सच्ची लगन और जिद की बदौलत मिली कामयाबी : आंचल ठाकुर
देश की तरफ से स्कीइंग में पहला मेडल जीतने वाली स्टूडेंट आंचल ठाकुर ने कहा सच्ची लगन हो तो कामयाबी जरुर मिलती है।
पूनम जाखड़, चंडीगढ़ : देश की तरफ से स्कीइंग में पहला मेडल जीतने वाली स्टूडेंट आंचल ठाकुर का मानना है कि अगर लगन सच्ची हो और मेहनत अच्छी हो तो कामयाबी जरुर मिलती है। आंचल पंजाब यूनिवर्सिटी से एमए की पढ़ाई कर रही हैं। आंचल कई प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और स्विट्जरलैंड टूरिज्म की प्रमोटर भी हैं। आंचल ने 2012 में यूथ विटर ओलंपिक में भारत को रिप्रेजेंट किया। 2017 में एशियन विटर गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2018 में फेडरेशन इंटरनेशनल डे स्की (एफआइएस) की तरफ से आयोजित प्रतियोगिता में इंडिया की तरफ से पहला मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। आंचल ने बताया कि स्कीइंग गेम बहुत महंगा है। खुद से ट्रेनिग करनी है तो एक दिन के लिए करीब 12 से 13 हजार रुपये खर्च आता है। एक प्रोफेशनल खिलाड़ी के इक्यूपमेंट्स लगभग पांच से सात लाख तक के पड़ते हैं। परिवार से दूरी ने बनाया अंदर से मजबूत
आंचल मूल रूप से मनाली, हिमाचल प्रदेश की रहने वाली हैं। 13 साल की उम्र से ट्रेनिग के लिए विदेश जाना शुरू कर दिया था। आंचल कहती हैं कि बाहर जाते समय अपने परिवार को परेशान होते कभी नहीं देखा। मां ने कभी नहीं दिखाया कि उनको मेरी याद आती है। पेरेंट्स ने पूरा सपोर्ट किया, जिसने मुझे अंदर से मजबूत बनाया। शौक से पैशन बना स्कीइंग
आंचल के पिता स्कीइंग में नेशनल चैंपियन रहे हैं और भाई भी स्कीइंग प्लेयर हैं। पांच साल की उम्र से दोनों को देखकर लकड़ी की बनी स्की से स्कीइंग करना शुरू किया था। उस समय प्रोफेशनल स्कीइंग नहीं थी। धीरे-धीरे शौक ही पैशन बन गया। पीएम भी कर चुके हैं तारीफ
2018 में देश को स्की में पहली बार इंटरनेशनल मेडल देने पर पीएम नरेंद्र मोदी भी आंचल ठाकुर की तारीफ करते हुए बधाई दे चुके हैं। आंचल ने बताया कि सिर्फ खेल पर फोकस है और 2022 में चाइना में होने वाले विटर ओलंपिक गेम्स में देश के लिए मेडल जीतना है। स्कीइंग का इंडिया में स्कोप कम
लैंडस्केप की बात करें तो इंडिया में ज्यादा अवसर हैं, हमारे पास हिमालय है। बाहर देशों में मैंने देखा है कि वो लोग हिमालय पर स्कीइंग करने के लिए तरसते हैं। इंडिया में कई ऐसी जगह हैं, जहां पूरे वर्ष बर्फ होती है। हिमालय में नेचुरल स्लॉप बने हुए हैं। अगर वहां सभी तरफ की सुविधा दी जाए तो खिलाड़ियों को आसानी होगी। इंडिया में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी होने की वजह से रेगुलर ट्रेनिग के लिए दूसरे देशों में जाना पड़ता है। अभी यूरोप जाना है, ग्लेशियर होने की वजह से वहां ट्रेनिग आसान रहेगी।