जिंदगी का कोई उद्देश्य जरूर बनाएं: सन्मति मुनि
जैन स्थानक कपड़ा मार्किट ब¨ठडा में विराजमान उप प्रवर्तक श्री विनय मुनि जी भीम महाराज के सुशिष्य प्रवचन दिवाकर श्री सन्मति मुनि साहिल जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहाकि अपनी ¨जदगी का कोई उद्देश्य जरूर बनाना वर्ना रोते रोते ही इस संसार मे आये थे और रोते हुए ही विदा हो जाओगे और यह भी नहीं पता की आगे चलकर किस भव मे कितना रोना पड़ेगा। उन्होंने बताया कि जिस तरह कोल्हू का बैल
फ्लैग : अपने स्वार्थ को छोड़कर जो सच्चाई के मार्ग पर आगे बढ़ता है मंजिल खुद ब खुद उसके कदम चूमती है
-यह ¨जदगी नहीं यह तो संसारी चक्र है जिसमें शांति मिलने वाली नहीं
-अपने स्वार्थ को दूसरों की भलाई के लिए कुर्बान कर दो
संवाद सहयोगी, ब¨ठडा
जैन स्थानक कपड़ा मार्केट ब¨ठडा में विराजमान उप प्रवर्तक विनय मुनि भीम महाराज के सुशिष्य प्रवचन दिवाकर सन्मति मुनि साहिल महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि अपनी ¨जदगी का कोई उद्देश्य जरूर बनाना वर्ना रोते-रोते ही इस संसार में आए थे और रोते हुए ही विदा हो जाओगे। यह भी नहीं पता कि आगे चलकर किस भव में कितना रोना पड़ेगा।
उन्होंने बताया कि जिस तरह कोल्हू का बैल सुबह से शाम तक चलता रहता है। मगर जब उसकी आंख से पट्टी हटाई जाती है तो वह अपने आपको वहीं खड़ा पाता है जहां से सुबह शुरूआत की थी। आपकी ¨जदगी भी कोल्हू के बैल की तरह तो नहीं। भगवान महावीर ने भी कहा है कि यह ¨जदगी नहीं यह तो संसारी चक्र है जिसमें कभी शांति मिलने वाली नहीं। मोक्ष मार्ग तभी संभव है जब पवित्र उद्देश्य बनाकर जीना शुरू करेंगे। नहीं तो यह जीवन हम व्यर्थ गंवा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी यही कहा है कि न मैं किसी का बुरा करता हूं और न ही भला करता हूं जो कुछ अच्छा बुरा फल मिलता है वह उस व्यक्ति के ही किए हुए कर्म हैं। उन्होंने कहा कि अपने स्वार्थों का बलिदान करने वाला ही पवित्र उद्देश्यों में आगे बढ़ पाता है। संसार में महानता उन्हें ही मिली है जिन्होंने अपने स्वार्थ को दूसरों की भलाई के लिए कुर्बान कर दिया। सर्थ का त्याग करने से ही अपने भीतर शांति का दीप जलता है। उन्होने कहा की पवित्र उद्देश्य यदि साकार करने है तो हम निष्काम कर्मयोगी बने। स्वयं को जाने, स्वयं पर विश्वास करें और स्वयं को स्वयं अच्छा बनाएं। स्वयं को जानने से ही जीवन में पवित्रता आ सकेगी। अपना भाग्य किसी दूसरे के हाथों में नहीं है। अपने अच्छे-बुरे कर्मो के हम खुद जिम्मेवार हैं।