नितनेम में गुरुबाणी की इन पंक्तियों पर करें गौर... मिलकर लें सांसों की संभाल का संकल्प
पानी की तुलना श्री गुरु नानक साहिब ने पिता से की है लेकिन उसमें सीवरेज रासायनिक कचरे को फेंककर पीने वाले पानी को क्या हमने पीने लायक छोड़ा है?
जेएनएन, जालंधर। पवणु गुरु, पाणी पिता, माता धरति महतु... गुरुबाणी की यह पंक्तियां पाठ करने वाला सिख अपने नितनेम में हर रोज पढ़ता है, लेकिन क्या श्री गुरु नानक साहिब की इन पंक्तियों पर किसी ने गौर किया है? आज पवन रूपी गुरु में फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं, पराली को जलाने से निकलने वाले रासायनिक तत्व मिलकर उसका क्या हाल कर रहे हैं? पानी की तुलना श्री गुरु नानक साहिब ने पिता से की है, लेकिन उसमें सीवरेज, रासायनिक कचरे को फेंककर पीने वाले पानी को क्या हमने पीने लायक छोड़ा है?
पानी का गिलास पकड़ते ही डर लगने लगता है कि कहीं इसमें रासायनिक पदार्थ शरीर में कैंसर को न बढ़ा दें। धरती की तुलना उन्होंने मां से की है, जिसमें आए दिन हम रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक डाल डालकर उसे इस हालत में कर दिया है कि उससे पैदा होने वाला अनाज ही जहरीला हो गया है। ये सवाल खड़े करने का अर्थ केवल इतना ही है कि क्या हम गुरुबाणी को पढ़कर उसे अमल में भी लाएंगे या रोजाना तोता रटंत की तरह उसे पढ़ते रहेंगे। आज जब पूरे देश में बसे नानक नाम लेवा उनका 550 साला प्रकाशोत्सव मनाने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसे में क्या यह प्रण लिया जा सकता है कि जब उनका 600 साला प्रकाशोत्सव मनाएंगे तो हवा, पानी और धरती साफ सुथरी होगी। हमें गुरु की बाणी को सही मायनों में साकार करने का संकल्प लेना चाहिए।
पराली जलाकर दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे?
हम पर्यावरण को सुरक्षित करने के संकल्प की शुरुआत अभी से कर सकते हैं। गुरु नानक देव जी के प्रकाशोत्सव वाले महीने में सबसे ज्यादा पराली को जलाया जाता है। इससे उठने वाला धुआं पूरे उत्तर भारत को गैस चैंबर में बदल देता है। मनप्रीत बादल ने यह सवाल दो दिन पहले हुई कैबिनेट की मीटिंग में भी उठाया। उन्होंने कहा कि अगर इस साल पराली को जलाया गया, तो पंजाब सरकार, यहां के किसान पूरी दुनिया को क्या मुंह दिखाएंगे। क्या वे यह बता पाएंगे कि पवन को गुुरु मानने वाले किसानों ने उसका क्या हाल कर दिया है? मनप्रीत बादल ने कैबिनेट की मीटिंग में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से कहा कि इस बार किसानों को पराली न जलाने के लिए रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। यही अपील उन्होंने राज्य के सभी विधायकों से कहते हुए कहा कि अगर इस साल किसी ने भी पराली जलाई, तो पंजाबियों का सिर शर्म से झुक जाएगा। पराली जलाकर हम एक तरह से श्री गुरु नानक साहिब के प्रकाशोत्सव पर उनका अनादर कर रहे होंगे।
550 पौधे लगाने का कुछ अर्थ हो...
