जीओ व जीने दो के सिद्धांत को जीवन में उतारें : डा. राजेंद्र मुनि
भगवान महावीर की निर्वाण पूर्व वाणी जो जैन जगत में उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से विख्यात रही है।
संस, बठिडा: जैन सभा प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने जीवन का संयम बतलाते हुए भगवान महावीर की निर्वाण पूर्व वाणी जो जैन जगत में उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से विख्यात रही है, जिसे जैन की गीता कहा जाता है। इसके 36 अध्यायों में जैन धर्म के 36 सिद्धांतों का गुणों का वर्णन किया गया है।
उन्होंने कहा कि सैकड़ों उदाहरणों द्वारा जीवन में तप त्याग की महत्ता प्रदर्शित की गई। सूत्र के प्रथम अध्याय में सर्व प्रथम अहंकार का परित्याग कर विनम्र नम्रता का वर्णन किया गया। जीवन में आगे बढ़ने हेतु विनय धर्म आवयशक है। अपने से बड़े जो भी व्यक्तिगण हो चाहे हमारे परिचित पारिवारिक या संसार की समस्त आत्माएं भी हो मन में समस्त प्राणिओ को नमस्कार विनय का भाव रखना आवश्यक है। मुनि जी ने अकड़पन को अहंकार की निशानी बतलाया एवं अकड़ने वालों का पतन निशचित होता है। प्राप्त वस्तुओं का सदा सदुपयोग हो न कि अहंकर हो। सूत्र के दूसरे अध्याय में जीवन में तरह तरह के कष्ट आते जाते रहते हैं। हमारे में सदा सहनशक्ति मौजूद रहनी चाहिए। वर्तमान समय में साधनों की भरमार है कितु सहनशीलता का अभाव होने से मानव सदा कष्ट का अनुभव करता रहता है। तीसरे अध्याय में भगवान महावीर ने मनुष्य भव धर्म के प्रति श्रद्धा भाव के साथ संयमित जीवन जीने को दुर्लभ कहा है। चतुर्थ अध्याय में जन्म मरण को निश्चित बतलाते हुए मरण से न घबरा कर इसे खुशी हंसी का रूप प्रदान करने का संथारा समाधी ज्ञानमय मृत्यु को स्वीकारणे का शुभ संदेश दिया, पंचम अध्याय में अपने मन में कपटता का पूर्णत: त्याग करने का संदेश प्रदान किया है तभी साधक की साधनाएं सफल होती है। सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा आचार्य देवेंद्र की गुणमहिमा का विवेचन किया गया एवं विशव शांति हेतु सामूहिक जाप पाठ सं करवाया गया समारोह की अध्यक्षता शहर ़के जनप्रतिनिधि पूर्व विधायक सरूप चंद सिगला जी ने सत्संग का महत्व बतलाते हुए जैन समाज द्वारा किए जा रहे सेवा कार्यों की सराहना करते हुए अपने विचार प्रकट किए। प्रधान महेश जैन महामंत्री उमेश जैन व अन्य गणमान्य पदाधिकारिओं द्वारा समाज की और से पूर्व विधायक सिगला जी का अभिनंदन किया गया। महामंत्री उमेश जैन द्वारा सामाजिक सूचनाएं प्रदान की गई ।