12 साल तक मेट्रो ट्रेन पर काम, और अब मोनो रेल चलाने की तैयारी
चंडीगढ़, पंचकूला अौर मोहाली में अब मोनो रेल चलाने की तैयारी है। 12 साल तक मेट्रो रेल प्राेजेक्ट पर काम करने के बाद प्रशासन ने इससे पैर खींचने का फैसला करीब-करीब कर लिया है।
चंडीगढ़, [विशाल पाठक]। 12 साल तक मेट्रो ट्रेन शुरू करने की मुहिम व तैयारी और इस प्रोजेक्ट पर काम करने के बाद अब प्रशासन ने नई राह पकड़ी है। चंडीगढ़ प्रशासन अब ट्राईसिटी में मोनो रेल चलाने की तैयारी कर रहा है। 12 साल तक चंडीगढ़ प्रशासन ने मेट्रो के लिए पंजाब, हरियाणा व केंद्र सरकार के साथ 110 मीटिंग की। इसके साथ ही राइटस कंपनी से मेट्रो की डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करवाने पर दस करोड़ रुपये खर्च कर दिए। अब मेट्रो की बजाय मोनो रेल ही चलाई जाएगी।
बताया जाता है कि सांसद किरण खेर आैर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के मेट्रो प्रोजेक्ट पर इन्कार करने के बाद प्रशासक वीपी सिंह बदनौर ने भी मोनो रेल पर काम शुरू करने को कहा है। स्विजरलैंड की कंपनी इंटामिन ट्रांसपोर्टेशन लिमिटेड ने मोनो रेल को लेकर अपनी प्रेजेंटेशन प्रशासन के अफसरों को भी दी। मेट्रो प्रोजेक्ट पर 14000 करोड़ रुपये खर्च होने थे, लेकिन मोनो रेल पर केवल 2500 करोड़ रुपये का ही खर्च आएगा।
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कागजों से बाहर नहीं निकल पाई मेट्रो
मेट्रो प्रोजेक्ट पर काम करते हुए प्रशासन को करीब 12 साल हो गए, लेकिन ट्राईसिटी की मेट्रो कागजों से बाहर नहीं निकल पाई। सांसद किरण खेर इसके लिए तैयार नहीं हुईं और न ही अफसरों ने भविष्य के इस प्रोजेक्ट की परवाह की। मेट्रो के चलने से होने वाले रेवेन्यू और इसके घाटे की शेयरिंग पर पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के बीच सहमति नहीं बन पाने के कारण यह प्रोजेक्ट कागजों में ही रह गया। शनिवार को स्मार्ट सिटी कंपनी के ऑफिस के उद्घाटन के अवसर पर प्रशासक वी पी सिंह बदनोर ने कहा कि मोनो रेल प्रोजेक्ट ही शहर के लिए बेहतर है।
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2006 से अब तक आबादी ट्रिपल हो गई, लेकिन मेट्रो पर सिर्फ चर्चा ही हुई
2006 में पहली बार ट्राईसिटी में मेट्रो की जरूरत महसूस की गई। तब से लेकर अब तक ट्राईसिटी की आबादी तीन गुना बढ़ गई है, लेकिन मेट्रो प्रोजेक्ट सिरे नहीं चढ़ सका। इसके बाद से इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़े हुए 16 अफसरों के तबादले भी हो चुके हैं। बाद में मेट्रो को लेकर टारगेट भी फिक्स किया गया था कि अप्रैल 2016 से पहले फेज का काम शुरू हो जाएगा, लेकिन 2018 तक यह फाइलों से ही बाहर नहीं निकल पाई। पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ और शहरी विकास मंत्रालय के बीच मेट्रो के एमओयू हो चुका है लेकिन इसके बाद से ही मेट्रो पर होने वाले खर्च और घाटे को लेकर सवाल उठने लगे है।
जहां से चले थे, 12 साल बाद वहीं पर आ गए
- 2006 मोनो रेल प्रोजेक्ट रद, केंद्र ने कहा मेट्रो की संभावना देखो
- 2007 मेट्रो प्रोजेक्ट की प्लानिंग शुरू
- 2008 राइट्स कंपनी को कंसल्टेंसी का काम
- 2010 राइट्स ने कंसल्टेंसी रिपोर्ट सौंपी
- 2010 दिल्ली मेट्रो को डीपीआर का काम
- 2012 दिल्ली मेट्रो ने तैयार की डीपीआर
- 2013 स्पेशल पर्पज व्हीकल का गठन
- 2014 एमओयू साइन के लिए बैठक
- 2016 मेट्रो प्रोजेक्ट पर एमपी ने उठाए सवाल
- 2017 वित्तीय घाटे को लेकर ट्राईसिटी में विवाद
- 2018 केंद्रीय गृहमंत्री भी इसे घाटे का सौदा बताया
यह थे अभी तक प्रस्तावित रूट्स
कोरिडोर-1 - नोर्थ साउथ कोरिडोर 12.5 किलोमीटर लंबाई ।
कैपिटल कांप्लेक्स-सेक्टर-9, सेक्टर-17 आईएसबीटी, अरोमा चौक, सेक्टर-34, सेक्टर-43 बस टर्मिनल, सेक्टर-52, सेक्टर-62(सिटी सेंटर) और गुरुद्वारा सिंह शहीदा।
कोरिडोर-2, ईस्ट वेस्ट कोरिडोर कोरिडोर 25 किलोमीटर लंबा होगा।
ट्रांसपोर्ट टर्मिनल, मुल्लांपुर-1, मुल्लांपूर-2, सारंगपूर, खुड्डा लाहौरा, पीजीआई, सेक्टर-9, सेक्टर-7, सेक्टर-26, टिंबर मार्केट, चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन, हाउसिंग बोर्ड चौक, एमडीसी पंचकूला, हुड्डा कांप्लैक्स-सिटी सेंटर, बस स्टैंड पंचकूला, डिस्ट्रिक्ट सेंटर- गांव रैली और ग्रेन मार्केट।
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ऐसी होगी हमारी मोनो रेल
स्विट्जरलैंड की कंपनी ने प्रशासन के सामने जो प्रस्ताव रखा है उसके अनुसार ट्राईसिटी में मोनो रेल का 20 किलोमीटर का नेटवर्क तैयार किया जाएगा। हर घंटे मोनो रेल एक डायरेक्शन में 10 से 12 हजार पैसेंजर को ले जा सकेगी। इस प्रोजेक्ट पर कुल 2500 करोड़ रुपये की खर्च आएगा।
हर किलोमीटर का खर्च 125 करोड़ रुपये है। कंपनी की रिप्रेजेंटेटिव सुनिती वर्मा ने प्रशासन को दी प्रेजेंटेशन में कहा कि लाइट वेट ट्रैक सिस्टम होने के कारण यह प्रोजेक्ट ट्राईसिटी के लिए उपयुक्त है। इस प्रोजेक्ट पर 80 परसेंट राशि प्राइवेट पार्टी द्वारा खर्च की जाएगी। शेष 20 प्रतिशत प्रशासन खर्च करेगा।