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हमारा जीवन अंदर-बाहर से अमृत तुल्य बने: डा. राजेंद्र मुनि

जैन सभा के प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने तीर्थंकर परम पिता परमात्मा श्री आदिनाथ भगवान के जीवन धर्म की व्याख्या की।

By JagranEdited By: Published: Wed, 13 Oct 2021 10:06 PM (IST)Updated: Wed, 13 Oct 2021 10:06 PM (IST)
हमारा जीवन अंदर-बाहर से अमृत तुल्य बने: डा. राजेंद्र मुनि
हमारा जीवन अंदर-बाहर से अमृत तुल्य बने: डा. राजेंद्र मुनि

संस, बठिडा: जैन सभा के प्रवचन हाल में डा. राजेंद्र मुनि ने तीर्थंकर परम पिता परमात्मा श्री आदिनाथ भगवान के जीवन धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि उनका जीवन विश्व के समस्त महान गुणों से परिपूर्ण है। इसी के साथ उनके शुभ पुद्दगल बाहरी जगत के संपूर्ण शुभ पदार्थों से परिपूर्ण हैं।

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उन्होंने कहा कि अशोक वृक्ष के साथ-साथ सिहासन व इंद्रों के द्वारा किए जाने वाले चंवर एवं तीन धात्र तीनों लोक को सुख शांति आनंद मंगल के प्रदाता हैं। वास्तविकता में जो स्तुति प्रार्थना हृदय पूर्वक की जाती है, उसकी ऊर्जा आभा सर्वत्र व्याप्त हो जाती है। ईश्वर के ईश्वरीय गुणों के कारण समस्त चराचर जीवों को आनंदित करते हैं। व्यवहारिक जगत में जो घर, परिवार, व्यापार, व्यवसाय मिलने-जुलने के दैनिक कार्य मनोपूर्वक किए जाते हैं तो उसका सामने वाले के दिल पर गहरा असर नजर आता है। इसके विपरीत जो दिखावा मात्र कार्य होते हैं, उसमें वह सरसता नहीं आती। अंत कहा जाता है कि पेट तो भर गया पर मन नहीं भरता। क्योंकि भोजन-पानी के साथ भाव भी चाहिएं। आज दिखावे का बोलबाला होने से कथनी करनी में भारी अंतर आ रहा है। जो बाहर दिखता है वो भीतर होता नहीं। जो भीतर होता वो बाहर दिखता नहीं है। जैन आचार्यो ने चार प्रकार के घटों का उदारहण देते हुए कहा कि प्रथम घट वह है जो ऊपर ढक्कन आवर्ण तो अमृत का है कितु भीतर जहर पड़ा है। दूसरा घट वह है जो भीतर अमृत है बाहर ढक्कन जहर का, तीसरा घट भीतर-बाहर अमृत व चौथा भीतर बाहर-जहर से भरा रहता है। हमारा जीवन भीतर-बाहर अमृत तुल्य होना चाहिए। सभा में साहित्यकार सुरेंद्र मुनि द्वारा विधि विधान से भक्तामर जी का पठन पाठन व नवरात्री का महत्व बतलाया गया। प्रधान महेश जैन द्वारा स्वागत व सूचनाएं दी गई।


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