फिलहाल टली आफत: तेज हवाओं ने बदल दी टिड्डी दल की राह, जानें आगे कैसे बचें खतरे से
पंजाब पर से बड़ी आफत टल गई है। तेज हवाओं ने टिड्डी दलों का रास्ता बदल दिया है। पंजाब में टिड्डियों का दल पंजाब की ओर आ रहा था। लेकिन खतरा पूरी तरह से टला नहीं है व सतर्क रहना होगा।
बठिंडा/लुधियाना, जेएनएन। पंजाब से बड़ी आफत टल गई है। राज्य में वीरवार देर शाम से चल रही तेज हवाओं ने राजस्थान के संगरिया के पास से पंजाब आ रहे टिड्डी दल का रुख मोड़ दिया है। ऐसे में मौसम की मेहरबानी से पंजाब टिड्डी दल के हमले से बच गया है। पंजाब-हरियाणा सीमा पर गांव डूमवाली के बैरियर पर कृषि विभाग की टीमें पहले की तरह ही चौकस हैं। जब तक खतरा पूरी तरह से टल नहीं जाता, निगरानी लगातार बनी रहेगी। सीमावर्ती गांवों के किसानों को भी पूरी तरह अलर्ट रहने को कहा गया है। दूसरी ओर, विशेषज्ञों ने टिड्डियों के हमले से बचने और इनके खात्मे के उपाय बताए हैं।
पंजाब में टिड्डी दल का खतरा फिलहाल टला, निगरानी के लिए कृषि विभाग मुस्तैद
राजस्थान के संगरिया मंडी से पंजाब की दूरी सिर्फ 20 किलोमीटर है। टिड्डी दल एक दिन में कम से कम पांच किलोमीटर और अधिकतम 130 किलोमीटर तक तय करता है। कई दिनों से टिड्डी दल के पंजाब में प्रवेश करने की आशंका ने कृषि अधिकारियों और किसानों की नींद उड़ा रखी थी।
पंजाब-हरियाणा की सीमा पर टीम के साथ डेरा डाले बैठे खेतीबाड़ी विभाग के ब्लॉक अधिकारी डॉ. आसमानप्रीत सिंह ने बताया कि संगरिया के पास घूम रहे टिड्डी दल पर राजस्थान की टीमों का ऑपरेशन चल रहा है। वीरवार को आई आंधी पंजाब के लिए वरदान साबित हुई है। इस कारण टिड्डी दल पंजाब की ओर आगे नहीं बढ़ सका। राजस्थान से भी यही सूचना मिली है कि टिड्डी दल संगरिया के पास ही बिखरकर रह गया है।
टिड्डी दल के खात्मे की पूरी तैयारी
बेशक अब पंजाब में टिड्डी दल के संभावित हमला टला गया है, लेकिन कृषि विभाग पूरी तरह तैयार है। पंजाब-हरियाणा सीमा से लगते गांवों डूमवाली बैरियर, गांव घुद्दा, संगत और तलवंडो में फायर ब्रिगेड की चार गाडिय़ां तैनात की गई हैं। इसके अलावा संगत ब्लॉक के 38 गांवों में 200 से अधिक स्प्रे पंप पानी से भरकर रखे गए हैं। टिड्डी दल पर दवा का छिड़काव करने के लिए कोलोरोपैरीफास का इंतजाम भी कर लिया गया है।
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सटीक मॉनिटरिंग व पर्याप्त संसाधनों से टिड्डी दल को खत्म करना संभव
दूसरी ओर विशेषज्ञों का कहना है कि फसलों के लिए खतरा बने टिड्डी दल को खत्म करना मुश्किल नहीं है, लेकिन इसके लिए सटीक मॉनिटरिेंग और पर्याप्त संसाधन जरूरी हैैं। टिड्डयों का दल दिन में उड़ता रहता है। उडऩे के दौरान टिड्डियां लाखों की संख्या में होती हैैं। ऐसी स्थिति में इन्हें मारना बहुत मुश्किल है।
लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कीट विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. पीके छुनेजा के अनुसार टिड्डी दल को मारने के लिए रात का समय ही उपयुक्त है। अपनी प्रवृत्ति के मुताबिक सूरज के ढलते ही ऊंचे पेड़ों व झाडिय़ों पर टिड्डियां बैठ जाती हैं और सुबह धूप निकलते ही शरीर को गर्मी मिलने पर उडऩे लगती हैं। ऐसे में रात में कंट्रोल ऑपरेशन चलाकर इन्हें खत्म किया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि जिन स्थानों पर टिड्डियों का हमला होने की आशंका हो, वहां की पल-पल की मॉनिटरिंग जरूरी है। सूचना मिलते ही बिना देर किए ऑपरेशन चलाना जरूरी है। ऑपरेशन चलाने के लिए पांच सौ से एक हजार लीटर पानी की क्षमता वाली टंकी व स्प्रेयर, भारत सरकार द्वारा सिफारिश किए गए इनसेक्टिसाइड, टॉर्च, पानी के ड्रम, फायर ब्रिगेड की टीमें जरूरी हैं।
ट्रैक्टर, ट्यूबवेल इत्यादि को चालू हालत में रखना जरूरी
डॉ. छुनेजा ने कहा कि टिड्डी दल के खतरे को देखते हुए सरकार की ओर से गांव स्तर पर किसानों को आगाह किया जा रहा है कि वे लगातार अपनी फसलों पर नजर रखें। किसी भी समय ऑपरेशन के लिए अपने ट्रैक्टर, ट्यूबवेल व पिटठू स्प्रेयर चालू हालत में रखें। अगर कहीं बहुत छोटे-छोटे दल पहुंचें तो टिड्डियों को फसलों पर बैठने से रोकने के लिए दिन के समय पटाखे चलाएं, ढोल इत्यादि बजाएं। तेज आवाज टिड्डियों को परेशान करती है। पंजाब के किसान, कृषि अधिकारी व पीएयू के वैज्ञानिक टिड्डियों से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
खात्मे के लिए 11 दवाओं की सिफारिश
डॉ. पीके छुनेजा के अनुसार भारत सरकार की आरे से इस बार टिड्डियों को खत्म करने के लिए 11 तरह की इनसेक्टिसाइड की सिफारिश की गई है। इसमें सबसे कारगर दवा क्लोरपाइरिफास 20 ईसी है। इसके बाद क्लोरपाइरिफास 50 ईसी, डेल्टामैथरीन 2.8 ईसी, डैल्टामैथरीन 1.25 यूएलवी, डाइफ्लूबैनजूरन25 डब्ल्यूपी, फिपरोनिल 5 एससी, मैलाथिओन 50 ईसी, लैमडा साइहैलोथरिन जैसी दवाइयां शामिल हैं।
टिड्डियों के हमले से हुए नुकसान
पीएयू के कीट वैज्ञानिक डॉ. नवीन अग्रवाल के अनुसार वर्ष 1926 से 31 के दौरान टिड्डियों से रोकथाम के प्रबंध किए जाने के बावजूद देश में करीब दस करोड़ रुपये की फसलों का नुकसान हुआ था। 1940-46 और 1949-55 के दौरान टिड्डी दल के हमले के कारण दो करोड़ रुपये की फसलें नष्ट हो गई थीं।
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