कृषि विभाग के सेक्रेटरी काहन सिंह पन्नू ने कहा कि पंजाब के हर गांव में 550 पौधे लगाने का कुछ अर्थ होना चाहिए। उन्होंने किसानों से कहा कि वे इस बार पराली न जलाकर और इन पौधों को संभालें, ताकि आप अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कम से कम साफ हवा दे सकें, जिसमें वे सांस ले सकें। अगर इस बार पराली जलाकर हमने पंजाब को गैस चैंबर बना दिया, तो क्या हमें गुरु साहिब का प्रकाशोत्सव मनाने का हक है? उन्होंने बताया कि विभाग ने अभी से ऐसी तैयारियां शुरू कर दी हैं। किसानों को लगातार मशीनें आदि दी जा रही हैं। ज्यादा कोशिश की जा रही है कि सोसायटियों के जरिए मशीनें ज्यादा दी जाएं, ताकि किसानों पर ज्यादा बोझ न बढ़ सके।
जीरो बजट की खेती पर फोकस करना होगा
नौकरी छोड़कर इन दिनों जीरो बजट की खेती कर रहे हरशरण सिंह का कहना है कि जहरीली दवाओं और कीटनाशकों ने धरती का सत्यानाश कर दिया है। आज हम जब श्री गुरु नानक साहिब का प्रकाशोत्सव मना रहे हैं, तो कम से कम इस ओर भी ध्यान दें कि कैसे कीटनाशक दवाओं व रसायनों का प्रयोग करके हम अपने खान-पान की चीजों को गुणात्मक रूप से सुदृढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि आए दिन बढ़ रही भयंकर बीमारियों के पीछे असली कारण ऐसे भोज्य पदार्थों का सेवन करना है, जो इन रासायनिक दवाओं और कीटनाशकों का उपयोग करके उगाए जाते हैं।
हरशरण सिंह, चंडीगढ़ में अपने जैसे अन्य किसानों की सहायता से सुखना लेक के पास ऑर्गेनिक मंडी लगाते हैं। जिस तरह से दिन ब दिन वहां लोगों की भीड़ उमड़ रही है, उससे साफ है कि लोगों में ऑर्गेनिक खेती के प्रति रुझान बढ़ रहा है, लेकिन अभी तक सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि हम लोग अच्छा भोज्य पदार्थ उगा रहे हैं, लेकिन सरकारें सब्सिडी उन लोगों को दे रही है, जो रासायनिक खाद और कीटनाशकों को उपयोग कर रहे हैं।
6200 औद्योगिक इकाइयां प्रदूषित कर रहीं पंजाब का पानी
मालवा का भूजल पीने योग्य नहीं है, लिहाजा यह इलाका पूरी तरह से नहरी पानी पर निर्भर है, लेकिन प्रदूषण के चलते आज यह पूरा इलाका कैंसर जोन बन चुका है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य की 6200 ऐसी औद्योगिक इकाइयां चिन्हित की हैं, जो पानी को प्रदूषित कर रही हैं। इसी तरह 3300 औद्योगिक इकाइयां हवा को प्रदूषित कर रही हैं।
पंजाब के शहरों से निकलने वाला सीवरेज का पानी का भी बिना ट्रीट किए नदियों में डाला जा रहा है। पूरे पंजाब में मात्र तीन ट्रीटमेंट प्लांट ही चल रहे हैं। औद्योगिक इकाइयों से निकलता धुआं कंट्रोल से बाहर हो रहा है। जब धान का सीजन आता है तो पराली जलाते समय पूरा प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तर भारत का इलाका गैस चैंबर में तबदील हो जाता है। अस्पतालों में सांस, चमड़ी और आंखों की बीमारियों के केस बढ़ जाते हैं।
80 फीसद पानी दूषित
भूजल व भूमिगत जल में नाइट्रोजन व फास्फोरस की मात्रा अधिक बढ़ रही है। इस वजह से 80 फीसद पानी दूषित हो चुका है। केवल 20 फीसद जल (केनाल वाटर) ही दूषित होने से बचा है। भूमिगत जल में केवल छह फीसद जल ही पीने लायक होता है। इसमें से भी 90 फीसद जल दूषित हो चुका है। इसके मुख्य कारणों में सीवरेज, इंडस्ट्री के निकलने वाले केमिकल, खेतों में इस्तेमाल होने वाले केमिकल, घरों में प्रयुक्त होने वाले सिथेंटिक साबुन, खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक व अन्य सामान शामिल हैं। मालवा क्षेत्र के जल में फ्लोराइड व लेड भी अधिक है। इस वजह से यहां कैंसर की स्थिति भी भयावह बनती जा रही है।
मानकों से 12 गुना ज्यादा प्रदूषण
हवा में फाइन पार्टिकल्स मैटर (पीएम) की मात्र 2:5 निर्धारित है। डब्ल्यूएचओ किसी भी क्षेत्र में हवा में शामिल दूषित कणों में 10 माइक्रो ग्राम पर क्यूबिक से अधिक मात्रा नहीं होनी चाहिए। भारतीय मानकों के अनुसार यह मात्रा 40 माइक्रो ग्राम पर क्यूबिक से अधिक नहीं होनी चाहिए। लुधियाना में दूषित कणों की संख्या 112 माइक्रो ग्राम पर क्यूबिक है, जो भारतीय मानकों अनुसार तीन गुणा से अभी अधिक है। डब्ल्यूएचओ अनुसार यह मात्रा 12 गुणा से भी अधिक है। हवा में इस समय सल्फर डाईऑक्साइड, नाइटट्रोजन आॉक्साइड के तत्व अधिक हैं।
उद्योगों व वाहनों ने बढ़ाई समस्या
पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अनुसार लुधियाना समेत अन्य शहरों में उद्योगों और वाहनों के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है। लुधियाना में इसके लिए नगर निगम व ट्रांसपोर्ट विभाग को जिम्मेवार माना गया है। इसके अलावा धान की पराली व गेहूं की नाड़ जलाने से भी प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हो रही है। अक्टूबर, नवंबर में यदि बरसात हो जाए, तो प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है। क्योंकि इस दौरान पटाखों के अलावा धान की कटाई के बाद पराली को आग लगाने के कारण प्रदूषण अधिक हो जाता है। -प्रस्तुति: इन्द्रप्रीत सिंह
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