। बड़ी बात तो यह है कि अभी तो लीज से लीज भी प्लॉट ट्रांसफर नहीं हो रहे, लीज से फ्री होल्ड तो अभी दूर की बात है। प्रशासन ने फेज-1 और 2 दोनों ही एरिया में इंडस्ट्रियलिस्ट को प्लॉट 1973 से 1982 के बीच अलॉट किए थे। यह प्लॉट इस शर्त पर अलॉट किए गए थे कि 15 साल बाद अनअर्न्ड प्रॉफिट पर प्रशासन ट्रांसफर की मंजूरी देगा। लेकिन 35 साल बीत जाने के बाद भी प्रशासन आज तक ट्रांसफर के लिए कोई पॉलिसी नहीं बना पाया है। अनअर्न्ड प्रॉफिट का मतलब ओरिजनल अलॉटी द्वारा दी गई राशि और ट्रांसफर के समय प्रॉपर्टी के मार्केट रेट के बीच अंतर है।

प्रशासन ने 2015 में जो इंडस्ट्रियल पॉलिसी बनाई थी, उसमें भी लीज से लीज होल्ड को मंजूरी दिए जाने का आश्वासन दिया गया था। अभी तक यह प्रॉपर्टी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी बेस पर ही ट्रांसफर होती रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के बाद अब जीपीए भी बंद हो गई है।

1200 एकड़ में है इंडस्ट्रियल एरिया

इंडस्ट्रियल एरिया कुल 1200 एकड़ में डेवलप किया गया है। यह फेज-1 और 2 में है। जिसमें फेज-1 776.14 एकड़ और फेज-2 486 एकड़ में है। दोनों फेज में लगभग 2500 प्लॉट लीज होल्ड पर हैं। वॉयलेशन का मामला काफी पुराना मिसयूज और वॉयलेशन की पेनल्टी भी आज तक तय नहीं हो पाई है। एक्ट में संशोधन पर यह मामला अटका है। इंडस्ट्रियलिस्ट को अपने प्लॉट में बिजनेस बदलने की अनुमति भी नहीं है। साथ ही स्ट्रक्चर को लेकर भी दिक्कतें हैं। कोई अपने प्लॉट में टीन शेड भी बनाता है तो उसे मिसयूज माना जाता है। इसके अलावा चंडीगढ़ में बिजली के रेट भी पड़ोसी राज्यों से अधिक हैं। 10 रुपये से अधिक प्रति यूनिट पड़ती है।

चंडीगढ़ में कलेक्टर रेट मोहाली और पंचकूला से कहीं ज्यादा हैं। जिस कारण कोई नया बिजनेस सेटअप करना काफी मुश्किल है। चंडीगढ़ में व्यापारियों की 11 मुख्य मांगें हैं। बूथ और बे शॉप में काम कर रहे व्यापारियों को स्टोरेज तक की जगह नहीं है। सेल्स एंड डिस्प्ले के लिए ऊपरी मंजिल पर मर्चेट की मंजूरी मिलनी चाहिए। इसके लिए कन्वर्जन फीस ली जाती है। इन दिक्कतों को हल करने के लिए कमेटी तो बनी है, लेकिन अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सका है।

-अनिल वोहरा, प्रेसिडेंट, चंडीगढ़ व्यापार मंडल।

चंडीगढ़ में इंडस्ट्री चलाना आसान नहीं है। दिक्कतों के कारण छोटे उद्योग तो बंद हो ही रहे हैं, दूसरी इंडस्ट्री भी पलायन कर रही हैं। चंडीगढ़ में लीज टू लीज प्रॉपर्टी ट्रांसफर तक की मंजूरी नहीं है। इसके अलावा बिजली के रेट पंजाब और हरियाणा से कहीं ज्यादा हैं। एमएसएमई एक्ट को लेकर भी दिक्कतें हैं। वहीं, कलेक्टर रेट तो काफी ज्यादा है ही।

नवीन मंगलानी, प्रेसिडेंट, चैंबर ऑफ चंडीगढ़ इंडस्ट्री।


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