जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा के भेदभाव की कड़ी आलोचना
जैसे ही केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के दफ्तरों में से पंजाबी भाषा को खत्म किया है। इससे रोष पैदा हो गया है।
संवाद सूत्र, गोनियाना मंडी : जैसे ही केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के दफ्तरों में से पंजाबी भाषा को खत्म किया है। इससे रोष पैदा हो गया है। साहित्यकारों ने इसकी कड़ी आलोचना की है। पंजाबी साहित्य सभा गोनियाना मंडी के नुमाइंदों ने अपने अपने विचार पेश किए
पंजाबी साहित सभा के प्रधान अमरजीत सिंह ने कहा कि भारत अनेक भाषाओं वाला देश है। देश के हर प्रदेश में अलग-अलग भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं। जो भाषा उनके घर में से बोली जाती है या जिस घर में उसका जन्म हुआ है वह उसकी मां बोली और मात्र भाषा बन जाती है। वह उसी इलाके में अपनी मातृभाषा को बोलते हैं। इसलिए किसी भी प्रदेश से उसकी मातृभाषा को नहीं हटाना चाहिए। जम्मू कश्मीर में भी पंजाबी भाषा के साथ यह भेदभाव नहीं करना चाहिए। पंजाबी भाषा को जारी रखना चाहिए। पंजाबी साहित्य सभा के महासचिव जस बठिडा ने कहा कि पंजाबी भाषा को जम्मू कश्मीर से हटाकर पंजाबी भाषा के साथ ही नहीं पूरे पंजाबियों के साथ एक बड़ा धोखा,धक्का और जबरदस्ती की है। पंजाबियों ने लेह लदाख तक अपना राज भाग स्थापित किया और मौके की हुकूमत उस इलाके में रहते पंजाबियों से उनकी भाषा को ही उनसे दूर कर रही है। यह निदनीय है और मैं सरकार के इस फैसले का विरोध करता हूं और मांग करता हूं कि पंजाबी भाषा के साथ भेदभाव न करके इसको पहले के जैसे ही जारी रखा जाए। पंजाबी साहित सभा के उप प्रधान बलराज सिंह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में से मान्यता प्राप्त भाषाओं में से पंजाबी भाषा को हटाना लोकतंत्र का कत्ल है। जिस इलाके में ज्यादा लोग पंजाबी बोलते हैं उसी इलाके में से इस भाषा की खत्म कर दिया है। यह बहुत निदनीय है। पंजाबी भाषा को हटाकर सरकार का पंजाब, पंजाबियत और पंजाबी भाषा के प्रति विरोधी चेहरा सामने आया है।
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