शहीद नंद ¨सह की बरसी पर चौक का उद्घाटन कर सकते हैं सीएम
शहर के फौजी चौक को मशहूर हुए शहीद जमादार नंद ¨सह चौक को नई लुक दी जा रही है। इसकी मरम्मत का काम तेजी से चल रहा है।
जागरण संवाददाता, ब¨ठडा : शहर के फौजी चौक को मशहूर हुए शहीद जमादार नंद ¨सह चौक को नई लुक दी जा रही है। इसकी मरम्मत का काम तेजी से चल रहा है। जबकि अधिकारियों ने चौक के नजदीकी दुकानदारों को भी हिदायत की है कि वह 24 सितंबर से पहले अपनी दुकानों के बोर्ड पर फौजी चौक मिटाकर शहीद जमादार नंद ¨सह चौक लिखें। वहीं उम्मीद जताई जा रही है कि सीएम कैप्टन अम¨रदर ¨सह चौक का उद्घाटन करने के लिए पहुंचेंगे। गौर हो कि सीएम कैप्टन अम¨रदर ¨सह ने विधानसभा चुनाव से पहले फौजी चौक की सफाई की थी और भरोसा दिया था कि चौक का नवनिर्माण कर इसकी हालत में सुधार किया जाएगा। फौजी चौक के दुकानदार इकबाल ¨सह ने बताया कि चौक का पहले नाम फौजी चौक मशहूर था। मगर अब चौक को नई लुक दी जा रही है, जिसके चलते वह अपनी दुकानों के आगे फौजी चौक हटाकर शहीद जमादार नंद ¨सह चौक रखेंगे।
चौक में लगाई गई हैं एंटी एयरक्राफ्ट गन
ब¨ठडा के फौजी चौक के नाम से जाने जाते शहीद नंद ¨सह चौक में शहीद को सम्मान देने के लिए लंबे समय से टैंक स्थापित करने की चल रही योजना के तहत अब चौक में टैंक तो नहीं, मगर 1971 की भारत पाकिस्तान की जंग में इस्तेमाल की गई एंटी एयर क्राफ्ट गन को लगा दिया गया है। यह गन 24 सितंबर को शहीद नंद की बरसी पर आयोजित किए जाने वाले समागम के मद्देनजर लगाई गई हैं, जो बाद में पक्के तौर पर ही यहीं रहेगी। जून 2016 में फौजी चौक को पक्के तौर पर शहीद नंद ¨सह चौक के डिस्पले बोर्ड लगाकर असल नाम दिया गया था।
शहीद का इतिहास
नंद ¨सह का जन्म 24 सितंबर 1914 को पंजाब के ब¨ठडा जिले के गांव बहादुरपुर में हुआ था। यह गांव अब मानसा जिले में है। वह 24 मार्च 1933 में 1/11 सिख रेजिमेंट में सम्मिलित हुए थे। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इनकी यूनिट को मोंगडाव-बुथिडाऊंग रोड के साथ अराकन, बर्मा में 1944 में तैनात किया गया था। 1 मार्च की रात को एक जापानी प्लाटून ने घुसपैठ की और इंडिया हिल पर कब्जा कर लिया। उस इलाके के ड्रागून की टोली को निकलना था। इसके लिए इस पहाड़ी का सुरक्षित होना आवश्यक था। सी कंपनी के नायब नंद ¨सह को इस कार्य की जिम्मेदारी दी गई। नायक नंद ¨सह भारी मशीन गन और राइफल की गोलीबारी उत्कर्ष नेतृत्व करते हुए हमले का सामना करते हुए आगे बढ़े। एक हथगोले के फटने से उनके चेहरे व कंधे पर चोट लगी। फिर भी वह रेंगते हुए आगे बढ़े और तीसरे मोर्चाें पर कब्जा करते हुए उन्होंने दुश्मनों को मार गिराया। तीसरे मोर्चे पर कब्जा होने के बाद प्लाटून पर गोलीबारी बंद हो गई। अंत उन्होंने चोटी पर कब्जा कर लिया। चालीस में से दुश्मन के छत्तीस सिपाही मारे गए थे। उनको इस शौर्य साहस के लिए उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से नवाजा गया।
महावीर चक्र भी किया है प्राप्त
स्वतंत्रता के बाद उनको पदोन्नत कर नायब सूबेदार का पद दिया गया। 1947 में पाकिस्तान के कश्मीर पर आक्रमण करने पर उनकी प्लाटून को हवाई मार्ग से 27 अक्टूबर 1947 को श्रीनगर पहुंचाया गया। दुश्मनों की ताकत ने उरी को ऊपरी पहाडि़यों पर मोर्चाबंदी कर रखी थी। इससे श्रीनगर के मुख्य मार्ग पर खतरा बढ़ गया। वापसी में दूसरे रास्ते आते समय दुश्मन की भारी गोलीबारी का शिकार हो गए। उन्होंने अपनी बहादुरी से पांच दुश्मनों को मार गिराया। तभी एक एलएमजी की बौछार उनके सीने में लगी। इससे वह वीरगति को प्राप्त हो गए। उनकी इस बहादुरी के लिए उनको मरणोपरांत महावीर चक्र से भी नवाजा गया।
अभी सीएम के आने का कोई कार्यक्रम नहीं : डीसी
डीसी परनीत ने कहा कि सीएम के आने का अभी कोई कार्यक्रम नहीं है। मगर फौज के अधिकारियों ने उनके साथ संपर्क कर बताया है कि सीएम कैप्टन अम¨रदर ¨सह चौक का उद्घाटन करने के लिए पहुंच रहे हैं।